कितना खर्च विधायकों पर किसी को क्या फिक्र?

कितना खर्च विधायकों पर किसी को क्या फिक्र?
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
राजस्थान में सत्ता की उठी पटक लम्बी खिंचती जा रही है और इसी कारण दोनों खेमों के विधायकों के रिसोर्ट्स में रहने के दिन भी बढ़ते जा रहे हैं । मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बीच बीच में इन्हें संभालने , देखने भालने चले जाये हैं और इसे नाम देते हैं विधायक दल की बैठक । यों बैठक से पहले विधायक देखते हैं पुराने जमाने की मुगल ए आजम फिल्म या फिर खेलते हैं अंताक्षरी । सोफों पर अधलेटे । क्या करें ? कहां जायें ? लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी सरकार को बचाने की भारी जिम्मेदारी जो इन कोमल कंधों पर आन पड़ी है । जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा, गहलोत सरकार को बचाना पड़ेगा । दूसरी ओर सचिन पायलट गुट के विधायक हरियाणा के रिसोर्ट और हरियाणा सरकार की मेहमानबाजी का भरपूर लुत्फ उठा रहे हैं । वे भी गा रहे हैं कि सरकार को गिराना पड़ेगा । राजस्थान की पुलिस तक इनको छू नहीं पाती । ये अपनी खुशकिस्मती को लेकर पता नहीं खुश हैं या दुखी । इन्हें मिलने पायलट नहीं बल्कि राजस्थान के भाजपा नेता आ रहे हैं । लो कर लो बात । अभी ये वीडियो जारी करके कहेंगे हम तो अभी तक कांग्रेसी विधायक हैं । हमारे ऊपर कोई व्हिप कैसे ? कोर्ट ने इसीलिए दो दिन बाद फैसला सुनाने की बात कही है । 
राजस्थान की इस रिसोर्ट राजनीति को लेकर टीवी चैनल्ज इसके खर्च की बात बता रहे हैं कि प्रतिदिन रिसोर्ट के एक कमरे का किराया आठ हजार रुपया है । इसके अतिरिक्त खान पान । सारी सुविधाएं । लेखः लाखों रुपये एक ही दिन में खर्च होते हैं दोनों तरफ । किसी को कोरोना से लड़ने की कोई फिक्र नहीं । इस तरह रक्षा बंधन भी आ जायेगा और सरकार की रक्षा के लिए बहनों से राखी शायद न बंधवायी जा सकेगी या फिर सामुहिक रक्षा बंधन समारोह रिसोर्ट में आयोजित किया जायेगा ? पहले भी किसी दूसरे राज्य के विधायकों की बहनें रिसोर्ट से खाली हाथ लौटी थीं । आखिर यह लोकतंत्र की कौन सी छवि है ? लोकतंत्र को कौन सा नया लुक दिया जा रहा है ? मेक इन डेमोक्रेसी ? कैसी डेमोक्रेसी? विधायक हो कैद में गुनगुना रहे हैं जैसे कैद में हो बुलबुल । आखिर यह किसकी उपलब्धि है ? कैसी उपलब्धि है ? कहां जा रहे हैं हम? कहां पहुंचेंगे? किसी ने मज़ाक में लिखा है कि यदि सरकार विधायकों की खरीद फरोख्त से ही बनानी है फिर चुनाव का झंझट किसलिए ? पहले दिन से ही खरीद की मंडी लगा लो न । क्यों जनता को परेशान करते हो ? ये फाॅर्म भरने जाते शक्ति प्रदर्शन किसलिए ? राजनीति ने एक बार तो कर दी कि अपने पराये का भेद मिटा दिया । कल तक तो जो पराये विधायक थे वो आज अपने हैं और जो अपने थे वो आज पराये हैं । सच । कितनी बदल गयी राजनीति ? कोई भेदभाव नहीं रहा ।