"भवनों में ऊर्जा दक्षता” पर डीएलसी सुपवा में विशेष व्याख्यान आयोजित

रोहतक, गिरीश सैनी। स्थानीय दादा लखमी चंद राज्य प्रदर्शन एवं दृश्य कला विवि (डीएलसी सुपवा) के नियोजन एवं वास्तुकला संकाय में “भवनों में ऊर्जा दक्षता” पर एक विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। इस दौरान भवन निर्माण में टिकाऊ डिज़ाइन रणनीतियों और उन्नत तकनीकों पर चर्चा हुई।

 

बतौर मुख्य वक्ता, आईआईटी रुड़की के बिल्ट एनवायरनमेंट लैब में वरिष्ठ शोधकर्ता अतुल आनंद झा ने जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण और घटते संसाधनों के प्रति एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया के रूप में ऊर्जा-कुशल भवनों की आवश्यकता को समझाया। उन्होंने निष्क्रिय डिज़ाइन, सामग्री नवाचार, नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों के एकीकरण और स्मार्ट बिल्डिंग तकनीकों जैसी रणनीतियों पर ज़ोर दिया, जो ऊर्जा की खपत को काफ़ी कम कर सकती हैं।

 

वास्तविक जीवन के प्रासंगिक उदाहरणों का उपयोग करते हुए उन्होंने उन नवीन परियोजनाओं के केस स्टडी भी साझा किए जहां डिज़ाइन हस्तक्षेपों से मापनीय ऊर्जा बचत हुई है। इससे छात्रों को वास्तुकला को न केवल एक कला के रूप में, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति एक ज़िम्मेदारी के रूप में भी देखने की प्रेरणा मिली।

 

विषय के महत्व पर विचार रखते हुए अतुल आनंद झा ने कहा कि आज डिज़ाइन की गई इमारतें कल की पर्यावरणीय विरासत को आकार देंगी। वास्तुकारों को अपने अभ्यास के मूल में स्थिरता को समाहित करने के लिए सौंदर्यशास्त्र और कार्यक्षमता से परे सोचना चाहिए। अगर हम ऊर्जा-कुशल इमारतों को डिजाइन करने में सफल होते हैं, तो हम एक बेहतर भविष्य डिज़ाइन करने में भी सफल होते हैं।

 

इस व्याख्यान में संकाय सदस्यों के अलावा तीसरे, चौथे और पांचवें वर्ष के लगभग 60 स्नातक छात्रों ने भाग लिया। छात्रों ने अपनी शैक्षणिक परियोजनाओं और पेशेवर अभ्यास में स्थायी सिद्धांतों को शामिल करने के बारे में प्रश्न भी पूछे।

 

विभागाध्यक्ष, आर्किटेक्ट अजय बाहु जोशी ने कहा कि ऊर्जा दक्षता केवल एक डिजाइन विकल्प नहीं है, बल्कि भविष्य के वास्तुकारों के लिए एक नैतिक दायित्व है।