ये तेरे प्यार की जादूगरी, छोटे बन जाते बड़े: अशोक गर्ग 

ये तेरे प्यार की जादूगरी, छोटे बन जाते बड़े: अशोक गर्ग 

-कमलेश भारतीय
यह अशोक गर्ग भी कमाल का आदमी है, इसमें ऐसी जादूगरी है कि समाज के छोटे तबके के लोगों को अपने प्यार से बड़े बना देता है ! कैसी जादूगरी है यह? हिसार में दो बार पोस्टिड रहे और दोनों बार निकट से जानने समझने का मौका मिला । पहले अतिरिक्त उपायुक्त, फिर नगर निगम आयुक्त ! दोनों बार अपनी जादूगरी की छाप छोड़ी ! 
हम साहित्यकारों की टोली तब जिला पुस्तकालय में हर माह 'पाठक मंच' की गोष्ठी रखते और इसमें बहुत कम ही अधिकारियों को बुलाते लेकिन एक बार डाॅ मनोज छाबड़ा और एक अन्य सदस्य को जिला प्रशासन ने सम्मानित किया तब हमने भी 'पाठक मंच' की ओर से सम्मानित करने का इरादा बनाया और आमंत्रित किया अतिरिक्त उपायुक्त अशोक गर्ग को, जो सहर्ष चले आये और तब पहली बार इनके सरल व्यक्तित्व व साहित्य के प्रति इनके अनुराग का पता चला ! बताया श्री गर्ग ने कि बचपन में अपने से बड़े भाई बहनों की हिंदी की पुस्तकें भी चट कर जाते थे, फिर यह प्रेम बना ही रहा ! वे साहित्य को समझ बढ़ाने का आधार मानते हैं और दुनिया को जानने समझने का अवसर भी मिलता है ! 
सबसे अधिक चौंकाया जब निगम के आयुक्त रहते आठ मार्च को महिला दिवस पर निगम की ही सफाई सेवकों के साथ महिला दिवस मनाया और बाकायदा पहले इन्हें प्रोग्राम की रिहर्सल करवाई प्राध्यापिका प्रवीण से ! क्या शानदार और भव्य कार्यक्रम रहा और वह भी गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय के सबसे बड़े रणबीर  ऑडिटोरियम में ! प्रोफैशनल कलाकारों से किसी भी तरह कम नहीं दीं प्रस्तुतियां ! इनके साथ खुद हाथ में झाड़ू लेकर सफाई अभियान में निकले, तब बताया कि वे सोच रही थीं कि मैं फोटो करवाने के बाद झाड़ू छोड़ दूंगा लेकिन जब उनके साथ झाड़ू लगाता गया, तब वे हैरानी से मुझे ताकतीं रह गयीं ! 
'हमारा प्यार हिसार' जैसी स्वयंसेवी संस्था को भी भरपूर सहयोग दिया और हिसार को खूबसूरत बनाने में लगातार संस्था को प्रोत्साहित करते रहे ! गौअरण्य सहित पार्कों में पौधारोपण अभियान में आगे रहते‌ ! 
हमने शहीद भगत सिंह के भांजे प्रो जगमोहन सिंह को आमंत्रित किया हिसार तब कार्यक्रम के बाद अशोक गर्ग ने मुझे पूछा कि इनका डिनर कहां है? 
- अभी तो मैं कुछ नहीं जानता ! 
- फिर आज का डिनर मेरे आवास पर होगा ! यह कह कर अशोक गर्ग मेरे घर से चल दिये और जब डिनर पर पहुंचे तो कम से कम दस पंद्रह और मित्रों को न्यौता दे चुके थे ! वे विचार और व्यवहार में बिल्कुल एक जैसे हैं ! डिनर के बाद अपनी मां से मिलवाया, जो काफी अस्वस्थ रहती हैं। गरीब लोगों को सर्दियों में ठिठुरते देख अशोक गर्ग का दिल फिर उदास हुआ और उन्होंने अपने अवास पर रैक रखवाये कि जो इनके लिए गर्म कपड़े देना चाहे, चुपचाप यहां रख जाये न जाने कितने लोगों को ठिठुरने से बचाया होगा ! 
हिसार से अशोक गर्ग को रेवाड़ी का उपायुक्त बनाया गया और वहां भी वही रंग ढंग रहे। वे आजकल मानेसर में निगम आयुक्त हैं और वहां नये वर्ष की पूर्व संध्या छोटे तबके के लोगों के बीच मनाई और खूब नाचे गाये उनके संग ! उनका कहना है कि सब एक समान हैं, कोई छोटा बड़ा नहीं ! 
सच! इसे ही तो कहते हैं- ये तेरे प्यार की जादूगरी!