समाचार विश्लेषण/महापंचायत की चोट और सरकार
-*कमलेश भारतीय
आखिर राकेश टिकैत ने यह उलाहना दूर कर दिया कि वे उत्तर प्रदेश छोड़ कर दिल्ली या हरियाणा में किसान आंदोलन क्यों चला रहे हैं ? उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत आयोजित कर दिखा दी अपनी ताकत और किसान आंदोलन की गूंज सूना दी मुख्यमंत्री योगी व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जो अब भी एक फोन काॅल की दूरी बनाये बैठे हैं । हालांकि भाजपा के ही उत्तर प्रदेश के सांसद वरुण गांधी ने आग्रह किया अपनी सरकार से कि किसानों का दर्द समझना होगा । उनकी रगों में भी हमारा ही खून है । हमें उनसे सम्मानजनक तरीके से बात कर उनका दर्द समझने और आम सहमति बनाने की जरूरत है । वरुण की मां व सांसद मेनका गांधी ने भी इसे रिट्वीट कर समर्थन किया । जयंत चौधरी ने भी इस बात का स्वागत् किया ।
दूसरी ओर भाजपा के सांसद राजकुमार चाहर ने इस महापंचायत को चुनावी सभा करार देते कहा कि यह शुद्ध राजनीति है । किसानों की चिंता से इसका कुछ लेना देना नहीं । विपक्ष और किसान नेता राजनीति चमकाने के लिए किसानों के कंधे का इस्तेमाल कर रहे हैं ।
इसमें कोई दो राय नहीं । राजनीति इसी का नाम है जाॅनी । एक का नुकसान तो दूसरे का फायदा । क्या आपने कांग्रेस की गलतियों के फायदे नहीं उठाये ? क्या आपने अन्ना हजारे के आंदोलन को हवा नहीं दी थी ? आज कहां गये वे महान् समाजसेवी , गांधीवादी अन्ना हजारे ? उन्हें किसानों के आंदोलन से कोई सरोकार क्यों नहीं ? राजनीति के चलते वे चुप्पी ओढ़े क्यों बैठे हैं ? न करें अनशन , अब उम्र ज्यादा हो गयी है लेकिन एक बयान तो जारी कर ही सकते हैं कि नहीं ?
क्या महापंचायत की गूंज सुनाई नहीं दी ? यह उतार प्रदेश और उत्तराखंड के आने वाले विधानसभा चुनावों पर चोट है । उत्तराखंड में तो इसी साल तीन तीन मुख्यमंत्री चेहरे बदल बदल कर देख लिये , हालत इतनी खराब है भाजपा की । अभी 27 सितम्बर को फिर भारत बंद का आह्वान किया गया है । कब तक फोन काॅल की दूरी बनाये रखोगे साहब ? कब तक अनदेखी करते रहोगे किसानों की ? भाजपा के शीर्ष नेताओं का राजहठ बहुत चोट पहुंचायेगा वोट पर ।
राकेश टिकैत ने घोषणा की है कि उत्तर प्रदेश में अलग अलग क्षेत्रों में महापंचायतों का आयोजन किया जाता रहेगा । अब भी अपने मन की करते रहोगे साहब या दूसरों की भी सुनोगे ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।