समाचार विश्लेषण/सबसे छोटी संसद के चुनाव क्यों नहीं ?

महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत गांवों में बसता है । मुंशी प्रेमचंद ने तो आगे बढ़कर कहानी लिखी थी -पंच परमेश्वर । यानी गांव और इसकी छोटी सी संसद यानी पंचायत का बहुत महत्त्व है ।

समाचार  विश्लेषण/सबसे छोटी संसद के चुनाव क्यों नहीं ?
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत गांवों में बसता है । मुंशी प्रेमचंद ने तो आगे बढ़कर कहानी लिखी थी -पंच परमेश्वर । यानी गांव और इसकी छोटी सी संसद यानी पंचायत का बहुत महत्त्व है । इसके बावजूद पहले उत्तर प्रदेश में तो अब हरियाणा में पंचायत चुनाव करवाने में देरी क्यों की जा रही है ? हरियाणा के पूर्व मंत्री चौ कंवल सिंह ने बताया कि लगभग साल से पंचायत चुनाव ड्यू हैं लेकिन सरकार है कि कोई फिक्र ही नहीं और पंचायत चुनावों का कोई जिक्र ही नहीं । इसके चलते पंचायत विकास अधिकारी मनमाने फैसले करने लगे हैं जैसे उनके ही गांव डाबड़ा में एक जौहड़ की नीलामी ही नहीं करवा रहे । इसका फायदा सत्तापक्ष के किसी नेता के निकट संबंधी को देने के लिए । यह तो एक छोटा सा उदाहरण मात्र है । सरपंचों का कार्यकाल भी दो वर्ष से खत्म हो चुका लेकिन पंचायत चुनाव की कोई खबर सार ही नहीं । पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी यह बात कह रहे हैं कि हरियाणा सरकार पंचायत चुनाव करवाने से भाग रही है जबकि यह महात्मा गांधी के सपनों को चकनाचूर करने के समान है । महात्मा गांधी के सारे सपने गांवों को लेकर थे क्योंकि गांवों में ही असली भारत बसता है । इसके बावजूद गांव अब उपेक्षित हैं और पंचायत चुनाव करवा कर गांव के लोगों की अपनी सरकार नहीं दी जा रही । छोटे छोटे विकास के काम सरकार के फैसलों की राह देख रहे हैं । गांवों की यह उपेक्षा कब तक ? अधिकारियों के हाथों में गांवों की किस्मत सौंप रखी है ।
प्रधानमंत्री ने गांव गोद लेने की योजना जरूर चलाई लेकिन इन गोद लिए हुए गांवों की हालत भी कोई दूसरे गांवों से ज्यादा बेहतर नहीं । फिर ऐसी योजनाओं का भी क्या लाभ ? 
गांवों को लेकर अनेक फिल्में शुरू से बनती आ रही हैं । कितने काल्पनिक गांव दिखाये जाते हैं । किसी फिल्म निर्देशक में हिम्मत हो तो असली गांव पर फिल्म बनाये । मुंशी प्रेमचंद ने जो गोदान में गांव दिखाया , क्या गांव आज उससे बेहतर हो गये हैं ? नहीं । गांव के हालात नहीं बदले । आजादी के बाद भी होरी , गोबर और धनिया सबकी जिंदगी वैसे की वैसी चल रही है । इसे कौन बदलेगा ? गांव की तस्वीर और तकदीर कब और कैसे बदलेगी ? जरा सोचिए , साहब ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष,हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।