सुशांत ने सबको किया अशांत/कमलेश भारतीय

सुशांत से पहले बल्कि बहुत पहले गुरुदत्त की कहानी भी ऐसे ही खत्म हुई

सुशांत ने सबको किया अशांत/कमलेश भारतीय
सुशांत सिंह राजपूत।

कोरोना के लाॅकडाउन में यह तीसरी हृदयविदारक विदाई है । पहले मनमीत नामक कलाकार, फिर प्रेक्षा मेहता और अब सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की खबर। तीनों में से सुशांत ने उनकी तरह अशांत कर दिया। आखिर यह डिप्रेशन था या प्रेम में असफलता? या दोनों ? यह बात सामने आ रही है कि सुशांत डिप्रेशन में थे और बाकायदा दवाई ले रहे थे। उनकी मैनेजर रही दिशा ने भी सिर्फ पांच दिन पहले ही घर की छत से कूद कर आत्महत्या कर ली थी। इन्हें भी जोड़ कर देखा जा रहा है। कौन कौन सी कड़ियां पुलिस जोडने जा रही है? बैंक बेलेंस भी चैक करना है कि कहीं सुशांत भी इस लाॅकडाउन में आर्थिक मंदी के चलते तो डिप्रेशन में नहीं चला गया। कितने पहलू हैं। पहले सुशांत का नाम और प्रेम प्रसंग अंकिता लोखंडे से जुड़े होने के समाचार आते रहे। दोनों एक सीरियल में मिले और फिर घुल मिल मिल गये लेकिन फिल्मी दुनिया के रिश्ते पहेली जैसे होते हैं। ब्रेक अप की खबरें आम हैं और लोग जीना सीख जाते हैं इन ब्रेक अप्स के साथ।  अंकिता के बाद ऋचा का नाम आया। जो रात तक साथ थी लेकिन सुशांत ने घर जाने को कह दिया। दीपिका पादुकोण इस ब्रेक अप के चलते डिप्रेशन में आ गयी थी। यदि उसकी मम्मी ने बार बार उसके दिल को न टटोला होता तो वह भी ज़िंदगी को दोबारा न पा सकती थी। इसीलिए दीपिका आजकल दोबारा से पूछो एनजीओ चला रही है। मतलब कि डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को बार बार पूछो। बार बार उसके दिल को टटोलो। तब जाकर वह अपने दिल में छिपी बात होंठों पर लाता है। सुशांत के साथ ऐसा नहीं हुआ। मां तो पहले ही जा चुकी थी जिसे बेहद याद करते थे सुशांत। चार बहनों का इकलौता प्यारा भाई जिनमें से एक बहन अब दुनिया में नहीं रही थी। पापा अकेले पटना में। एक बहन चंडीगढ़ में। सब ठीक ठाक चल रहा था। फिर भी मन में कोई कसक रही जो जानलेवा साबित हुई। 
धोनी की बायोपिक में सुशांत ने धोनी का रोल बहुत प्रभावशाली ढंग से निभाया। फिर भी वे धोनी की तरह मिस्टर कूल क्यों नहीं बन पाये? किरदार निभाया पर प्रेरणा नहीं ली। धोनी ने आखिरी गेंद तक मैच जीत कर दिखाए जबकि सुशांत तुम्हारी तो उम्र पड़ी थी। शिव कुमार बटालवी का बहुत लोकप्रिय गीत है: 
मायें नी मायें 
अस्सां जोबन रुते मरना
जोबन रुते जो भी मरदा 
चन्न बने या तारा ....
सुशांत तुम तो फिल्मी दुनिया के सितारे बन चुके थे। फिर जोबन रुते किस चाह में चले गये? अब तो जीने का मज़ा आ रहा था। यह लाॅकडाउन तो कुछ समय की बात थी। फिर वही कैमरों की फ्लैश चेहरे पर चमकती। वहीं चमक दमक होती। आखिर डिप्रेशन ने छीन लिया। आज की तनाव भरी जिंदगी में डिप्रेशन की बीमारी बढ़ती जा रही है। तनाव से बचने के अनेक उपाय बताये जाते हैं।   संगीत, कला और खेल कुछ भी करो। रम जाओ। एक कविता की पंक्तियां हैं: 
शाम को अकेले न रहा करो 
दोस्तों की महफिल में 
ठहाके लगाओ 
और खूब  हंसो ....
सुशांत से पहले बल्कि बहुत पहले गुरुदत्त की कहानी भी ऐसे ही खत्म हुई। किसी के प्यार में इतना डूब जाना भी जानलेवा साबित होता है। बचिए मित्रो डिप्रेशन से।