पुरस्कार की गठरी से व्यवहार कुशल होना ज्यादा जरूरी: प्रो कुलदीप ढींडसा 

पुरस्कार की गठरी से व्यवहार कुशल होना ज्यादा जरूरी: प्रो कुलदीप ढींडसा 
प्रो कुलदीप ढींडसा।

-कमलेश भारतीय 
पुरस्कारों की गठरी से व्यवहार कुशल होना ज्यादा जरूरी है । व्यक्ति पुरस्कारों से लदा हो और व्यवहार विनम्र न हो , तो ऐसे पुरस्कारों का क्या फायदा ! यह कहना है सिरसा की जननायक विद्यापीठ के महानिदेशक प्रो कुलदीप सिंह ढींडसा का , जिन्होंने पूरे 34 साल हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय मे विभिन्न पदों पर बिताये और डीन पद से सेवानिवृत्त हुए । अमेरिका , जर्मनी में विजिटिंग प्रोसेसर रहे और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से सम्मानित भी हुए । हिसार आने पर ही इनसे मेरी मित्रता हुई जो आज तक चल रही है ।

-मूल रूप से कहां से हैं ?
-अम्बाला में स्थित लन्ढा गांव से ।
- शिक्षा कहां से ?
-हमारे गांव में तो प्राइमरी स्कूल भी नहीं था । पास के गांव लन्ढी  से प्राइमरी की । फिर  एक गांव केसरी   के स्कूल से मैट्रिक की । पैदल ही पढ़ने जाते थे ।
-इसके आगे की पढ़ाई?
-जी एम एन काॅलेज, अम्बाला से प्री इंजीनियरिंग और फिर पंजाब विश्वविद्यालय से एम एस सी ऑनर्स केमिस्ट्री और विश्व विख्यात प्रो आर सी पाॅल के मार्ग दर्शन में पीएचडी की । जो मेरे गुरु और आदर्श भी हैं ।
-शादी किससे और बच्चे ?
-शादी हुई हिसार के डीसी हरफूल सिंह की बेटी शकुंतला से । वे बीए बीएड थीं लेकिन मात्र 42 वर्ष की अवस्था में  कैंसर के चलते विदा हो  गयीं । बेटा अभिषेक जो डेंटल साइंस का प्रोफेसर है  और बेटी पूजा जो एमिटी यूनिवर्सिटी में  मास मीडिया में प्रोफेसर है ।
-पहली जाॅब कहां ?
-मैं हिसार आया हुआ था । मुझे कुलपति फ्लैचर से मिलने का अवसर मिला । उन्होंने सैर करते करते बातचीत की और दूसरे दिन अपने ऑफिस आने को कहा । जब मिला तो मुझे अस्थायी तौर पर वैज्ञानिक नियुक्त कर दिया । इस तरह सन् 1971 से मेरी यात्रा हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से शुरू हुई और मैं विभिन्न पदों पर काम करते करते डीन के पद से सन् 2005 में सेवानिवृत हुआ । इस दौरान अनेकों बार विदेशों में जाने का मौका मिला जहां मैंने नए अनुसंधान और नए उपकरणों का ज्ञान प्राप्त किया। मैंने इन 34 वर्षों की स्मृति में  अपने आवास के आसपास 34 पेड़ भी लगाये और उनका पोषण किया। इनमें एक त्रिवेणी भी शामिल है जिसकी अब आसपास के लोग निरंतर पूजा करते हैं ।
-कोई पुरस्कार ?
-पुरस्कारों की गठरी भरी पड़ी है मित्र ! पर मुझे यह भी खुशी है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से वैज्ञानिक के तौर पर राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी  सहित अनेक पुरस्कार सम्मान मिले । अमेरिका और जर्मनी में विजिटिंग प्रोफैसर भी रहा । 
-आपके शौक ?
-बैडमिंटन और रिसर्च में लगातार रूचि ।
-आपके प्रेरक कौन ?
-मेरे मां बाप -शांति देवी और मामराज सिंह । स्वामी विवेकानंद , गुरु गोविंद सिंह , ए पी जे अब्दुल कलाम और प्रो आर सी पाॅल ।
-इतने वर्ष तक शिक्षक रहकर क्या संदेश देंगे ?
- शिक्षक को अपने विद्यार्थियों को बच्चे समान समझना चाहिए अपना ज्ञान लगातार बढ़ाते जाना चाहिए ताकि बच्चों की उत्सुकता और सवालों को शांत कर सकें ।
-हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बाद कहीं और भी काम किया ?
-मुलाना यूनिवर्सिटी में सन् 2007 में महानिदेशक के तौर पर काम किया। फिर 2007 से 2010 तक  जननायक चौधरी देवी लाल विद्यापीठ , सिरसा में भी  महानिदेशक के पद पर कार्य किया । परिणाम  स्वरूप जननायक चौधरी देवीलाल विद्यापीठ की गिनती उत्तर भारत के अग्रणी संस्थानों में होने लगी। अब दोबारा मुझे विद्यापीठ के महानिदेशक के पद पर फिर से कार्य  करने के लिए आमंत्रित किया गया और मुझे पूर्ण विश्वास है की सभी के सहयोग से हम विद्यापीठ को और अधिक बुलंदियों पर ले जाएंगे ।
-क्या कहना है आपका पुरस्कारों पर ?
-पुरस्कारों की गठरी से ज्यादा व्यवहार कुशल होना और विनम्र बने रहना ज्यादा जरूरी है ।