ग़ज़ल / अश्विनी जेतली 

ग़ज़ल / अश्विनी जेतली 
अश्विनी जेतली।

होश ग़र हावी हुआ और बेखुदी मनफ़ी हुई
समझ लेना तुम, तुम्हारी सादगी मनफ़ी हुई

कौन पूछेगा तुम्हें ऐ मंज़िलो ये जान लो
मेरे कदमों से अगर आवारगी मनफ़ी हुई

अपने हाथों से तुम्हें, मैं तोड़ दूँगा दिल मिरे
अख़्लाक से अगर तेरे, शाइस्तगी मनफ़ी हुई

जाम-ए-ग़म बहुत पिए, प्यास पर बुझी नहीं 
सारी उम्र न इन लबों से तिश्नगी मनफ़ी हुई

शायरी मेरी से अगर रौशनी मनफ़ी हुई 
समझ लूँगा ज़िंदगी से ज़िंदगी मनफ़ी हुई