समाचार विश्लेषण/फिर दूल्हे ने मांगी कार, दुल्हन ने लौटाई बारात 

समाचार विश्लेषण/फिर दूल्हे ने मांगी कार, दुल्हन ने लौटाई बारात 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
यह घटना करनाल की है जैसे कि दुलहन डाॅ कोमल का कहना है कि सी एम सिटी की घटना है और अभी तक तो दूल्हे को गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए था । मौका था शादी का , खुशी का लेकिन बदल गया मातम में और पहुंच गया थाने में मामला । ऐसा क्या हो गया ? दुल्हन का कहना है कि अचानक से बीस लाख रुपये और कार की मांग पर मामला बिगड़ गया । मेरे पापा और ताऊ दूल्हे वालों के पांव पकड़ते रहे लेकिन वे लात मारते रहे । इस दृश्य को देखकर मैंने इस शादी से ही इंकार कर दिया । वैसे दूल्हे नसीब सिंह का कहना है कि न कार मांगी , न कैश । मुझे तो कार चलानी भी नहीं आती । एक ऑडियो काॅल पुलिस को सौंपी है जिसमें बातचीत में क्या करना है पूछ रहे हैं दुल्हन के पापा और दूल्हे नसीब सिंह का कहना है कि वह साबित करेगा कि दहेज नहीं मांगा था । शादी न करने की वजह कोई और हो सकती है । 
इसके उलट एक ऐसी सादी शादी भी इन दिनों चर्चा में है और इसमें दूल्हा अपनी दुल्हन को मोटरसाइकिल पर ही शादी के फेरों के बाद अपने घर ले जा रहा है । इससे भी पहले कैथल के एक काॅलेज के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ने ग्यारह लाख रुपये का शगुन लेने से इंकार कर दिया था । ये बहुत भी पाॅजिटिव और समाज में बदलाव की अच्छी खबरें हैं । चाहे दहेज न मांगा गया हो या फिर दहेज मांगने का विरोध किया गया हो । ये शुभ संकेत हैं और बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ को भी सार्थक कर रहे हैं । बेटी डाॅ कोमल पढ़ी लिखी थी तभी तो अपने पापा और ताऊ की बेइज्जती बर्दाश्त न कर सकी और शादी से इंकार करने में देर न लगाई । ऐसी ही साहसी लड़कियों की जरूरत है । तभी पढ़ाई लिखाई का कोई मतलब है । पढ़ाई वह हो जो ज़िंदगी को समझने में मदद करे , सिर्फ नौकरी पाने के लिए डिग्रियां न हों ।
दहेज एक महामारी का रूप ले चुका है और इसे प्रदर्शन और मांग का रूप दे दिया गया है । यह बहुत गलत परंपरा या रीति रिवाज है । इस परंपरा और रिवाज को तोड़ने के लिए युवा वर्ग को ही आगे आना होगा और अपनी सोच भी बदलनी होगी कि दहेज में की गयी मांग से सारी ज़िंदगी  नहीं चलने वाली । जो इन दोनों हाथों से कमा कर खिलायेंगे, यही सम्मान पूर्वक होगा न कि शादी के दिन पूलिस स्टेशन जाना । दुल्हन ही दहेज है , यह सोच बनानी होगी।
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी।