समाचार विश्लेषण/ क्या चाहिए महानायक या लोकनायक? 

समाचार विश्लेषण/ क्या चाहिए महानायक या लोकनायक? 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 

देश में सदी के महानायक का जन्मदिन अक्तूबर माह में आता है और एक दिन पहले इन आंखों की मस्ती से मदहोश कर देने वाली अदाकारा रेखा का जन्मदिन भी पर भी खूब धूम धड़ाका होता है सोशल मीडिया पर । महानायक । ये हैं महानायक । कितना बखान किया जाता है । लेकिन कोरोना संकट काल में महानायक ने ऐसा कुछ खास नहीं किया जिससे उन्हें इस संबोधन से पुकारने पर गर्व महसूस होता हो । राजनीति के मैदान से भागे । बंगलौर में फैशन करवाने से दिवालियेपन की कगार पर पहुंचे महानायक को अमर सिंह ने सहारा श्री सुब्रतो राॅय से आर्थिक सहायता दिलवाई और उसी अमर सिंह के लिए आंखों में दो आंसू भी नहीं आए । यह है हमारा महानायक । इन आंखों की मस्ती वाली रेखा जी को राज्यसभा में पहुंचाया पर उनके पास समय ही नहीं था । ऐसे ही क्रिकेट के भगवान् सचिन तेंदुलकर के पास भी राज्यसभा के लिए समय नहीं निकला और जितने दिन ये दोनों राज्यसभा में आए उससे देश गर्व से फूला नहीं समाया । यह राज्यसभा की गरिमा और स्तर को कम करने के बराबर है । 

हमें क्या चाहिए ? सदी के महानायक , क्रिकेट के भगवान्  या मस्ती भरे नयन वाली रेखा ? नहीं । हमें ये नहीं चाहिएं । जहां जिस क्षेत्र में हैं वहां उनके योगदान को नमन् पर राज्यसभा के अंगने में इनका क्या काम ? 

अक्तूबर में एक लोकनायक का भी उल्लेख आया जिसने शक्तिशाली व लौह महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल जैसे गलत कदम उठाये जाने पर ऐसा विरोध किया कि देश आज तक याद करता है । वे थे बिहार के जयप्रकाश नारायण जिन्हें लोगों ने प्यार से लोकनायक कह कर पुकारा और सम्मान दिया । आपातकाल का विरोध करने पर इंदिरा गांधी ने जो जो प्रशासन द्वारा अत्याचार करवाये उसकी यादें उन लोगों या उनके परिवारों के जख्म ताज़ा कर देती हैं । अखबार इनसे भरे रहते थे जब शाह कमीशन सुनने जाता था । जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की देन रहे यूनिवर्सिटी छात्र लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार । दोनों राजनीति के शीर्ष पर पहुंचे लेकिन लालू प्रसाद सत्ता के नशे में बहक गये और अब रांची की जेल में चारा घोटाले की सज़ा भुगत रहे हैं । बेटे तेजस्वी राजनीति में उठ नहीं पा रहे । लालटेन की रोशनी मद्धम पड़ती जा रही है । 

इसी जयप्रकाश नारायण को जनता पार्टी ने राष्ट्रपति तक बनाने की पेशकश की लेकिन वे सिर्फ लोकनायक बनना स्वीकार करते रहे । कहीं मैंने पढ़ा कि जयप्रकाश नारायण  के पास साइकिल तक का वाहन नही रहा । वे पूरा जीवन बिना घोड़ा गाड़ी के निकाल गये । उनकी इच्छा शक्ति कितनी थी यह बात मैंने धर्मयुग में पढ़ी थी । वे मुम्बई के अस्पताल में डायलिसिस पर थे और बाहर बरामदे में युवा तुर्क कहे जाने वाले नेता चंद्रशेखर बेचैन । डाॅक्टर बाहर आए और उन्होंने कहा कि जे पी जी इससे कभी नहीं जायेंगे क्योंकि उनकी जीने की इच्छा शक्ति बहुत ज्यादा है और अंततः यह बात आई कि वे हृदयगति रूकने से गये इस संसार से पर आज भी लोगों के दिलों में वे सदी के लोकनायक हैं गांधी जी के बाद । असल में नये भारत के वही गांधी साबित हुए । क्या हमें सदी के महानायक बनना है या सदी के लोकनायक ? हमारा आदर्श कौन ? महानायक या लोकनायक ? भाजपा आपातकाल को हर वर्ष मनाती है लेकिन क्या मीडिया को आजादी दे रखी है ? क्या लोकनायक के आंदोलन की असली मांग, राइट टू काॅल को लागू कर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने का साहस करेगी ? फिर कौन से पदचिन्हों पर चलने का दावा जय प्रकाश नड्डा जी कर रहे हो ? फिर हर राज्य में लगने वाली विधायकों की अपनी मंडियां कैसे लगाओगे ?