दीपावली: है अंधेरी रात पर दीया जलाना कब मना है ...

दीपावली: है अंधेरी रात पर दीया जलाना कब मना है ...
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
दीपावली है आज । हमारी भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा पर्व और सबसे बड़ा इसका संदेश -अधर्म पर धर्म की जय । सभी वर्गों का सम्मान । श्रीराम लंकापति रावण को हराकर अयोध्या लौटे थे तो जनता ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत् किया था । रामायण की कथा मर्यादा की कथा है , संस्कार की कथा है और हर कदम पर इसका हर चरित्र कोई न कोई संदेश देता है । राम जैसा आज्ञाकारी बेटा , लक्ष्मण और भरत जैसे आदर्श भाई , सीता जैसी पत्नी , हनुमान जैसा सेवक , विभीषण जैसा मित्र ,,, कितने ही चरित्र हमारे मन में रचे बसे हुए हैं । पीढ़ी दर पीढ़ी और लगातार ये पर्व हमें संदेश देता आ रहा है -अंधकार से लड़ने का , संघर्ष करने का । राम जंगल जंगल भटके , कभी भीलनी के झूठे बेर खाये , कभी आश्रमों को राक्षसों से मुक्त किया तो कभी सुग्रीव को न्याय दिलाया ।
जब से अयोध्या में दीपावली मनाई गयी तब से लेकर आज तक हर वर्ष  अमावस्या की रात को दीपावली मनाई जाती है । अंधेरे को दूर करने , अन्याय से लड़ने का संदेश देने यह पर्व आता है । इसीलिए ये पंक्तियाँ भी बहुत याद आती हैं : 
है अंधेरी रात 
पर दीया जलाना 
कब मना है 
हमारे आज के समय में यह और भी प्रेरक पंक्तियां हैं । आज जिस तरह का वातावरण है , असहिष्णुता बढ़ती जा रही है , सीता के हरण और उनके सम्मान पर पूरी रामायण रची गयी और महिला के सम्मान के लिए युद्ध हुआ । आज कितने अत्याचार हो रहे हैं महिलाओं पर ? कोई अंत नहीं है इनका । कितने रावण हैं ? हर साल रावण दहन करने पर भी रावण जिंदा कैसे रह जाता है कि उसे अगले साल फिर जलाना पड़ता है ।
असहिष्णुता कितनी बढ़ती जा रही है ,,,,धर्म के नाम पर ,,,मंदिर मस्जिद के नाम पर,,,अजान के नाम पर ,,, ईश्वर और अल्लाह के नाम पर ,,,,,समाचार आते रहते हैं धार्मिक उन्माद के । हमें सब धर्मों का आदर करने , सम्मान करने और सहिष्णु होने की जरूरत है । 
अंधेरा राजनीति में भी बढ़ता जा रहा है । राजनीति स्वच्छ नहीं रही । लगातार मैली होती जा रही है । सरकारें सही नहीं जातीं और उन्हें गिराने के लिए कितने बल और छल किये जाते हैं । कोई सीमा नहीं । जैसे महाभारत के युद्ध में सारी सीमायें लांघी जाती रहीं और चक्रव्यूह रचे जाते रहे , नियम और मर्यादा ताक पर रखी जाती रही , बिल्कुल वैसे ही राजनीति में साम , दाम , दंड , भेद का खुलकर उपयोग किया जा रहा है और हर दिन महाभारत याद आती है । हर दिन लाक्षागृह याद आता है । कौन इसे स्वच्छ करेगा ? इस राजनीति को कौन संविधान की राह पर लायेगा ? इतना अकूत धन सरकारें गिराने में और फिर भी हमारा देश गरीब है ? गरीब और अमीर में फासला बढता जा रहा है । 
इस देश को फिर जोड़ने की जरूरत महसूस कर एक नेता यात्रा पर है । ऐसी जरूरत क्यों पड़ गयी ? देश को जोडने का संदेश विनोबा भावे दिया करते थे । नक्शा जोड़ने को देते थे । कितने राज्य हमारे भाषा या अन्य कारणों से अलग बने ? अभी और कितने राज्य बनेंगे ? आपस में कब तक भाषा के नाम पर लड़ेंगे ? दक्षिण को हिंदी से क्या वैर है और क्यों विर है ? 
कितना कुछ विचार करने के लिये है लेकिन आज के दिन सबको दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ।
आइए पर्यावरण को प्रदूषित न करने का प्रण लें और पटाखों पर बर्बाद किये जाने वाले पैसे किसी गरीब की मदद को देकर उन्हें भी दीपावली की खुशियां प्रदान करें ! 
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।