दम तोड़ गए रिश्ते घर की दहलीज़ पर

मनोज धीमान द्वारा लिखित शायरी 

दम तोड़ गए रिश्ते घर की दहलीज़ पर
A sketch by GARIMA DHIMAN.

ख़ामोशी में दब गए हैं अलफ़ाज़
सन्नाटे में कोई आवाज़ तो दे
***
मंज़िलें बदल सी गयीं 
कारवाँ रवाना होते-होते
***
ख़ुशी की तलाश में थे 
ग़म भी नसीब में ना आये
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रात भर भँवरे जलते रहे 
अंधेरों में ख़ुशी तलाश करते-करते
***
बो दिए दुश्मनी के बीज रिश्तों की दहलीज़ पर 
दम तोड़ गए रिश्ते घर की दहलीज़ पर

 

-मनोज धीमान