हमें खाद्य पदार्थ अपव्यय रोकते हुए वेस्ट मैनेजमेंट पर फोकस करना होगाः कुलपति प्रो. राजबीर सिंह

संपोषणीय जीवन शैली एवं पर्यावरणीय संरक्षण पर एमडीयू में कार्यशाला आयोजित।

हमें खाद्य पदार्थ अपव्यय रोकते हुए वेस्ट मैनेजमेंट पर फोकस करना होगाः कुलपति प्रो. राजबीर सिंह

रोहतक, गिरीश सैनी। विश्वविद्यालयों की सामाजिक समरसता, राष्ट्रीय एकता, अखंडता तथा पर्यावरण जागरूकता में महत्वपूर्ण भूमिका है। क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने में भी विश्वविद्यालय मिलकर प्रयास कर सकते हैं। बेंगलुरु नॉर्थ यूनिवर्सिटी, कोलार, कर्नाटक के कुलपति प्रो. निरंजन वनाली ने ये आह्वान महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी आउटरीच प्रोग्राम द्वारा आयोजित-सस्टेनेबल लाइफ स्टाइल एंड एनवायरमेंटल कंजर्वेशन (संपोषणीय जीवन शैली एवं पर्यावरणीय संरक्षण) विषयक कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि किया।

प्रो. निरंजन वनाली ने कहा कि पर्यावरण को बचाना हमारे भविष्य की पीढ़ी के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि संपोषणीय जीवन शैली की प्रेरणा हमें हमारे पूर्वजों तथा ग्रामीण अंचल में रह रहे जन मानस से लेनी होगी। कर्नाटक में पेड़ बचाने के लिए एपीको जन आंदोलन का विशेष उल्लेख प्रो. निरंजन ने किया, जिसके अंतर्गत पश्चिमी घाट की समृद्ध जैव विविधता संरक्षण के लिए आम जन ने संघर्ष किया। उत्तराखंड में चिपको आंदोलन का उल्लेख भी उन्होंने किया। प्रो. निरंजन ने कहा कि यदि समृद्धता तथा विकास के नए आयाम तय करने उपरांत भी रात की नींद अच्छी नहीं, तो ऐसी समृद्धि तथा विकास के क्या मायने हैं। प्रो. निरंजन ने एमडीयू के कुलपति, प्राध्यापकों तथा विद्यार्थियों को एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत बीएनयू, कोलार आमंत्रित किया।

एमडीयू कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि संपोषणीय विकास तथा पर्यावरण संरक्षण समय की जरूरत है। यदि आर्थिक विकास टिकाऊ नहीं तो जन-मानस को दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। कुलपति ने कहा कि हमें खाद्य पदार्थ अपव्यय रोकना होगा। साथ ही, वेस्ट मैनेजमेंट (अपशिष्ट प्रबंधन) पर फोकस करना होगा। इस संदर्भ में एमडीयू के ग्रीन-क्लीन कैंपस तथा वेस्ट मैनेजमेंट पहल का प्रो. राजबीर सिंह ने विशेष उल्लेख किया। जीवन में शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य तथा खुशी के महत्व को उन्होंने विशेष रूप से रेखांकित किया।

बैंगलुरू नार्थ यूनिवर्सिटी, कोलार के कुलसचिव डॉ. अशोक डी. आर (केएएस) ने कहा कि हरियाणा वो प्रांत है, जहां भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को भगवत गीता का उपदेश दिया, जो हमें कर्म करने की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि भविष्य में एमडीयू-बीएनयू में सोशल आउटरीच, शैक्षणिक तथा शोध सहभागिता, कौशल विकास एवं उद्यमिता में आपसी सहयोग किया जाएगा तथा संयुक्त कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। एमडीयू का बीएनयू के साथ एमओयू के लिए डॉ. अशोक ने आभार जताया।

निदेशक यूआईईटी तथा कार्यवाहक कुलसचिव प्रो. युद्धवीर ने कहा कि हमें अपने समाज को शिक्षा-कौशल से समृद्ध करना होगा। विशेष तौर पर जल संरक्षण जागरूकता पर प्रो. युद्धवीर सिंह ने बल दिया। कार्यशाला के प्रारंभ में निदेशक यूनिवर्सिटी आउटरीच प्रो. राधेश्याम ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने संपोषणीय जीवनशैली तथा पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम संचालन यूनिवर्सिटी आउटरीच की उप निदेशिका डॉ. एकता नरवाल ने किया। आभार प्रदर्शन उप निदेशक डॉ. कर्मवीर श्योकंद ने किया।

इस कार्यशाला के तकनीकी सत्रों में बर्ड वॉचर राकेश अहलावत ने हरियाणा में पक्षियों की प्रभावी जानकारी दी। अपशिष्ट प्रबंधन में नगर निगम, रोहतक के परामर्शदाता अरविन भाटिया ने तथा पर्यावरण संरक्षण बारे यूनिवर्सिटी आउटरीच समन्वयक तथा बॉटनी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुरेन्द्र सिंह यादव ने संबोधन किया।

कार्यशाला उद्घाटन सत्र में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभागाध्यक्ष प्रो. हरीश कुमार, मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. सर्वदीप कोहली, समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. देसराज, निदेशिका सीआरएसआई प्रो. सोनिया मलिक, शारीरिक शिक्षा विभागाध्यक्ष प्रो. कुलताज सिंह, एनएसएस कार्यक्रम समन्वयक प्रो. तिलक राज, एडिशनल चीफ वार्डन बॉयज प्रो. दलीप सिंह, उप निदेशिका सीडीएस डॉ. प्रतिमा रंगा, निदेशक जनसंपर्क सुनित मुखर्जी, पीआरओ पंकज नैन, प्राचार्य वैश्य कालेज डॉ. संजय गुप्ता, डॉ. आरती चहल, डॉ. दीपक लठवाल समेत एमडीयू तथा संबद्ध महाविद्यालयों के प्राध्यापक, विद्यार्थी, एनएसएस स्वयंसेवक मौजूद रहे। बीएनयू, कोलार के 12 विद्यार्थियों व दो प्राध्यापकों का दल विशेष रूप से इस कार्यक्रम में शामिल रहा।