चुनाव के लिए कैसे कैसे पैंतरे 

चुनाव के लिए कैसे कैसे पैंतरे 
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 

चुनाव भी क्या चीज़ हैं । कोई कहता है कि यदि आपको अपने वंश व परिवार के बारे मैं ठीक ठीक जानकारी न हो तो चुनाव मैदान में खड़े हो जाओ , आपके विरोधी आपको सारी जानकारी खुलेआम मंचों पर दे देंगें । पूरी जन्म कुंडली खोल कर बता देंगें । आप क्या थे , क्या हैं और क्या हो जायेंगे , सब बता देंगें ।

बिहार में भी विधानसभा चुनाव हैं । इधर हरियाणा के बरोदा में उप चुनाव । कांग्रेस विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन से यह उपचुनाव होने जा रहा है । भाजपा-जजपा गठबंधन ने पहलवान योगेश्वर दत्त शर्मा को प्रत्याशी बनाया है जबकि इनेलो और कांग्रेस नामांकन के आखिरी दिन आ जाने के बावजूद प्रत्याशियों की घोषणा नहीं कर पाई हैं । इनेलो को इतना सोचने की क्या जरूरत पड़ रही है ? एक तरफ इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला दावा कर रहे हैं कि बरोदा चुनाव के बाद सरकार गिर जायेगी और दूसरी तरफ प्रत्याशी में देरी क्यों ?

कांग्रेस की तो समझ आती है कि गुटबाजी है जो सही प्रत्याशी का चयन होने में हर चुनाव में बाधा बनती है । यहां भी बनी हुई है । इसके बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की साख दांव पर लगी हुई है , यह हर किसी की जुबान पर है । किसे टिकट मिलती है , यह महत्त्वपूर्ण नहीं , किसे पूर्व मुख्यमंत्री व उनके पुत्र दीपेंद्र सिंह समर्थन देते हैं , यह मायने रखता है । इसलिए हाईकमान को इनकी राय की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए । 

हरियाणा की दो ऐसी बहुओं का जिक्र हो रहा हो जो असल में बिहार से संबंधित हैं । केंद्रीय मंत्री और बिहार के लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव की पुत्री अनुष्का चर्चा में हैं । वे कैप्टन अजय यादव की पुत्रवधु और कांग्रेस  विधायक चिरंजीव की पत्नी हैं । अपने भाई तेजस्वी के लिए बिहार जायेंगी प्रचार करने । जाहिर है कि पति महोदय भी साथ निभायेंगे । इस तरह यह भी एक प्रकार से चुनावी पैंतरे से कम नहीं । 

बिहार से दूसरी बेटी हैं वरिष्ठ नेता शरद यादव की बेटी सुभाषिणी जो कांग्रेस में शामिल हो गयी हैं और पिता के चुनाव क्षेत्र मधेपुरा से टिकट की इच्छुक हैं । हालांकि उनके पति राज यादव राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखते लेकिन पत्नी को टिकट मिली तो फिर बिहार के मधेपुरा की गलियों की खाक छानेंगे । 

भाजपा ने एक नया पैंतरा अपनाया है । सभी रिश्तेदारियों की सूची बनाई है और रिश्तेदारों पर वोट डालने का दबाब डाला जायेगा । हर पार्टी अपने अपने पैंतरे अपना रही है । यहां तक कि असंतुष्ट विधायकों को राजी करने के लिए झंडी वाली गाड़ियां भी कल दे दी गयीं । अब और बताओ क्या क्या करना है ? स्पीकर महोदय कहते हैं कि विधायकों को झंडी लगाने की इजाजत दी जा रही है ताकि उनकी पहचान हो सके । विधायक की पहचान काम से होगी या झंडी से ? बताना स्पीकर महोदय ?