समाचार विश्लेषण/सरकार के अहम् को चोट तो राजद्रोह?

समाचार विश्लेषण/सरकार के अहम् को चोट तो राजद्रोह?
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
क्या सरकार के अहम् को चोट पहुंचाने वाले को राजद्रोही माना जायेगा? सरकार ने तो माना लेकिन कोर्ट ने नहीं । यह फैसला पर्यावरणविद् दिशा रवि के मामले में आया और उसे जमानत दे दी गयी ।।है न कमाल । जिसे आपने देशद्रोही माना , उसे रिहा कर दिया गया । वह।भी सन् 1942 के पुराने फैसले के आधार पर जब अंग्रेजों का जमाना था । फैसले में कहा गया -सरकार के अहंकार को अगर चोट पहुंची है तो महज इसी आधार पर मंत्री पर राजद्रोह का मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता । यह भी कहा कि सरकारी नीतियों में निष्पक्षता रखने के लिए असहमति, अलग राय , मतभेद और नापसंदगी आदि वैधानिक रूप से मान्य हैं । संविधान में असहमति का हक दिया गया है । टूल किट में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया । रिकाॅर्ड में ऐसा कुछ नहीं जो दिशा की अलगाववादी सोच को दर्शाता हो । न उसके द्वारा दूसरों को उकसाने के प्रमाण हैं । सिर्फ आशंका के आधार पर किसी नागरिक की आजादी में बाधा डालने की इजाजत नहीं दी जा सकती ।

शुक्र है अभी न्यायपालिका स्तम्भ मजबूत है वर्ना हमारे चौथे स्तम्भ मीडिया ने तो काफी किरकिरी करवा रखी है । यहां तक कि कुछ चैनल्ज के एंकर्स तो साफ पिट्ठू बने नज़र आये हैं और बेशर्मी की हद तक सरकार की हां में हां मिलाते रहते हैं । यों ही गोदी मीडिया बदनाम नहीं हो रहा । इसीलिए किसान आंदोलन के बीच इस मीडिया के रिपोर्टर्ज का बहिष्कार तक किया गया और राकेश टिकैत के सामने एक तेज तर्रार महिला एंकर टिक न सकी । घुमा फिरा कर सरकार की तरफदारी करने की लत बढ़ती जा रही है । टीआरपी के चक्कर में सुशांत सिंह राजपूत चाहिए , राकेश टिकैत नहीं । ग्लैमर चाहिए, जनता के मुद्दे नहीं । यदि किसान आंदोलन को ढंग से कवर किया होता तो अब तक सरकार वार्ता की राह पर लौट चुकी होती । अभी तक सरकार इसे कोई गंभीर मामला ही नहीं मान रही चाहे सौ के आसपास लोग क़ुर्बान हो चुके हों पर हमारे हरियाणा के कृषि मंत्री इसे कुर्बानी मानने को तैयार नहीं और न कोई मुआवजा देने की बात मानते हैं  ऐसे मीडिया और मंत्री धन्य हैं जो जरा भी संवेदनशील नहीं । 

महापंचायतें हो रही हैं । भीड़ जुट रही है । विपक्ष को दोष देना बेकार है । इसे हवा सरकार ने दी है जो एक दर्जन बार अपने द्वार पर आए किसान को बात नहीं सुनी । अब एक फोन लेकर बैठे हैं और लगता है कि फोन चार्ज करना भूले बैठे हैं । यदि फोन चार्ज हो तो अब तक सब सुनाई देने लगता या वीडियो काॅल पे दिख जाता । अब गोदी मीडिया दिखाता नहीं तो देखोगे कहां ? 

देशद्रोह के मामले कभी संजय दत्त पर भी लगाये गये और रसूखदार पिता सुनील दत्त अपने बेटे को बचा लाए । सलमान खान हिरण के शिकार से पतंग उड़ाते बच निकले । बड़े रास्ता हैं साहब । कितना चिल्लाया मीडिया रिया, रिया लेकिन वह अपने घर बैठी है आराम से । न सारा अली खान को कुछ हुआ और न दीपिका पादुकोण को । रकुलप्रीत भी मज़े में है । तो मीडिया गलत दिशा में है ? जैसे रवि दिशा के मामले में भी ? 

लोकतंत्र में विपक्ष का मतलब ही असहमति । असहमति की आवाज अब स॔सद में बहुत कम संख्या में रह गयी । सही विपक्षी नेता का दर्जा तक नहीं कांग्रेस के पास । इसीलिए असहमति को दबाने की कोशिश निरंतर जारी है । लोकतंत्र को बचाने के लिए असहमति के स्वर को बचाना जरूरी है । इस दिशा में दिशा के केस ने मार्ग प्रशस्त किया है ।
इस सदन में मैं अकेला ही दीया हूं 
मत बुझाओ 
जब मिलेगी रोशनी 
मुझसे ही मिलेगी 

(रामावतार त्यागी)