समाचार विश्लेषण/क्या कठपुतलियों से बात करते हैं?

समाचार विश्लेषण/क्या कठपुतलियों से बात करते हैं?
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच छत्तीस का आंकड़ा है और नये विधानसभा चुनाव के बाद भी यह आंकड़ा कायम है । कोई बदलाव नहीं आया । विधानसभा चुनाव की रैलियों में प्रधानमंत्री और ममता बनर्जी ने एक दूसरे को जीभर कर कोसा और मान मर्यादा का खुलेआम उल्लंघन भी किया । पिछले पांच वर्ष भी ऐसे ही बयानबाज़ी में और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप में निकल गये । अब नयी पारी शुरू होते ही पश्चिमी बंगाल के राज्यपाल भी इसमें शामिल हो गये हैं । न केंद्र से कोई मदद और न ही राज्यपाल का कोई सहारा । बस ममता अपने ही अंदाज में इनका मुकाबला करती नज़र आ रही हैं । 

पहले राज्यपाल को जवाब दिया कि मेरी प्राथमिकता कोरोना से लड़ने व राज्य को बचाने की है । फिर केंद्र को लिखे कि यह यह चाहिए ताकि मैं अच्छे से कोरोना से जंग लड़ सकूं।

अब कोरोना पर बात करने साहब ऑनलाइन मुख्यमंत्रियों से जुड़े । पहले भी जुड़े थे जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वीडियो वायरल कर दिया था और साहब नाराज होकर प्रोटोकाॅल की दुहाई देने लगे थे और अरविंद केजरीवाल ने बड़ी मासूमियत से साॅरी हर कह कर बैठना मुनासिब समझा । अब फिर मुख्यमंत्रियों की बैठक थी और इस बार पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल थीं । सारे देश को पता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच छत्तीस का आंकड़ा है । यह और बड़ा हो गया जब से साहब वहां से हार कर लौटे हैं और राज्यपाल के सहारे अपने मन की करना चाहते हैं । पर ममता भी अपनी तरह की मिट्टी की बनी हैं।  

मुख्यमंत्रियों की बैठक में जब उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया तो उन्होंने तुरंत कहा कि हम कठपुतलियां नहीं हैं , मुख्यमंत्री हैं । हमें बोलने का अवसर न देकर हमारा अपमान किया गया है । 

यह साबित हो गया कि मन की बात करते और कहते हैं कभी दूसरे की सुनते नहीं । ममता के अनुसार भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ही बोलने का अवसर दिया गया व उनके ही मांगे मानी गयीं । 

यह मत भूलिये कि आप एक देश के प्रधानमंत्री हैं , किसी विशेष पार्टी के नहीं । एक तरफ तो राज्यपाल से दवाब बना रहे हैं कि कोरोना से लड़ाई लड़ो और दूसरी ओर कोई बात या सुझाव नहीं सुन रहे आप । यह कैसा तरीका है ? आखिर दो तरफा बातचीत कीजिए । मन की बात एकतरफा कब तक करते रहोगे ? विपक्ष की सद्भावना बैठक भी बुलाने का सुझाव रद्दी की टोकरी में डाल देते हो और कांग्रेस पर राजनीति करने का आरोप लगा कर अपने मीडिया को इसके पीछे बदनाम करने में जुट जाते हो । सही कहा अनुपम खेर ने कि अपनी इमेज की छोड़िए , यह समय चूक करने का नहीं है साहब।  पर साहब हैं कि अपनी ही मन की उलझनों में बंद हैं । 

कठपुतलियां न नचाइए और न कठपुतलियां नाचने को तैयार हैं ।  
दुष्यंत कुमार के शब्दों में : 
दस्तकों का अब किवाड़ों पर 
असर होगा जरूर 
हर हथेली खून से तर 
और ज्यादा बेकरार