गुरुकुल का लक्ष्य मात्र शिक्षा नहीं, अपितु श्रेष्ठ व्यक्तित्व निर्माण हैः डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान
गुरुकुल के वार्षिकोत्सव में विद्यार्थियों को किया प्रेरित।
करनाल, गिरीश सैनी। आप स्वयं श्रेष्ठ बने बिना विश्व से यह कैसे कह सकते हैं कि आर्य बनिए। जब तक हम स्वयं सर्वोत्तम नहीं बनेंगे, तब तक हमारी आवाज को दुनिया गंभीरता से नहीं सुनेगी। ये उद्गार हरियाणा ग्रामीण विकास संस्थान के निदेशक डॉ वीरेंद्र सिंह चौहान ने नलवी खुर्द स्थित वेद विद्या गुरुकुल कुटिया में आयोजित वार्षिकोत्सव में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। गुरुकुल के संस्थापक स्वामी संपूर्णानंद ने डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान का गुरुकुल परिसर पहुंचने पर स्वागत किया।
डॉ. चौहान ने अपने प्रेरणादायी संबोधन में कहा कि गुरुकुल में अध्ययन करने वाले विद्यार्थी केवल शिक्षा प्राप्त करने के लिए नहीं, बल्कि चरित्र, संस्कार और श्रेष्ठता के प्रतीक बनने के लिए आगे बढ़ते हैं। जब ये विद्यार्थी जीवन के जिस भी क्षेत्र में प्रवेश करते हैं - चाहे वह शिक्षा हो, प्रशासन हो, विज्ञान हो, सेवा हो या व्यवसाय - यदि वे अपने कर्म, आचरण और योग्यता से उस क्षेत्र में सर्वोत्तम बनते हैं, तभी समाज उन्हें आदर्श के रूप में स्वीकार करता है। केवल उपदेश देने से नहीं, बल्कि अपने आचरण से उदाहरण प्रस्तुत करने पर ही उनके विचारों को गंभीरता से सुना जाता है और सम्मान मिलता है।
निदेशक डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि गुरुकुल की शिक्षा का सार यही है कि विद्यार्थी पहले स्वयं को गढ़े, अपने चरित्र, आचरण और कर्म से श्रेष्ठता सिद्ध करे। बिना स्वयं श्रेष्ठ बने समाज को दिशा देने की अपेक्षा करना व्यर्थ है। जब गुरुकुल से निकला विद्यार्थी जिस भी क्षेत्र में जाता है और वहाँ अपने ज्ञान, अनुशासन व मूल्यों से सर्वोत्तम बनता है, तभी उसकी बात समाज के लिए प्रेरणा बनती है। वास्तव में, आचरण में श्रेष्ठता ही विचारों की सबसे मजबूत पहचान होती है और यही गुरुकुल संस्कारों की सच्ची कसौटी है।
कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों द्वारा दी गई योग, मलखंब सहित विभिन्न शारीरिक एवं सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में अनुशासन, संतुलन और शारीरिक दक्षता का सुंदर प्रदर्शन देखने को मिला। इसके साथ ही वैदिक साहित्य की एक विशेष प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया, जिसने भारतीय ज्ञान परंपरा और सांस्कृतिक विरासत से अतिथियों को परिचित कराया।
गुरुकुल के संस्थापक स्वामी संपूर्णानंद ने अपने संबोधन में कहा कि गुरुकुल परंपरा केवल शिक्षा देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का माध्यम है। उन्होंने कहा कि गुरुकुल का उद्देश्य ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण करना है जो ज्ञान के साथ-साथ चरित्र, संस्कार और सेवा भावना से परिपूर्ण हो। वैदिक शिक्षा, योग, अनुशासन और श्रम के समन्वय से ही समाज को दिशा देने वाले नागरिक तैयार होते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों का आह्वान किया कि वे गुरुकुल से प्राप्त संस्कारों को जीवन में उतारकर राष्ट्र और समाज के उत्थान में सक्रिय भूमिका निभाएँ। इस दौरान गुरुकुल के विद्यार्थी, ग्रामीण एवं अन्य गणमान्य जन मौजूद रहे।
Girish Saini 


