महिला सशक्तिकरण केवल एक सामाजिक नारा नहीं, बल्कि एक संवैधानिक दायित्व हैः प्रो. वागेश्वरी
डीएलसी सुपवा में महिला सशक्तिकरण पर व्याख्यान।

रोहतक, गिरीश सैनी। संविधान दिवस समारोह की श्रृंखला के अंतर्गत स्थानीय दादा लखमी चंद राज्य प्रदर्शन एवं दृश्य कला विवि (डीएलसी सुपवा) में "महिला सशक्तिकरण: विधिक ढांचा और समानता की दिशा" विषय पर एक विशेष व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
दिल्ली विवि के विधि विभाग की प्राध्यापक प्रो. वागेश्वरी देसवाल ने बतौर मुख्य वक्ता शिरकत की। अपने संबोधन में उन्होंने भारत में महिला अधिकारों के परिप्रेक्ष्य को संवैधानिक प्रावधानों और विधिक प्रोटोकॉल के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने संविधान में निहित मूल अधिकारों से लेकर न्यायपालिका के ऐतिहासिक निर्णयों और हाल की नीतिगत पहलों तक की विकास यात्रा को विस्तार से समझाया।
प्रो. वागेश्वरी ने महिला संरक्षण से संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता की महत्वपूर्ण धाराओं और अदालतों के ऐतिहासिक निर्णयों को रेखांकित किया। साथ ही बताया कि कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियाँ, संस्थागत ढांचागत खामियां और सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियां किस प्रकार इन विधानों की आत्मा को कमजोर करती हैं।
प्रो. वागेश्वरी देसवाल ने कहा कि महिला सशक्तिकरण केवल एक सामाजिक नारा नहीं, यह हमारे संविधान का स्पष्ट आदेश है। भारतीय संविधान ने लैंगिक समानता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है, और न्यायपालिका ने अपने ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से इसे बार-बार सुदृढ़ किया है। परंतु सच्चा सशक्तिकरण केवल कानून से नहीं आता; इसके लिए सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव, संस्थागत संवेदनशीलता और एक जागरूक नागरिक समाज की आवश्यकता होती है। परिवर्तन केवल कानून नहीं लाते, उसे टिकाऊ बनाती है समाज की सामूहिक इच्छाशक्ति।
व्याख्यान के उपरांत आयोजित संवादात्मक सत्र में विद्यार्थियों ने विधिक सहायता, शिकायत निवारण तंत्र और मीडिया व शिक्षा की भूमिका जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर प्रश्न पूछे। इस दौरान डीन अकादमिक अफेयर्स डॉ. अजय कौशिक, डिज़ाइन संकाय प्रमुख डॉ. शैली खन्ना, विज़ुअल आर्ट्स विभाग प्रमुख विनय कुमार, आईसीसी अध्यक्ष डॉ. सीमा, निदेशक जनसंपर्क डॉ. बेनुल तोमर, वास्तुकला संकाय प्रमुख अजय बहु सहित अन्य मौजूद रहे।