समाचार विश्लेषण/बंद कमरे में सुनवाई क्यों हनी?

समाचार विश्लेषण/बंद कमरे में सुनवाई क्यों हनी?
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
यो यो हनी सिंह ने कोर्ट से आग्रह किया है कि उसकी पत्नी के साथ विवाद की सुनवाई बंद कमरे में की जाये । पत्नी शालिनी तलवार ने हनी सिंह पर शारीरिक प्रताड़ना का केस दर्ज करवाया है और बीस करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग की है । यह भी कहा है कि हनी सिंह ने उसकी ज़िंदगी के दस साल बर्बाद कर दिये । 
यह पहला मामला नहीं है जब किसी सेलिब्रिटी ने अपने खिलाफ मामले की सुनवाई बंद कमरे में करने का आग्रह किया हो । अभी दो माह पहले तक पहलवान सुशील कुमार भी मीडिया से मुंह छिपाये यही गुहार लगा रहा था कि बंद कमरे में सुनवाई हो यानी किसी को कानों कान पता न चले कि सुशील कुमार ने क्या घिनौना कांड किया है । इससे भी थोड़ा पहले अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी अपने पति राज कुंद्रा के गंदे खेल को छिपाने के लिए कोर्ट से यही आग्रह कर रही थीं कि मीडिया को इसकी कवरेज से रोका जाये ।
पिछले वर्ष रिया चक्रवर्ती के पापा भी तो यही गुहार लगाये हुए थे कि रिया को इस तरह मीडिया बेवजह बदनाम न करे । मेरी बेटी की सुनवाई तो होने दे । इस सबको कहते हैं मीडिया ट्रायल यानी अदालत से पहले मीडिया ऐसी हवा बना देता है कि जैसे मामला  उसने सुलझा लिया है । इसी चक्कर में सुशांत राजपूत का मामला ऐसा उलझा कि फिर सुलझा ही नहीं । एक चैनल तो पूछता है भारत करते करते इस मामले को सबसे ज्यादा बिगाड़ गया । भारत अब पूछ रहा है कि सुशांत राजपूत ने क्या किया था या उसने आत्महत्या की थी या उसकी हत्या की गयी थी ? नहीं पता आज तक । बस टीआरपी की होड़ पूरी हो गयी । इन दिनों बिग बाॅस विजेता सिद्धार्थ शुक्ला चर्चा में है -आत्महत्या या हत्या का षड्यंत्र? कुछ निकलेगा या नहीं ?
हनी सिंह हो या शिल्पा शेट्टी दोनों तब यह बात नहीं कहते जब इन्हें यही मीडिया सिर आंखों पर बिठाता है कि हमारी इंटरव्यू बंद कमरे में होनी चाहिए । तब तो मटक मटक कर पोज़ पे पोज़ दिये जायेंगे लेकिन जब इनकी असलियत की पोल खुलने की बात आए तब बंद कमरे में सुनवाई हो ? पता कैसा चलेगा दुनिया को कि आपका असली चेहरा क्या है ? कितना घिनौना है सुशील कुमार का असली चेहरा ? सुशांत सिंह राजपूत के मामले में ड्रग्स रैकेट में जो आए उनका कुछ नहीं बिगड़ा -चाहे रकुलप्रीत हो या सारा अली खान या फिर रिया चक्रवर्ती हो या फिर दीपिका पादुकोण ,,,सुनवाई के दौरान ये भी मुंह छिपती फिर रही थीं और गाना याद आ रहा था -
न मुंह छिपा के जिओ
और न सर झुका के जिओ 
गमों का दौर भी आए तो 
सर उठा के जिओ ...

यही कहना चाहता हूं कि काम ऐसे करो कि बंद कमरे में सुनवाई की जरूरत ही न पड़े और शर्मिंदगी उठानी पड़े,,,सर उठा के जी सको ,,,काम ऐसे करो ...
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।