इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ मिलते ही बढ़ी माँग

पाँच दिन में 35 हजार से अधिक प्रतियाँ बिकीं ‘रेत-समाधि’ की

इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ मिलते ही बढ़ी माँग

रेत-समाधि के प्रकाशक राजकमल प्रकाशन ने दी जानकारी; यह हिन्दी साहित्य और समाज की संभावना की उत्साहजनक झलक है : आमोद महेश्वरी, सीईओ, राजकमल प्रकाशन

नई दिल्ली। इंटरनेशनल बुकार प्राइज़ मिलते ही वरिष्ठ कथाकार गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत-समाधि’ की माँग पाठकों के बीच काफी बढ़ गई है। महज पाँच दिन में ही इस उपन्यास की 35 हजार (पैंतीस हजार) से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं पाठक लगातार इसकी माँग कर रहे हैं। ‘रेत-समाधि’ हिन्दी की पहली किताब है जिसने वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित यह पुरस्कार जीत कर इतिहास कायम किया है। अब पाठक जिस उत्साह से रेत-समाधि को खरीद रहे हैं वह भी हिन्दी साहित्यिक पुस्तकों की ब्रिक्री के क्षेत्र में इतिहास रचनेवाला साबित हो रहा है।

‘रेत-समाधि’ के अंग्रेजी अनुवाद ‘टुम ऑफ सैंड’ को इस वर्ष का इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ दिए जाने की घोषणा 26 मई को की गई थीं। यह खबर मिलते ही लोग अपने करीबी बुक-स्टोरों में इस उपन्यास की तलाश करने लगे। इसके लिए ऑनलाइन ऑर्डर देने वालों की तादाद भी तत्काल बढ़ गई। पाठकों के उत्साह का आलम यह है कि तब से 2 जून तक, महज पाँच दिन के अन्दर इस उपन्यास की 35 हजार से अधिक प्रतियाँ बिक गईं।

राजकमल प्रकाशन के सीईओ आमोद महेश्वरी ने बताया कि ‘रेत-समाधि’ का पहला संस्करण 2018 में प्रकाशित हुआ था। उस समय से ही इसकी चर्चा शुरू हो गई थी। गीतांजलि श्री साहित्यिक दायरे में काफी प्रतिष्ठित हैं और उनकी कृतियों ने हमेशा लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। लेकिन यह पहली बार है जब ‘रेत-समाधि’ को लेकर इतने व्यापक स्तर पर उत्सुकता दिख रही है।

उन्होंने बताया, 26 मई की देर रात लंदन में ‘रेत-समाधि’ को इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ दिए जाने की घोषणा हुई। उस पर भारत समेत पूरी दुनिया की नजर थी। हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं के लिए यह पहला मौका था जब उनकी कोई कृति बुकर पुरस्कार के अन्तिम चरण में पहुँची थी। ‘रेत-समाधि’ ने यह पुरस्कार जीतकर इतिहास रच दिया। हिन्दी पाठकों ने भी ‘रेत-समाधि’ को पढ़ने के प्रति अभूतपूर्व उत्साह दिखाया। 27 मई से 2 जून के बीच ‘रेत-समाधि’ की 35,200 प्रतियों की बिक्री हुई। हालाँकि बीते मार्च के आखिरी हफ़्ते में जब ‘रेत-समाधि’ के बुकर की लॉन्ग लिस्ट में शामिल होने की खबर आई थी, तभी से इसकी माँग बढ़ने लगी थी। जब यह उपन्यास बुकर की शॉर्ट लिस्ट में पहुँच गया तब उसकी माँग और बढ़ी। लेकिन पुरस्कार की घोषणा होते ही ‘रेत-समाधि’ की माँग में एकदम से उछाल आ गया।

आमोद महेश्वरी ने कहा, यह हिन्दी साहित्य और समाज में निहित सम्भावना की उत्साहजनक झलक है। इससे पाठकों की कमी को लेकर भी स्थिति स्पष्ट होती है। फिलहाल ‘रेत-समाधि’ का नौवाँ संस्करण प्रकाशित हो रहा है। अभी तक इसकी 46,000 (छियालीस हजार) प्रतियाँ बिक चुकी हैं, जिनमें पेपरबैक की 41000 (इकतालिस हजार) से अधिक प्रतियाँ शामिल हैं।

और पाठकों की तरफ से रोज-रोज माँग आ रही है। गीतांजलि श्री की अन्य पुस्तकों के प्रति भी पाठक विशेष दिलचस्पी दिखा रहे हैं।