मेरी जिंदगी थियेटर से बहुत अच्छी चल रही है: अमला राय 

मेरी जिंदगी थियेटर से बहुत अच्छी चल रही है: अमला राय 
अमला राय।

-कमलेश भारतीय 
मेरी जिंदगी थियेटर से बहुत अच्छी चल रही है । लेकिन जो थियेटर के लोग हैं वे कहते बहुत हैं कि पाठ्यक्रम में थियेटर को शामिल किया जाये लेकिन खुद इसे पढ़ाने आगे नहीं आते । यह उदासीन रवैया क्यों ? इसीलिए मैं आजकल दो काम मुख्य तौर पर कर रही हूं -पहला गाव के बच्चों के साथ थियेटर , दूसरा थियेटर टीचर की फौज खड़ी करने में जुटी हूं । यह कहना है हिमाचल की धरती से प्रसिद्ध रंगकर्मी , फिल्मों व सीरियल्ज में अपनी प्रतिभा दिखा रहीं अमला राय का । वे जन्मीं तो उत्तर प्रदेश के धामपुर में लेकिन छह माह बाद हिमाचल के नाहन में आ गया परिवार , फिर चंबा और सन् 1967 से शिमला में हूं । और वहीं पढ़ाई की और थियेटर भी किया और फिर पंजाब विश्वविद्यालय के इंडियन थियेटर से होती हुईं नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तक पहुंची । रेपेट्री मे भी कुछ समय काम किया । शिमला के सेंट बीड्स काॅलेज से ग्रेजुएशन की । इंडियन थियेटर से एक साल का डिप्लोमा और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से तीन साल का कोर्स । 

-क्या मम्मी पापा ने इस शौक को रोकने की कोशिश नहीं की ?
-आप मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि को नहीं जानते शायद । मेरे पापा हरिश्चंद्र राय आर्ट्स काॅलेज के प्रिंसिपल थे और हमारे घर में ऐसा वातावरण था , जिसके चलते मां पापा से प्रोत्साहन ही मिला ।
-थियेटर कब से शुरू कर दिया था ?
-पहले मैं इला पंत जी से कत्थक नृत्य सीखती थी । नृत्य में भी भाव भंगिमायें होती हैं और नाटक में भी । काॅलेज में जब जब थियेटर में बुलाते रोल के लिए तो करने लगी और करते करते यह लगने लगा कि नृत्य से ज्यादा थियेटर में स्कोप है और थियेटर ही करने लगी । थियेटर में फ्रीडम ज्यादा लगी । 
-इंडियन थियेटर में कौन याद है ?
-मोहन महर्षि और कुमार वर्मा जिनके निर्देशन में नाटकों में काम किया और सीखा । जब नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पहले साल में थी तो शिमला में जहां रिचमंड विला में रहती थी , आसपास के बच्चों को इकट्ठा कर नाटक करवाती थी । वैसे चाहे मैं मुम्बई रही , चाहे शिमला बच्चो के साथ थियेटर करना मेरा जुनून रहा ।
-नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की याद ?
-रोबिन दास , राजेन्द्र गुप्ता , विजया मेहता आदि के साथ काम करने और सीखने का अवसर मिला । यह भी लगा की थियेटर एक समुद्र है -ज्ञान , तकनीक और अभिनय का । 
-नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के बाद कहां ?
-जयपुर । सुनील सिन्हा मेरे सीनियर भी थे और हमारी शादी हुई तो जयपुर जाकर थियेटर शुरू किया -फ्रीलांसिंग थियेटर । दो साल तक । फिर हम सन् 1986 में मुम्बई चले गये ।
-मुम्बई में क्या क्या कर पाईं ?
-नादिरा बब्बर के थियेटर ग्रुप 'एकजुट' के साथ जुड़ी और दुविधा , जस्मा ओढन, पंख होते तो आदि नाटकों में काम किया । 
-फिर शिमला कब लौटीं ?
-सन् 1993 में । शिमला आकर 'अभिव्यक्ति' ग्रुप बनाया । सन् 1998 तक चलाया । यह शिमला का पहला ऐसा ग्रुप था जो टिकट के साथ ही शो करता था । बिना टिकट के प्रवेश नहीं दिया जाता था। हमारे हाउस फुल होते थे । इसके साथ साथ शिमला की कैत्थूजेल के कैदियों के लिए भी थियेटर करती रही । सरोज विशिष्ट भी साथ रहीं इस अभियान में । फिर बेटे के कारण शिमला छोड़कर पति के पास मुम्बई रही और उसके पालन पोषण तक कोई काम नहीं किया । फिर मैं थियेटर पढ़ाने लगी । यह एक नयी ही खोज थी मेरे व्यक्तित्व की । जो मुझे ही भा गयी । दो किताबें भी लिखी हैं इंग्लिश में थियेटर टीचिंग पर । 
-मुम्बई में फिल्म या सीरियल्ज में भी काम किया ?
-जी । अजीज मिर्जा की फिल्म -राजू बन गया जेंटलमैन जिसमें शाहरुख खान और जूही चावला हीरो हीरोइन थे । क्षीरसागर के 'स्त्री' सीरियल, एक कहानी , बुलबुल बाग, अनुपम खेर और राजू खेर के रेत का दरिया आदि में विभिन्न भूमिकाएं निभाईं ।
-अब क्या और कहां कर रही हैं ?
-आजकल सोलन के पास धर्मपुर में आसपास के गांवों के बच्चों के साथ थियेटर वर्कशॉप और नाटक मंचन । नारा यह कि शहर को गांव तक लाओ नाटक देखने के लिए । कसौली , चंडीगढ़, दिल्ली आदि शहरों के लोग आते भी हैं देखने । रौड़ी में बच्चों का क्लब बना रखा है । 
-आपकी सबसे बड़ी चिंता किस बात को लेकर है ?
-थियेटर का कोर्स सब कोई मांगते है लेकिन पढ़ाना कोई नहीं चाहता । इसलिए थियेटर टीचर्स की फौज खड़ी करना चाहती हूं और ऐसी 63 टीचर्स बना भी चुकी हूं । हम थियेटर के लोग ही मेहनत करने को तैयार नहीं । यह दुख है । यह उदासीनता बहुत अखरती है ।
-कोई पुरस्कार ?
- सुदर्शन गौड़ की संस्था ऑल इंडिया आर्टिस्ट्स एसोसिएशन से मिला सम्मान । वह भी कुलदीप नैयर और फोटोग्राफर कर्म सिंह के साथ । 
-अब क्या लक्ष्य ?
-वही थियेटर टीचर्स की फौज खड़ी करना और शहर को गांव तक थियेटर देखने लाना ।