पेश है -अश्विनी जेतली की क़लम से एक और खूबसूरत `ग़ज़ल'

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पेश है -अश्विनी जेतली की क़लम से एक और खूबसूरत `ग़ज़ल'
अश्विनी जेतली।

आर्ट वर्क- गरिमा धीमान।

लबों की मसनवी मुस्कान यारो अपनी है 
मैं लापता हूँ, ये पहचान यारो अपनी है 

मेरे वजूद का टुकड़ा खफ़ा हुआ जब से 
हुई है बेवफ़ा ज़िन्दगान यारो अपनी है 

उसने ऐसा किया ताल से बेताल, कि अब
सिर्फ इक बेसुरी सी तान यारो अपनी है

धड़कती है चहकती है उसी के इशारे पर 
सजन की हो गई अब जान यारो अपनी है 

अपनी तरकश के सभी तीर बेवफ़ा निकले
फ़िक्र में डूबी हुई ये कमान यारो अपनी है।