किससे डर लगता है : कोरोना या भूख से ?

प्रसिद्ध पत्रकार कमलेश भारतीय की कलम से-

किससे डर लगता है : कोरोना या भूख से ?
लेखक।

सचमुच क्या थप्पड़ से नहीं, प्यार से डर लगता है? यह एक फिल्मी संवाद। नायिका जिसे नायक को कहती है।  बहुत मासूम बन कर। अब छत्तीसगढ़ के बीजापुर की बारह साल की बच्ची जमलो मकड़म इसके उलट संदेश देकर विदा हो गयी दुनिया से कि साहब , कोरोना से नहीं भूख से डर लगता है। वह अपने गांव से दूर मिर्च तोड़ कर रोज़ी रोटी कमाती थी। कोरोना के चलते लाॅकडाउन लगने से रोज़ी खत्म हो गयी तो रोटी का सवाल खड़ा हो गया। कहां से लाए रोटी? आखिरकार अपने गांव के ग्यारह लोगों के साथ पैदल ही अपने गांव की ओर निकल पड़ी। सौ किलोमीटर चलने के बाद उसकी हिम्मत टूट गयी और उसे रास्ते में कोरोना ने नहीं भूख ने मार दिया। सिर्फ चौदह किलोमीटर दूर गांव रह गया था। यह भुखमरी से मौत किसके नाम? किसके खाते में ? यह तो वो मौत है जिसकी जानकारी मिल गयी। अनजान मौतें भी हुई होंगीं। न भी हुई हों तो भी सवाल तो गंभीर है ही कि किससे डर लगता है? इधर अनाज मंडियों में दाना दाना खरीदे जाने के वादे के बाद व्यापारी और किसान परेशान। हड़ताल क्यो? ऊपर से मौसम का मिजाज, किसान भगवान् से पूछ रहा है कि बरसात क्यों मेरे मालिक? पहले तो मौसम की मार से बचायें फसल को, फिर अनाज मंडी में लाएं फसल को और वहां नियमों कानूनों से निराश हो नारे लगायें? दाना दाना कब खरीदा जायेगा और कैसे? अभय चौटाला ने घोषणा की है कि वे राज्य की एक एक अनाज मंडी में जायेंगे किसानों की व्यथा सुनने। अधिकारियों को भी जाना चाहिए। सिर्फ वीडियो कान्फ्रेंसिंग तक सीमित न रहें। फील्ड में जाइए। देखिए अन्नदाता की आंख की नमी। गेहूं की नमी से ज्यादा किसान की आंख की नमी महत्तवपूर्ण है। कहते हैं:
किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी 
कभी कोई चेहरा भी तूने पढ़ा है? 
किसान के चेहरे को पढ़िए और उसके दिल की सुनिए। तब आप उसकी व्यथा को समझ पायेंगे। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तो प्लास्टिक के फूलों जैसी हैं। किसान को असली गुलाब के फूलों की जरूरत है। असली खुशी की जरूरत है। एक एक दाना खरीदा जाएगा। इस नारे की नहीं , विश्वास की जरूरत है। कभी तो भनक पड़ेगी नेताओं और अधिकारियों के कान में? पर...
 देर न हो जाए, कहीं देर न हो जाए। आजा रे, किसान की आंखें इंतजार कर रही हैं। आजा रे आजा। रस्ता उडीकदीयां...