एमडीयू में डा. अंबेडकर और महर्षि दयानंद विषयक पुस्तकों का विमोचन
गोल्डन जुबली वर्ष में एमडीयू प्रेस से प्रकाशित होंगी 50 पुस्तकें: कुलपति प्रो. राजबीर सिंह

रोहतक, गिरीश सैनी। एमडीयू के विवेकानंद पुस्तकालय में आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने दलित और महिला उत्थान में डा. अंबेडकर का योगदान और महर्षि दयानंद सरस्वती (बाल साहित्य) विषयक पुस्तकों का विमोचन किया।
कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने दलित और महिला उत्थान में डा. अंबेडकर का योगदान पुस्तक के लेखक विक्रम सिंह डूमोलिया तथा महर्षि दयानंद सरस्वती (बाल साहित्य) पुस्तक के लेखक डा. मधुकांत को बेहतर लेखन एवं पुस्तक प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी।
कुलपति ने डॉ. भीमराव अंबेडकर और महर्षि दयानंद सरस्वती को समाज के सच्चे नायक बताते हुए कहा कि ये दोनों विभूतियाँ केवल अपने समय के ही नहीं, बल्कि आज के युवाओं के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक समानता, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के लिए जो योगदान दिया, वह आज भी प्रासंगिक है। वहीं महर्षि दयानंद का चिंतन और शिक्षा संबंधी विचार नई पीढ़ी को नैतिक मूल्यों से जोड़ने में सहायक हैं।
कुलपति ने इस अवसर पर विवि के गोल्डन जुबली वर्ष (स्वर्ण जयंती वर्ष) के उपलक्ष्य में एमडीयू प्रेस प्रकाशन के बैनर तले 50 पुस्तकों का प्रकाशन करने की घोषणा की। उन्होंने बताया कि आगामी समय में पुस्तक विमोचन समारोह को और भी व्यापक और प्रभावशाली स्वरूप दिया जाएगा, ताकि विवि के बौद्धिक वातावरण को नई दिशा और गति मिल सके।
डीन, एकेडमिक अफेयर्स प्रो. हरीश कुमार ने कहा कि विकसित भारत की कल्पना को साकार करने के लिए तथा देश में समरसता लाने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती और डा. बी.आर. अंबेडकर के विचारों को अपनाना आवश्यक है। विवेकानंद लाइब्रेरी के अध्यक्ष डा. सतीश मलिक ने प्रारंभ में स्वागत भाषण देते हुए युवाओं से पठन-पाठन की आदत विकसित करने का आह्वान किया। डिप्टी लाइब्रेरियन डा. सीमा ने कार्यक्रम का संचालन किया और आभार जताया।
लेखक विक्रम सिंह डूमोलिया ने अपनी पुस्तक का सार प्रस्तुत करते हुए दलित एवं महिला उत्थान में डा. अंबेडकर द्वारा दिए गए योगदान के अनछुए पहलुओं को सामने रखा। डा. मधुकांत की पुस्तक का सार प्रतिष्ठित साहित्यकार एवं एमडीयू की सेवानिवृत प्रोफेसर डा. अंजना गर्ग ने प्रस्तुत किया और बच्चों में साहित्य के जरिए नैतिक मूल्यों को विकसित करने की दिशा में इस पुस्तक को महत्वपूर्ण बताया।
इस दौरान साहित्यकार डा. श्याम कौशल, डा. रमाकांता, प्रो. राजकुमार, प्रो. देसराज, प्रो. जितेन्द्र प्रसाद, डा. श्रीभगवान, डा. जर्नादन शर्मा, डा. प्रताप राठी, सहित विवि के वरिष्ठ अधिकारी, प्राध्यापक, लेखक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।