सच तो यह है कि हम एक कनेक्टेड विश्व के वासी हैं

सच तो यह है कि हम एक कनेक्टेड विश्व के वासी हैं

इतने सारे टॉकिंग पॉइंट्स दिमाग में घूम रहे हैं कि आज का कॉलम किस विषय पर लिखा जाए, इसको लेकर ऊहापोह में फंसा हूं। दुनिया में हर पल इतना कुछ घटित हो रहा है कि मन उलझन में है। व्यक्तिगत स्तर पर सब कुछ कंट्रोल में होने के बाद भी लगता है कि कहीं कुछ है जो हमारे नियंत्रण से बाहर है। यदि हमारी जिंदगी मजे में है तो इसका मतलब यह नहीं कि हम उछलने लगें। मन भटकता हुआ यूरोप और एशिया के उस हिस्से में पहुंच जाता है जहां त्रासदी है कि थमने का नाम नहीं ले रही है। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं बेघर भटक रहे हैं, शिविरों में शरण लेने को मजबूर हैं। इतने वर्षों से जो कुछ कमाया, खड़ा किया, सब ध्वस्त हो गया। सब पीछे छूट गया। सब कुछ अत्यधिक दुख, तकलीफ, पीड़ा, हताशा, निराशा के अंधेरे में जा छिपा। किसी एक शख्स की मूर्खता और उजड्‌डपना कई बार कितने घर उजाड़ देता है, कितनों के सपने स्वाहा कर देता है।
 
हम सब अपने अपने हिसाब से जिंदगी का ताना बाना बुनते हैं और भविष्य की योजनाएं बनाते हैं। सपने देखते हैं और उन्हें साकार करने के लिए कोशिश करते हैं। दिन रात एक कर देते हैं, तभी कहीं दूर किसी के बेतुके फैसले से हमारे फैसलों पर अनिष्ट की छाया पड़ जाती है और बहुत कुछ असंभव होता जाता है। खुद ही सोचिए, कोई एक व्यक्ति, देश या सैनिकों का एक बड़ा समूह कोई एक मूर्खतापूर्ण हरकत करता है और दुनिया भर के करोड़ों लोगों की जिंदगी पर उसका दूरगामी असर पड़ने लग जाता है। वह एक शख्स कोई अपराधी, आतंकवादी, हत्यारा या एक राजनीतिक हस्ती हो सकता है। कहने को वह अपने मन की कर रहा होता है, लेकिन इस परस्पर कनेक्टेड दुनिया में सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है। होनी, अनहोनी, खुशी, गम, सब कुछ सब पर मिला जुला प्रभाव पैदा करता है। इसी उधेड़बुन में आज मन परेशान है।
 
इस बीच कुछ खबरें सुकून देने वाली भी आ रही हैं। मसलन, भारतीय मूल के विद्यार्थियों को वॉर ज़ोन से बाहर निकालने के ऑपरेशन गंगा का सफलतापूर्वक समापन होना। पूरे दो साल बाद, 27 मार्च से अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों का फिर से शुरू करने का सरकार का निर्णय। बिना इंटरनेट कनेक्शन वाले सिम्पल सस्ते फोन के लिए रिजर्व बैंक द्वारा डिजिटल भुगतान सेवा शुरू होना, जो भारत के 40 करोड़ लोगों को नए युग के पेमेंट सिस्टम से जोड़ेगी। कल मेरे एक मित्र से जब मेरी मुलाकात हुई तो उन्होंने अपना हाथ आगे कर दिया। दो साल बाद मैंने किसी से बेझिझक हाथ मिलाया। यह एक बड़ा बदलाव है। मन में जो एक अनजाना डर बैठा रहता था, वह गायब होने लगा है। धीरे धीरे ही सही, लेकिन लोग अब अपने कार्यालयों में लौटने लगे हैं। बहुत कम लोग हैं जो अभी भी वर्क फ्रॉम होम मोड पर हैं। इसी का असर है कि वीडियो कांफ्रेंसिंग कंपनी ज़ूम की तिमाही आय में गिरावट आने की खबरें आ रही हैं। एक ताजा खबर के मुताबिक, नवंबर 2021 से जनवरी 2022 के बीच ज़ूम के कारोबार में महज 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि इन्हीं महीनों में पिछले साल इसके कारोबार में 191 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी। अच्छा है, पुराना वक्त वापस लौटे, हम बेझिझक मिलें, घूमें और जीवन का आनंद लें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं)