मिलिए मन की बात बनाने वाले जैनेंद्र सिंह से 

सांस्कृतिक क्षेत्र में योगदान दे पाऊं , बस इतना अरमान : जैनेंद्र सिंह 

मिलिए मन की बात बनाने वाले जैनेंद्र सिंह से 
जैनेंद्र सिंह।

-कमलेश भारतीय 
सांस्कृतिक क्षेत्र में योगदान दे पाऊं , बस इतना सा अरमान है । जो यात्रा तय की उसे पुस्तक रूप मे नयी पीढ़ी तक पहुंचा सकूं । यह योजना है । यह कहना है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सन् 2014 से चल रहे लोकप्रिय कार्यक्रम मन की बात से जुड़े दिल्ली आकाशवाणी के सहायक निदेशक कार्यक्रम जैनेंद्र सिंह का । मूल रूप से उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर के निकट प्रतापपुर गांव के निवासी जैनेंद्र सिंह की प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही हुई । किच्छा के इंटर काॅलेज से पढ़ने के बाद बनारस के यूपी काॅलेज से इंटर किया । फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से स्नातक और राजनीतिशास्त्र से एम ए तक शिक्षित जैनेंद्र सिंह को रेडियो सुनने का बहुत शौक था और शुरूआत हुई अपनी बुआ की बेटी के साथ जो उन्हें युववाणी कार्यक्रम तक ले गयीं और पहली बार कहानी का पाठ किया । फिर वे कैजुअल अनाउंसर भी बन गये । फिर एक दिन वे रेडियो सुन रहे थे तो रेगुलर अनाउंसर की पोस्ट निकली । अप्लाई किया लेकिन चुने नहीं गये । बड़ा अजीब लगा कि मेरी आवाज़ की इतनी तारीफ और मैं चुना नहीं गया । फिर पोस्ट निकली ट्रांसमिशन एग्जीक्यूटिव की और इस बार सिलेक्शन हो गया पर इलाहाबाद की बजाय पोस्टिंग मिली आकाशवाणी के जालंधर केंद्र में सन् 1988 में , यानी वह दौर जब आतंकवाद चरम पर था । फिर भी परिवार ने वहां ज्वाइन करने दिया और वहां डेढ़ साल काम करने के बाद चंडीगढ़ आकाशवाणी ट्रांसफर हो गये । जहां हरियाणा के सांस्कृतिक विभाग के कमल तिवारी के सम्पर्क में आए । कुछ समय पटियाला आकाशवाणी केंद्र में भी रहे और फिर लखनऊ में भी पांच छह वर्ष बिताये, माउंट आबू आकाशवाणी पर भी कुछ समय रहे और उसके बाद दिल्ली आकाशवाणी पर । आजकल सहायक निदेशक कार्यक्रम और दिल्ली एफ एम रेनबो को भी देखते हैं ।

