हिन्दी साहित्य की समृद्ध परंपरा में जानदार हस्तक्षेप करना फ़िलहाल एक लक्ष्य है: शोभा अक्षरा

हिन्दी साहित्य की समृद्ध परंपरा में जानदार हस्तक्षेप करना फ़िलहाल एक लक्ष्य है: शोभा अक्षरा
शोभा अक्षरा।

-कमलेश भारतीय 

अच्छे हिन्दी पाठकों की परिधि में विस्तार करने का कार्य बेहद महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी होती हैं।फिलहाल लिखते रहना और पाठकों के समक्ष अपनी रचनाएं रखना उद्देश्य है। यह कहना है पिछले दो वर्ष से प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका 'पाखी' की सहायक संपादक और आगामी सितम्बर से एक बड़े प्रकाशन समूह में बतौर  'एसिस्टेंट एडिटर' के रूप में कार्यरत करने वाली शोभा अक्षरा का । मूल रूप से जिला अयोध्या के फ़ैज़ाबाद शहर की निवासी शोभा की शिक्षा-दीक्षा वहीं 'डॉ राममनोहर लोहिया अवध विश्विद्यालय' से हुई। वही से कंप्यूटर एप्लीकेशन में स्नातक की डिग्री एवं ए जनसंचार एवं पत्रकारिता विषय से परास्नातक की डीग्री पूर्ण हुई।  बीसीए में टॉप व एम ए जनसंचार एवं पत्रकारिता में 'स्वर्ण पदक' प्राप्त किया । अवधी भाषा में पीजी डिप्लोमा भी हैं और बाद में अवधी भाषा की पत्रकारिता पर शोध भी करना चाहती हैं ।

-अपने विश्विद्यालय के पांच वर्षों के दौरान किन गतिविधियों में हिस्सा लेती रहीं ?
-खेल के क्षेत्र को छोड़कर  लगभग अन्य सभी गतिविधियों में । जैसे -भाषण , वाद विवाद प्रतियोगिता और पत्रवाचन आदि सभी में प्रतिभाग करना एक ज़िद थी जैसे।

-कौन सी पाठशाला मानती हो जहां सब अनजाने ही सीखने को मिला ?
-अवध विश्वविद्यालय का 'स्वामी विवेकानंद सभागार' । यह मेरे घर के पास में है तो जब भी कोई शैक्षणिक या सांस्कृतिक कार्यक्रम होता तो मैं मां को फोन कर बोल देती थी कि आज देर हो जाएगी और सभी तरह के कार्यक्रम सुनती,देखती, समझती।बाहर निकलते वक्त लगता कि आज कुछ नया सीखा यह उपलब्धि रही। क्योंकि कोर्स के विषयों से इतर यहीं सीखा जा सकता था। चाहे संगीत पर चर्चा, या राजनीतिक विमर्श या साहित्यक विमर्श या अन्य । इस दौरान अनेक कार्यक्रमों का संचालन भी किया,हिस्सा भी बनीं। इस तरह यह सभागार कहीं न कहीं मेरी पाठशाला बन गया और यहाँ से बहुत कुछ सीखने को मिला ख़ासकर एक आत्मबल ज़रूर निर्मित हुआ ।

-प्रेरणा कौन ?
- माँ  फिर मेरे शिक्षक, प्रो मनोज दीक्षित(तत्कलीन कुलपति), डाॅ विजयेन्दु चतुर्वेदी और डाॅ राजेश कुशवाहा। डाॅ मनोज दीक्षित जो हमेशा एक बात ज़रूर समझाए थे कि शोभा जो पसंद हो, वो काम करो । जो पसंद है वह करने से हमेशा एक सन्तुष्टि मिलेगी और अपने आप आगे का रास्ता मिलता जाएगा।

-पहली जाॅब कहां ?
-ग्रेजुएशन के आख़िरी सेमेस्टर के दौरान से जॉब करना शुरू कर दिया था।पहली जॉब लखनऊ की एक एनजीओ में बतौर पीआर का काम किया । पहली स्लिप मिली दस हजार रूपये की, वह आज तक  संभाल कर रखी है। हर पहली चीज़ का अनुभव ताउम्र दुबारा कभी नहीं हो सकता है।उसे सँजोना चाहिए।

-फिर अगली जाॅब ?
-एम ए जनसंचार के पहले सेमेस्टर में अवध कमेंट वीक साप्ताहिक अख़बार से शहर में रिपोर्टिंग। फिर अमर उजाला में धीरेंद्र जो ब्यूरो चीफ थे,उन्होंने अख़बार के 'अपराजिता' सेक्शन में जगह दी, कुछ समय बाद ही 'अनन्त वक्ता' चैनल में ब्यूरो चीफ़।
स्थनीय स्तर पर कई कार्यक्रमों से जुड़ी रही।
 
-इसके आगे कहां ?
-जनसंचार में एम ए के बाद 'ईटीवी भारत' तेलंगाना में कंटेंट राइटर के तौर पर काम किया। फिरमात्र कुछ माह के बाद वहां से रिजाइन देकर। नोएडा में एक्स्प्रेस टीवी चैनल में बतौर सीनियर कारस्पोंडेंट पद पर काम किया। 

-फिर साहित्यिक पत्रिका पाखी में कब ?
-अगस्त , 2019 से अभी तक और पूरे दो साल बाद अब अन्य नई यात्रा पर।

-कैसा अनुभव रहा पाखी का ?
-बहुत कुछ सीखने को मिला, सृजन की उड़ान के लिए पंख यहीं लगे । संपादक अपूर्व जी का सानिध्य रहा।  'द संडे पोस्ट' में ख़ूब लिख और सीखा।

-कौन सी विधा है जो प्रिय है ?
-कक्षा आठ में अपनी पहली कविता लिखी थी।तब से यही प्रिय विधा है और अभी मेरी नयी कविता 'नाक' को ख़ूब सराहा गया, बारह भाषाओं में अनुवाद हो चुकी है ।

-प्रिय कवि कौन ? 
-एक नाम लेना हो तो 'केदारनाथ सिंह जी' । वैसे वर्तमान कवियों में कई प्रिय लेखक हैं पर दो नाम लेना हो तो व्योमेश शुक्ल जी और जावेद आलम जी की कविताएं भाती हैं ।

-पुरस्कार?
-सबसे महत्त्वपूर्ण 'अयोध्या रत्न पुरस्कार' जो मेरे लिए अनमोल है,अपनी मिट्टी की ख़ुश्बू है इसमें। फिर और भी रहे लगातार मिलते रहे पुरस्कार।