समाचार विश्लेषण/तब भी यह देश चल रहा है

समाचार विश्लेषण/तब भी यह देश चल रहा है
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
स्वतंत्रता के पचहतर वर्ष और अमृत महोत्सव के साथ साथ किसान आंदोलन के बावजूद यह देश चल रहा है । अमृत महोत्सव से अन्नपूर्णा  उत्सव तक खाली थैली लेने के लिए मारामारी तक यह देश चल रहा है । सत्ता पक्ष और विपक्ष के आरोपों प्रत्यारोपों के बीच भी हमारा देश चल रहा है । सरकारें गिराने , विधायक खरीदने और हिंसात्मक घटनाओं के बावजूद देश चल रहा है । संसद ठप्प करने और सड़क तक विपक्ष के आ जाने के बावजूद यह दे  बड़े मज़े में अपनी रफ्तार से चल ही नहीं बल्कि दौड़ रहा है । ओलम्पिक में हाॅकी टीमों के शानदार प्रदर्शन से खेल रत्न पुरस्कार से राजीव गांधी का नाम हटाने के बावजूद यह देश खूब दौड़ रहा है ।
  रसोई गैस , पेट्रोल, डीज़ल के बढ़ते दामों के बीच यह देश चल रहा है । किसान आंदोलन के सौ से ऊपर दिन बीत जाने और राह में कील गाड़ने के बावजूद देश ही नहीं आंदोलन भी चल रहा है । कोरोना को ताली थाली बजा कर न भगा पाने के बावजूद देश तो चलता ही जा रहा है । देश को या वक्त तो चलते ही रहना है और चलते ही जाना है । ये कोई रुकने वाली चीज़ें थोड़ी हैं । ये तो चरैवेति चरैवेति हैं । रुकना इनका काम नहीं , चलना इनका काम । रुक जाना नहीं । 
क्या सत्ता या विपक्ष रुक कर सोचेगा कि देश ऐसे क्यों चल रहा है ? इसे किसी और तरह भी चलाया जा सकता है । संसद को ठप्प करने की बजाय और करोड़ों रुपये बर्बाद करने की बजाय कोई सकारात्मक विरोध का तरीका अपनाया जा सकता था । सरकारें गिराने या विधायकों की मंडी लगाने की बजाय लोकतंत्र की जय भी की जा सकती थी । कांग्रेस के अंदर विपक्ष यानी जी 23 की बजाय हाईकमान से मिल कर भी कोई अच्छा कदम उठाया जा सकता है । शरद पवार , ममता बनर्जी और कांग्रेस के बीच तालमेल भी बनाया जा सकता है और यूपी मे फिर से विपक्ष साथ आए और राहुल व अखिलेश को पसंद कर सकते हैं । पर सब जगह मनमुटाव और दलों में गुटबाजी हमेशा सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाती आई है । दलों की आपसी दलदल के बावजूद यह देश चलता रहेगा और विधानसभा चुनाव से पहले दलबदल की झांकी निकलती रहेगी।  इधर फिल्म स्टार से नेता बने और अढ़ाई किलो के हाथ वाले सन्नी द्योल किसानों की धक्का मुक्की का शिकार हुए और हाथ जोड़ते नज़र आए । ऐसा वीडियो खूब वायरल हुआ । शुक्र है फिल्मी सितारों से जनता का मोहभंग होना शुरू हुआ । अगर फिल्मी सितारों ने जनता की आवाज न सुनी तो सबके साथ ऐसा भी कुछ हो सकता है । खैर, इसके बावजूद यह देश चलता रहेगा ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।