स्त्री वह होती है 

स्त्री वह होती है 
कमलेश भारतीय।

स्त्री वह होती है 
जो दूसरों से पहले जागती है 
और सबके सोने के बाद 
सोती है 
देर रात तक बर्तनों की 
खटर पटर और रसोई की सफाई 
जब सब भूखे होते हैं 
तब वह अपनी भूख भुला कर 
सबकी भूख के बारे में सोचती है 
स्त्री वह होती है जो 
दुख के समय सबसे बड़ी 
वैद हकीम या डाॅक्टर होती है 
स्त्री सब पर प्रेम बरसाती है 
और बदले में सिर्फ मुस्कान से ही 
निहाल हो जाती है 
स्त्री बिना बताये 
दिल की बात समझ जाती है 
वह दिल की तह में छिपे 
भाव झट से पढ़ समझ लेती है 
स्त्री घर और बाहर 
एक नटनी की तरह
सारा संतुलन बनाये रखती है ।
क्या आकाश , क्या पाताल 
सब लांघ जाती है 
दुखों से लड़ने के लिए 
यों ही सावित्री , दुर्गा या झांसी की रानी नहीं कहते ।
स्त्री के अनेक रूप और अनेक हाथ हैं 
स्त्री के बारे में आदमी सिर्फ सोचता है 
उसके दिल की थाह नहीं पाता । 
स्त्री क्या है 
आज तक समझ नहीं पाया 
स्त्री अबूझ और अनजानी है 
शायद ऐसी ही रहे... 
-कमलेश भारतीय