स्वायत्तता के नाम पर केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को आर्थिक तंगी में धकेल रही है सरकारः सांसद दीपेन्द्र हुड्डा
कहा, केंद्र की भाजपा सरकार अपनी ही बनाई नीतियों को भी नहीं मान रही।
नई दिल्ली, गिरीश सैनी। सांसद दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि लोकसभा में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में वित्तीय कमी को लेकर पूछे गए सवाल पर सरकार का जवाब उच्च शिक्षा के प्रति सरकार की उदासीनता और गैर-जिम्मेदार रवैये को उजागर करता है।
सांसद ने कहा कि केंद्र की बीजेपी सरकार अपनी ही बनाई नीतियों को भी नहीं मान रही है। उनके द्वारा देश में उच्च शिक्षा के लिए जीडीपी का कितना प्रतिशत आवंटित किए जाने के सवाल के जवाब में शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार ने बताया कि 2021-22 में शिक्षा पर कुल खर्च जीडीपी का सिर्फ 4.12% और उच्च शिक्षा पर मात्र 1.29% रहा। जबकि, मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा संबंधी कुल बजटीय व्यय को जीडीपी का 6% करने की अनुशंसा की गई है।
सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि सरकार केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को आर्थिक रूप से कमजोर कर देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। सरकार ने उनके सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया कि पिछले दस वर्षों में किन-किन केन्द्रीय विवि ने आर्थिक संकट की सूचना दी और धनाभाव कितना रहा। इसके बजाय स्वायत्त संस्थान होने का बहाना बनाकर पूरी जिम्मेदारी विवि और यूजीसी पर डाल दी गई। सबसे गंभीर बात यह है कि सरकार ने यह स्वीकार करने से भी परहेज किया कि वित्तीय कमी का असर शिक्षकों के वेतन, आधारभूत ढांचे, छात्र कल्याण और शोध कार्यों पर पड़ा है।
दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि कई केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में स्वीकृत पद खाली पड़े हैं, शोध अनुदान सिमट रहे हैं और छात्रों पर फीस का बोझ लगातार बढ़ रहा है। सरकार दावा कर रही है कि अनुदान बढ़ाया गया है, लेकिन हकीकत यह है कि महंगाई और बढ़ती जरूरतों के मुकाबले बढ़ोतरी नाकाफी है। ब्लॉक ग्रांट के नाम पर विवि को निधियों की उपलब्धता के आधार पर निधियां आवंटित होने की बात कहकर केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड रही है।
Girish Saini 


