लघुकथा/मैं नहीं जानता 

लघुकथा/मैं नहीं जानता 
कमलेश भारतीय।

बस में कदम रखते ही एक चेहरे पर नज़र टिकी तो बस टिकी ही रह गयी । यह चेहरा तो एकदम जाना पहचाना है । कौन हो सकता है ? सीट पर सामान टिकाते टिकाते मैं स्मृति की पगडंडियों पर निकल चुका था ।
अरे, याद आया । यह तो हरि है । बचपन का नायक । स्कूल में शरारती छात्र । गीत संगीत में आगे । सुबह प्रार्थना के समय बैंड मास्टर के साथ ड्रम बजाता था । परेड के वक्त बिगुल  । हर समारोह में उसके गाये गीत स्कूल में गूंजते । हर छात्र हरि जैसा हो ...अध्यापक उपदेश देते न थकते ।
घर की ढहती आर्थिक हालत उसे किसी प्राइवेट स्कूल का अध्यापक बनने पर मजबूर कर गयी । अपनी अदाओं से वह एक सहयोगी अध्यापिका को भा गया । पर ... समाज दोनों के बीच दीवार बन कर खड़ा हो गया । जाति बंधन पांव की जंजीर बनते जा रहे थे । ऐसे में हरि और उस अध्यापिका के भाग जाने की खबर नगर की हर दीवार पर चिपक गयी थी । कुछ दिनों तक तलाश जारी रही थी , कुछ दिनों तक अफवाहों का बाज़ार गर्म रहा था । फिर मेरा छोटा सा शहर सो गया था । हरि और वह लड़की कहां गये , क्या हुआ शहर इस सबसे पूरी तरह बेखबर था । हां , लड़की के पिता ने समाज के सामने क्या मुंह लेकर जाऊं , इस शर्म के मारे आत्महत्या कर ली थी । 
मैंने बार बार चेहरे को देखा , बिल्कुल वही था । हरि और साथ बैठी वह महिला ? हो न हो वही होगी । अनदेखी प्रेमिका ।
चाय पान के लिए बस रुकी तो मैं उतरते ही उस आदमी की तरफ लपका । 
- आपका नाम हरि है न ?
- हरि ? कौन हरि ? मैं नहीं जानता किसी हरि को ।
- झूठ न कहिए । आप हरि ही हैं ।
- अच्छा ? आपका हरि कैसा था ? कहां था ?
- हम एक ही स्कूल में पढ़ते थे । याद कीजिए वह शरारतें, वह बैंड बजाना ...गीत गाना..
-नहीं नहीं । मैं किसी हरि को नहीं जानता । 
हम बस के पास ही खड़े थे । खिड़की के पास बैठी हुई वह महिला हमारी बातचीत सुनने का प्रयास कर रही थी । उसने वहीं से पुकार लिया -हरि क्या बात है ? क्या पूछ रहे हैं ये ? 
अब न शक की गुंजाइश थी और न किसी और सवाल पूछने की जरूरत रह गयी थी । 
मैं चलने लगा तो उसने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा -भाई बुरा मत मानना । मैं नहीं चाहता था कि बरसों पहले जिस कथा पर धूल जम चुकी हो उसे झाड़ पोंछ कर फिर से पढ़ा जाये । मैं तुम्हारा नायक ही बना रहना  चाहता था पर वक्त ने मुझे खलनायक बना दिया । खैर , जिस हरि को तुम जानते थे वह हरि मैं अब कहां हूं ? उसकी आंखों में नमी उतर आई । शायद खोये हुए हरि को याद करके ...
-कमलेश भारतीय