-आप आकाशवाणी के बाहर भी हरियाणा सरकार और भारत सरकार के कार्यक्रमों का संचालन सफलतापूर्वक करते रहे । जैसे हिसार में राष्ट्रीय युवा समारोह और खेदड़ के पाॅवर प्लांट के उद्घाटन और एजुसेट के कार्यक्रम । कैसे?
-  सांस्कृतिक विभाग के कमल तिवारी जी ने मुझे एक प्रकार से प्रोफैशनल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई । पहले इलाहाबाद में सोमनाथ संतप्त जी ने मुझ पर विश्वास कर चयन के लिए संस्तुति की , तो यहां कमल तिवारी ने । फिर आकाशवाणी के महानिदेशक ने जिन्होंने मुझे मन की बात पर आधारित आकाशवाणी की साप्ताहिक श्रृंखला से,  दिसम्बर, 2014 से जोड़ दिया । तब से इस श्रृंखला के अन्तर्गत 250 से भी अधिक कार्यक्रम तैयार किए जिनका राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारण हुआ । 
-मन की बात के साथ जुड़ने पर कैसा लगा था ? प्रधानमंत्री का कार्यक्रम और इसे तैयार करने की जिम्मेदारी ?
-जब महानिदेशक ने यह जिम्मेदारी सौंपी तो इस बड़ी जिम्मेदारी के मिलने पर  खुशी हुई कि मुझे इस योग्य समझा गया । एक घंटे का कार्यक्रम तैयार करने की जिम्मेदारी । 
-कोई खास बात इस प्रोग्राम की ?
-देखिए मुझे मुरादाबाद के एक दिव्यांग सलमान खान का पता चला । वह पांच छह दिव्यांग सहयोगियों के साथ पहले सस्ती चप्पलें बनाने लगा , यह सोचकर कि मैं नहीं चप्पल नहीं पहन सकता तो दूसरों को तो सस्ती चप्पल मिल सके । फिर डिटर्जेंट तैयार किया । मैंने मुरादाबाद के डी एम को फोन पर जानकारी मांगी और सलमान मुझसे उत्साह मे मिलने दिल्ली आकाशवाणी पहुंच गया अपने सहयोगियों के साथ । ऐसे ही जींद के निकट एक गांव  के सरपंच सुनील जिन्होंने सेल्फी विद डाॅटर शुरू की । इसका जिक्र प्रधानमंत्री ने किया मन की बात में ।उन पर कार्यक्रम बनाया। इसी प्रकार जिक्र आया हिसार की बेटी एकता भ्याण का । दरअसल इसके लिए मानसिक तैयारी करनी पड़ती है । यह कोई मनोरंजक कार्यक्रम न होकर जानकारी और प्रेरणा देने वाला कार्यक्रम है और प्रधानमंत्री की सोच, संवेदना और संकल्पना से लोग जुड़ सकें , संवाद कर सकें वैसा कार्यक्रम है । 
-आपको मैंने चंडीगढ़ के साहित्योत्सव में पीयूष मिश्रा से इंटरव्यू लेते सुना । हिसार के राष्ट्रीय युवा समारोह का संचालन करते सुना । कैसे ?
-लोगों को मेरी आवाज़ पर भरोसा । इसलिए । अब तो अनेक राज्यों में माननीय राष्ट्रपति और  प्रधानमंत्री के  कार्यक्रमों के संचालन के लिए भी मुझे बुलाया जाता है । राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का संचालन करने का अवसर भी । वैसे चंडीगढ़ में शुरूआत हुई थी फैशन और सौंदर्य प्रतियोगिता की एंकरिंग से । फिर तो कदम दर कदम बढ़ाता चला गया । हरियाणा और देश के कोने कोने में गया हूं कार्यक्रमों के संचालन या रेडियो के लिए आंखों देखा हाल सुनाने के लिए। 
-एंकरिंग से हटकर क्या करना पसंद है फुर्सत के पलों में ? 
-जासूसी उपन्यास पढ़ता था कभी । फिर,रोमांटिक और आजकल आत्मकथाएं और आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना अच्छा लगता है । 
-इसके अतिरिक्त?
-जो सीखा जीवन में वह मोटीवेशनल लेक्चर में बच्चों में बांटना । जब भी समय मिलता है तब बच्चों की संस्थाओं के निमंत्रण पर उनके बीच जाता हूं । बहुत अच्छा लगता है । 
-परिवार ?
-धर्मपत्नी पूनम सिंह । वे भी उत्तराखंड से । एम ए अर्थशास्त्र । दो बेटियां । बड़ी तनु सिंह लंदन में एमबीए के बाद बिज़नेस मनोविज्ञान में पढ़ाई कर रही है । छोटी बेटी तान्या सिंह दिल्ली के लेडी श्रीराम काॅलेज में स्नातक कर रही है ।
-लक्ष्य क्या ?
-जीवन को सार्थक बनाना । दूसरों के लिए कुछ कर पाऊं । सामाजिक कार्यों से जुड़ना चाहूंगा और कुछ ऑफर्ज हैं कि मैं अपने कर्म और अनुभव को पुस्तक रूप में लिखूं । इसके साथ आज भी सीखने की प्रक्रिया जारी है । सांस्कृतिक क्षेत्र में योगदान दे सकूं । यह मेरी इच्छा है । सपना है । 
देश की अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं ने सम्मानित किया है । मोहम्मद रफ़ी साहब को समर्पित अमृतसर की प्रतिष्ठित संस्था ने सर्वश्रेष्ठ एंकर का राष्ट्रीय अवार्ड दिया है।
हमारी शुभकामनाएं जैनेंद्र सिंह को ।