इंटरव्यू/यह पत्रकारिता का दुर्भाग्यपूर्ण दौर: राहुल देव 

इंटरव्यू/यह पत्रकारिता का दुर्भाग्यपूर्ण दौर: राहुल देव 

-कमलेश भारतीय 
मूल रूप से पंजाब के जालंधर निवासी राहुल देव की शिक्षा-दीक्षा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई और वे लखनवी अंदाज में ढल गये । जालंधर सिर्फ तीन साल के थे जब पिता एक दवा कंपनी में नियुक्ति पा कर लखनऊ आ गये । इस तरह गंगा- जमुनी तहजीब में रंग गये । लखनऊ विश्वविद्यासय से एम ए अंग्रेजी साहित्य से किया। 
-पत्रकारिता में कैसे और कब से ? 
- जब अंग्रेजी एम ए के अंतिम वर्ष में था तभी पायनियर में उपसंपादक बन गया और यूँ छात्र जीवन से ही पत्रकारिता से जुड़ गया ।
-फिर आगे ?
-सन् 1982 में करंट वीकली का दिल्ली संवाददाता बना । यहां दो साल । फिर सन् 1984 में द वीक का यूपी का प्रमुख संवाददाता। छह माह सूर्या इंडिया का संपादक रहा । लगभग नौ वर्ष अंग्रेजी पत्रकारिता में बिताये ।
-हिंदी पत्रकारिता से कैसे जुड़े?
-अचानक । इलाहाबाद के मित्र प्रकाशन की अंग्र्जी पत्रिका प्रोब इंडिया में मैं तब विशेष राजनीतिक संवाददाता था। उसी समूह की बड़ी लोकप्रि हिंदी पत्रिका माया के दिल्ली ब्यूरो चीफ की तबीयत बिगड़ी तो प्रबंधन ने  मुझसे उसकी अगली आवरण कथा  लिखने को कहा। वह लिखी और उन्हें इतनी पसंद आई कि कहा गया कि अब आप ही इसका दिल्ली का जिम्मा संभालिए। इस तरह हिंदी पत्रकारिता की शुरूआत हुई । 
-हिंदी पत्रकारिता में आगे कहां-कहां?
-मुझे दैनिक जनसत्ता के यशस्वी संस्थापक संपादक प्रभाष जोशी जी ने  मुम्बई संस्करण का स्थानीय संपादक बना कर मुंबई भेजा। वहाँ मैंने छह साल बिताए। वहाँ दो नए प्रकाशन शुरू किए। पहला, हिंदी की पहली नगर पत्रिका” जनसत्ता सबरंग’ और दूसरा, सांध्य दैनिक, संझा जनसत्ता। वह कुल ११ दिन के रिकार्ड समय में निकाला गया और जल्दी ही मुंबई का सबसे अधिक प्रसार वाला हिंदी सांध्य दैनिक बन गया। फिर मुझे प्रभाष जी के सेवानिवृत्त होने  के बाद जनसत्ता का दिल्ली समेत सभी चारों संस्करणों का कार्यकारी संपादक बना दिया गया । दो वर्ष तक रहा ।
-टीवी पत्रकारिता से कैसे जुड़े?
-आज तक प्रमुख । दूरदर्शन डी डी में प्राइम टाइम एंकर । मैं और मृणाल पांडे एक साथ बुलाए गए इस काम के लिए । सन् 2004 में जी न्यूज में सलाहकार संपादक । जनमत चैनल में रहा और उसके बाद सी एन ई बी न्यूज़ चैनल  में प्रधान संपादक तथा सी ई ओ । फिर दो साल आज समाज का प्रधान संपादक । 
-आजकल ? 
-स्वतंत्र लेखक व पत्रकारिता और भारतीय भाषाओं को बचाने का काम अपने भाई के साथ मिल कर बनाये सम्यक् न्यास की ओर से । लोक स्वास्थ्य के मुद्दों राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ  नेपाल व बांग्ला देश सहित देश के ११ राज्यों में मे काम किया ।
-चालीस वर्ष लम्बी पत्रकारिता में कैसे कैसे परिवर्तन अनुभव किये ?
-बहुत क्रांतिकारी परिवर्तन । दो नये माध्यम आए -टीवी और इंटरनेट लेकिन प्रिंट को पीछे नही छोड़ पाए। जबकि विदेशों में इन्होंने प्रिंट को बहुत नुकसान पहुँचाया  है । अकल्पनीय बल्कि विस्फोटक विस्तार हुआ । सामाजिक, राजनीतिक , आर्थिक परिवर्तन आए । 
-अब कैसा समय पत्रकारिता का ?
-मिश्रित समय । क्षेत्र विशेष के लिए पत्र पत्रिकाएं निकलने लगीं । कभी सिर्फ आर्थिक, खेल पर पत्रकारिता या पत्रिका के बारे में किसी ने नहीं सोचा होगा। हां, फिल्मी पत्रिकायें अलग से निकलती थीं । 
-फिर अब क्या स्थिति ?
-धर्मयुग, हिंदुस्तान, इलेस्ट्रेटिड वीकली के उभार के समय भी देखे और सन् 1990 के बाद अवसान भी । पत्रिकाओं के श्रेष्ठतम उदाहरण समाप्त । 
-अब जिसे गोदी मीडिया कहा जाने लगा है उसके बारे में क्या कहेंगे?
-बहुत तीखा विभाजन हुआ है पत्रकारिता का। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण दौर है । बेशर्म तरीके से पक्षधरता है दोनों तरफ । अति है । यह पत्रकारिता हमें विभाजन पूर्व की स्थितियों में पहुंचा रही है । बिल्कुल नकारात्मक । यह भारतीय लोकतंत्र के लिए भी खतरनाक है । धार्मिक कटुताओं को बढ़ावा दिया जा रहा है । यह कुप्रचार करने वाली, बरगलाने और अफवाहों और असत्यों को फैलाने की भूमिका निभाने वाली पत्रकारिता है । 
-पत्रकारिता में आपके प्रेरक कौन ? 
-स्वर्गीय यादवराव  देशमुख जो मेरे निर्माता रहे ।
-प्रमुख सम्मान/पुरस्कार ?
-गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, केंद्रीय हिंदी संस्थान का सर्वोच्च पत्रकारिता सम्मान जो राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों मिला । माधव राव पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कार/सम्मान । 
-नये व आने वाले  पत्रकारों के लिए क्या टिप्स यानी मंत्र?
-ज्यादा से ज्यादा पढ़ें । जल्दी कोई राय मत बनायें । बौद्धिक स्तर से गंभीर हों और पत्रकारिता के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहें । पत्रकारिता में आज भी बहुत अवसर और चुनौतियां हैं । अच्छा समाज बनाने के लिए काम करें ।