"मेरी कहानियों के पात्र और स्थान वास्तविक हैं, सिर्फ नाम बदल जाते हैं": डॉ. रेणु बहल

"नशा और उर्दू उपन्यास" पर, विभाग उर्दू, पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ में विशेष चर्चा

 

चंडीगढ़: पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के विभाग उर्दू में "नशा और उर्दू उपन्यास" विषय पर एक विशेष चर्चा आयोजित की गई। इस अवसर पर प्रसिद्ध कहानीकार डॉ. रेणु बहल मुख्य अतिथि थीं। डॉ. बहल के नए उपन्यास दश्त बे‌नवा को इस मौके पर विशेष रूप से चर्चा के घेरे में लाया गया। उल्लेखनीय है कि इस उपन्यास में उन्होंने पंजाब में दिन-प्रतिदिन बढ़ते नशे और इससे प्रभावित लोगों की जिंदगी को विषय बनाया है।
डॉ. बहल ने बताया कि इस कहानी के सभी पात्र वास्तविक हैं; केवल नाम बदलकर कहानी के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि इस उपन्यास को पन्नों पर उतारने से पहले उन्होंने पंजाब के विभिन्न गाँवों और शहरों का दौरा किया, प्रभावित लोगों से मुलाकात की और उनकी कहानियाँ सुनीं। इसके बाद उन्हें एहसास हुआ कि इसे उपन्यास का रूप देना बेहद कठिन है। लेकिन अपनी सृजन-शक्ति का परिचय देते हुए उन्होंने नशे में लिप्त एक मृत व्यक्ति की आत्मा को कथानक-पात्र के रूप में इस तरह प्रस्तुत किया है कि वह अपने घर के आँगन में पेड़ की टहनी पर बैठा, अपने घर के कार्यों, अपनी माँ-बहन-बहू की तकलीफों को देखता है, पर कुछ कर नहीं सकता। इस तरह यह दिखाया गया है कि नशा केवल एक व्यक्ति पर असर नहीं डालता, बल्कि उसके पूरे परिवार और समाज की ज़िंदगी पर किस तरह नकारात्मक प्रभाव डालता है।
डॉ. बहल ने नशे की बढ़ती लत को 'नार्कोटिक आतंकवाद' बताते हुए कहा कि नशा मुक्ति संगठन अपने वास्तविक उद्देश्य भूलकर इसे एक कारोबार के रूप में देखते हैं। उन्होंने बताया कि 1996 में उनकी पहली कहानी परछाइयां प्रकाशित हुई थी। इसके बाद अब तक कई कहानी-संग्रह और उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं।
डॉ. रेणु बहल ने कहा कि शुरुआत से ही उनका एक उद्देश्य था कि उर्दू भाषा व अदब को इस शहर में ज़िंदा रखा जाए। इसी प्रयास के परिणामस्वरूप उन्होंने फिक्शन-सृजन शुरू किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो॰ रेहाना परवीन ने की। अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने समाज में बढ़ते नशे और युवाओं की तबाही पर अफ़सोस जताते हुए कहा कि समाज का हर व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी समझे और जहां भी कोई बच्चा इस दिशा में जाता हुआ दिखे, उसे इस दलदल से बचाने की कोशिश की जाए। बच्चों को खेल-कूद और अन्य गतिविधियों में व्यस्त किया जाए ताकि उन्हें नशे से दूर रखा जा सके।
इस दौरान प्रो॰ रेहाना परवीन ने विभागाध्यक्ष प्रो॰ डॉ. अली अब्बास को इस तरह के बिंदु-पूर्ण तथा सारगर्भित कार्यक्रम के आयोजन पर बधाई भी दी। याद रहे कि विभागाध्यक्ष डॉ. अली अब्बास ने प्रारंभिक परिचय में आए हुए अतिथियों का स्वागत किया और डॉ. रेणु बहल की साहित्य-सेवाओं पर उन्हें बधाई दी, उनकी कहानियों को आधार बनाकर प्रश्न-उत्तर का प्रारंभ किया। संचालन-कर्त्ता डॉ. ज़ुल्फ़िकार अली ने कुशलता से कार्य निभाया। उन्होंने कहा कि जैसे हमें पंजाब को हराभरा देखना अच्छा लगता है, उसी तरह  डॉ. अली अब्बास उर्दू भाषा को हरा-भरा रखने हेतु सदैव प्रयासरत रहते हैं। यह कार्यक्रम इसी श्रृंखला की एक कड़ी है। इस अवसर पर शहर की कई साहित्य-व्यक्तियों के अलावा विभाग के शोध-छात्रों एवं विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की।