आनुवंशिक रोगों की समझ और समाधान की ओर एक पहल

जेनेटिक काउंसलिंग में नया डिप्लोमा प्रारंभ।

आनुवंशिक रोगों की समझ और समाधान की ओर एक पहल

रोहतक, गिरीश सैनी। एमडीयू के जेनेटिक्स विभाग ने जेनेटिक काउंसलिंग में एक वर्षीय परास्नातक डिप्लोमा पाठ्यक्रम प्रारंभ किया है, जो आनुवंशिक बीमारियों के निदान, परामर्श, रोकथाम और सामाजिक प्रभावों को समझने में विद्यार्थियों को दक्ष बनाएगा।

विभागाध्यक्ष प्रो. संतोष कुमार तिवारी ने बताया कि इस कड़ी में विभाग ने अगस्त माह को एसएमए (स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी) जागरूकता माह के रूप में मनाया औऱ समाज में इस गंभीर और दुर्लभ बीमारी के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न की। आयोजन में जीवन विज्ञान संकाय की अधिष्ठाता प्रो. मीनाक्षी वशिष्ठ, विभागाध्यक्ष प्रो. संतोष कुमार तिवारी, विभागीय शिक्षक डॉ. रितु यादव, डॉ. नीलम सहरावत और डॉ. मुकेश तंवर, जेनेटिक काउंसलर अनुराधा शर्मा सहित डिप्लोमा के विद्यार्थियों ने भाग लिया।

प्रो. संतोष कुमार तिवारी ने बताया कि एसएमए एक प्रगतिशील और आनुवांशिक न्यूरोमस्कुलर रोग है, जिसमें शरीर की मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होती जाती हैं। इसका मुख्य कारण एसएमएन 1 जीन में म्यूटेशन होता है। यह ऑटोसोमल रिसेसिव प्रकृति का रोग है, जिसमें माता-पिता दोनों वाहक होने पर बच्चे को बीमारी हो सकती है।

एसएमए टाइप 1 में जन्म के बाद पहले 6 माह में लक्षण; सबसे गंभीर रूप; श्वसन समस्याएं आम होती हैं। टाइप 2 में 6-18 माह में लक्षण; बैठ सकते हैं, पर चल नहीं पाते। टाइप 3 में बचपन/किशोरावस्था में शुरुआत; चल सकते हैं, पर मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होती हैं। टाइप 4 में वयस्क अवस्था में लक्षण; सबसे हल्का रूप होता है।

उन्होंने बताया कि जेनेटिक परीक्षण (जेनेटिक टेस्टिंग) से एसएमएन 1 जीन में दोष की पुष्टि संभव है। ईसीजी, मसल बायोप्सी और नवजात जांच (न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग) से रोग की प्रारंभिक पहचान की जा सकती है। जीन थेरेपी, नई दवाएं जैसे स्पिनराझा, रेस्पिरेटरी सपोर्ट, फिजियोथेरेपी, पोषण प्रबंधन, एवं मानसिक सहयोग रोगियों की गुणवत्ता भरी ज़िंदगी में सहायक हैं। वाहक माता-पिता की समय पर पहचान (करियर स्क्रीनिंग) – विशेषकर विवाह से पहले या गर्भावस्था के दौरान – अगली पीढ़ी को एसएमए से बचाने में मदद कर सकती है।

प्रो. तिवारी ने बताया कि जल्दी पहचान, सही परामर्श और पारिवारिक सहयोग से एसएमए के जीवन को उम्मीद दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि जेनेटिक जागरूकता ही स्वस्थ समाज की कुंजी है।