राष्ट्रभाषा का गौरव कम देख कर दिल रोता है : डाॅ किरण वालिया

राष्ट्रभाषा का गौरव कम देख कर दिल रोता है : डाॅ किरण वालिया
डाॅ किरण वालिया

-कमलेश भारतीय 

पहले हरियाणा के चरखी दादरी के एपीजे काॅलेज की प्रिंसिपल और बाद में पंजाब के फगवाड़ा के कमला नेहरु गर्ल्स काॅलेज की प्रिंसिपल डाॅ किरण वालिया का कहना है कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा होते हुए भी इसका गौरव कम होते देख बहुत दुख होता है । यह एक प्रकार से हिंदी पक्ष चल रहा है । तीस सितम्बर तक मनाया जाता है लेकिन फिर इसे भुला दिया जाता है । डाॅ किरण वालिया मूल रूप से पंजाब के होशियारपुर की निवासी हैं लेकिन पापा का संबंध आर्मी से थे । हालांकि अंग्रेजी के प्राध्यापक भी थे । इस तरह उड़ीसा के कटक में ट्रास्फर हुई और चौथी तक वहां पढ़ाई हुई । उसके बाद उत्तर प्रदेश के बस्ती में ट्रास्फर तो वहां पढ़ाई । फिर वापस होशियारपुर आए तो यहां आर्य स्कूल में । बाद में डी ए वी गर्ल्स सेक्शन में बी ए की । उसके बाद एम ए  गवर्नमेंट काॅलेज, होशियारपुर से । एम फिल करने चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय पहुंची । एम फिल में फैलोशिप मिली जो पीएचडी तक चली । वहां छह साल तक रही और डाॅ मैथिली प्रसाद भारद्वाज के निर्देशन में पीएचडी की । विषय था -दिनकर व बच्चन के काव्य में स्वछंदतावादी बोध पर । मेरे लघुकथा संग्रह इतनी सी बात का अपनी प्राध्यापिकाओं से पंजाबी में अनुवाद कर प्रकाशित करवाया काॅलेज की ओर से -ऐनी कु गल्ल । आभार । यह किसी पुरस्कार से कम नहीं ।
 

-पहली जाॅब कहां ? 
-जालंधर के कन्या महाविद्यालय में । दो साल जाॅब के बाद पापा की ट्रांसफर फिर उड़ीसा हुई तो जाॅब छोड़ी । फिर वापस आए , कन्या महाविद्यालय में और सन् 2007 में अक्तूबर से चरखी दादरी के एपीजे गर्ल्स कॉलेज की प्रिंसिपल बनी और यहां सन् 2011तक रही । फिर नवम्बर , 2011 से फगवाड़ा के कमला नेहरु गर्ल्स काॅलेज की प्रिंसिपल । दिसम्बर, 2019 मे सेवानिवृत तो हुई लेकिन प्रबंधन समिति ने नयी प्रिंसिपल चुने जाने तक जिम्मेदारी सौंप रखी है तो अभी प्रिंसिपल हूं ।
-हिंदी लेखन कैसे शुरू किया ? 
-इसका श्रेय मेरे फूफा जी डाॅ त्रिलोक चंद तुलसी जी को जो डी ए वी काॅलेज , होशियारपुर में हिंदी प्राध्यापक थे और बाद में विश्व ज्योति पत्रिका के संपादन से भी जुड़े रहे । पापा तो आई ए एस बनाना चाहते थे । मेरी रूचि शिक्षण में थी । आखिर फूफा जी जीते और हिंदी साहित्य से जोड़ दिया । लाइब्रेरी से पुस्तकें लाकर देते । मज़ेदार बात कि बचपन में उड़ीसा से यूपी के बस्ती में ट्रांसफर होने पर मुझे हिदी नहीं आती थी । अंग्रेजी की किताबें पढ़ कर सुना दीं । मुश्किल से हिंदी सीखी । पर फिर इसी से प्रेम हो गया । दूसरी प्रेरक रहीं हमारी प्रिंसिपल कन्या महाविद्यालय की डाॅ रीटा बाबा जिन्होंने कहा कि लिखना भी है और पढ़ना भी है । 
-कितनी पुस्तकें आईं अब तक ?
-शोध तो आया ही -दिनकर कवि और कृति । दो अनुदित पुस्तकें । खामोशियां बोलती हैं काव्य संग्रह । एक काव्य संग्रह और कथा संग्रह शीघ्र प्रकाश्य । 
-पुरस्कार ?
-यूएसई से , लुधियाना से फकीरचंद शुक्ला ने किया सम्मानित तो भोपाल से सुशील गुरु स्मृति पुरस्कार समेत अनेक सम्मान व पुरस्कार ।  
-पंजाब और हरियाणा का अनुभव कैसा ?
-हिंदी शिक्षण में जहां हरियाणा में बड़ी संख्या में छात्रायें आती हैं तो पंजाब में जानने लायक । इसीलिए हिंदी की स्थिति पर दुख होता है । 
-लक्ष्य क्या ?
-चंडीगढ़ बसने की योजना । हिंदी के साहित्यिक संगठनों के साथ साथ स्पिक मैके के लिए भी काम करना चाहूंगी क्योंकि शास्त्रीय संगीत से बहुत प्रेम है और पंजाब में जुड़ी भी हूं स्पिक मैके से । 
हमारी शुभकामनाएं डाॅ किरण वालिया को ।