कविता/लोग भूल जाते हैं
लोग भूल जाते हैं
खराब मौसम और
गर्दिश के दिनों में
की गयी मदद ।
लोग भूल जाते हैं
संघर्ष के दौर में
अंधेरी काली रातों में
अपनी दहलीजों पर
दीया जला कर
राह दिखाने वालों को ।
लोग इस्तेमाल करते हैं
दूसरों के कंधों को
सीढ़ियों की तरह
और तमन्ना रखते हैं
आकाश छू लेने की ।
कोई नहीं जानता
वे लोग अपने अंधे सफर में
कहां गिर जाते हैं
कहां छूट जाते हैं
और कब लोग
उन्हें भूल जाते हैं...
कोई नहीं जानता
लोग कब भूल जाते हैं...
-कमलेश भारतीय
Kamlesh Bhartiya 

