कहां खो गये साहित्यिक पुस्तकों वाले बुक कैफे?

कहां खो गये साहित्यिक पुस्तकों वाले बुक कैफे?
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
शिमला में मेरे मित्र हैं एस आर हरनोट । जब जब शिमला जाता हूं उनसे मुलाकात होती है । वे एक अच्छे लेखक ही नहीं , साहित्यिक एक्टीविस्ट भी हैं और तीन साल पूर्व माॅल पर चर्च के पास एक बुक कैफे बनवाया जिसमें देश भर के लेखकों से लगभग पांच सौ किताबें मंगवाकर यहां सजाईं और एक बार तो मैंने भी अपनी किताबें बाकायदा बुक कैफे में जाकर उन्हें अर्पित कीं । यही नहीं इसी बुक कैफे में हर रविवार साहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन भी हरनोट करते रहे लेकिन कोरोना ने इसमें रुकावट पैदा कर दी । एक बार तो पूरा कार्यक्रम नयी कलमें लगाने का चलाया । नयी कलमें मतलब साहितायिक लेखक । कोरोना काल और इसका आक्रमण कुछ कम हुआ तो हरनोट क्या देखते हैं कि यह बुक कैफे पूरी तरह बंद कर दिया गया है और खंडहर हो रहा है । इसकी तस्वीरें फेसबुक पर पोस्ट कीं तब मेरा ध्यान गया कि आखिर साहित्यिक पुस्तकें गयी कहां और बुक कैफे जैसी जगहें सुरक्षित क्यों नहीं रहीं ? यही नहीं यह बात भी सामने आई है कि हिमाचल अकादमी ने भी पुस्तकालय की जब से नये भवन में स्थानांतरित किया है तब से कोई उधर झांकने भी नहीं जाता । मैं कम से कम सन् 1973 से शिमला जा रहा हूं जब हिंदी एम ए कर रहा था । तब माॅल रोड पर ही दो तीन अच्छी साहितायिक पुस्तकें बेचने वाली दुकानें क्या बड़े बड़े शो रूम थे लेकिन अब वे ढूंढें नहीं मिलते । बहुत सी किताबों पर शिमला और तिथि लिखी है मैंने । पर अब सिर्फ इन शो रूम की यादें भर रह गयी हैं । इसी प्रकार चंडीगढ़ सेक्टर बाइस की मार्केट में किताबों की एक शानदार दुकान थी जिससे मैंने अनेक पुस्तकें खरीदें लेकिन अब यह दुकान भी गायब हो चुकी । बस । पंजाब बुक सेंटर ही बचा है । इसके अलावा कोई बुक कैफे नहीं रहा ।
मेरा पंजाब का अपना शहर नवांशहर है जहां बड़ी लाइब्रेरी हुआ करती थी और वहां बैठ कर अनेक साहित्यिक पुस्तकें पढ़ीं थीं लेकिन आज अपने छोटे भाई  प्रमोद से जब फोन पर पूछा कि लाइब्रेरी है तो उसने बताया कि भाई साहब , वह तो नहीं रही और किताबें बारांदरी के एक कमरे में रखवा दी गयी है।  कोई पढ़ने जाता होगा इसमें शक है । होशियारपुर मेरे ननिहाल हैं रैड रोड पर । वहां से घंटाघर चौक की ओर जाते हुए पालिका पुस्तकालय था । अब है या नहीं ? इसी प्रकार जालंधर के माई हीरां गेट के पास पुस्तकालय था । अब गायब हो चुका ।
हमारे हिसार में भी चटर्जी पुस्तकालय सबसे पुराना कहा जा सकता है जिसे प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर ने भी अपने अंतिम समय निजी पुस्तकालय से इक्कीस सौ किताबें अर्पित की थीं । कोरोना के चलते यह पांच जुलाई तक बंद रहा । यहां बेशक ज्यादातर लोग अखबार पढ़ने आते हैं या वे छात्र जिन्हें कम्पीटिशन की तैयारी करनी है । आम पाठक पुस्तकें निकलवा कर नहीं पढ़ता । कालेजों में भी देखिए कोई किताब नहीं निकलवाई जा रही ।
 हिसार में ही विष्णु प्रभाकर स्मृति पुस्तकालय है । महावीर स्टेडियम के अंत में । जहां हम एक समय पाठक मंच की बैठकें करते थे । कुछ साहित्यिक मित्र जुट जाते और इस तरह पुस्तकालय से किताबें भी ले जाते ।  अब ई लाइब्रेरी की कल्पना की जा रही है । इसी तरह माॅडल टाऊन में मुंशी प्रेमचंद पुस्तकालय तो है लेकिन कोई व्यक्ति वहां झांकने जाता हो तो कह नहीं सकते ।
अब सवाल यह पैदा होता है कि शिमला के बुक कैफे की तरह कितने ऐसे बुक कैफे बंद किये जा रहे हैं ? क्या समाज या सरकार के पास इन पुस्तकालयों के लिए जगह नहीं बची ? कहा भी जा रहा है सोशल  मीडिया पर :
जिस समाज में जूते कांच की अल्मारी में बिकते हों और किताबें फुटपाथ पर उसकी संस्कृति कहां जायेगी? क्या होगा उसकी नयी पीढ़ी का भविष्य?