समकालीन अध्यात्म और कथा-साहित्य का सशक्त संवाद: नई दिल्ली में कार्तिकेय वाजपेयी की पुस्तक ‘द अनबिकमिंग’ का लोकार्पण

नई दिल्ली के साहित्यिक परिदृश्य में एक स्मरणीय क्षण रचते हुए, प्रथम उपन्यासकार कार्तिकेय वाजपेयी ने अपने बहुप्रतीक्षित उपन्यास ‘द अनबिकमिंग’ का गरिमामय लोकार्पण किया। प्रभा खेतान फाउंडेशन की प्रतिष्ठित पुस्तक पहल ‘किताब’ के अंतर्गत आयोजित इस सुसंवेदनशील और विचारोत्तेजक संध्या ने साहित्य प्रेमियों, विद्वानों और संवादधर्मियों को एक साथ लाकर गहन विमर्श, आत्मचिंतन और रचनात्मक आदान प्रदान का समृद्ध अवसर प्रदान किया।

समकालीन अध्यात्म और कथा-साहित्य का सशक्त संवाद: नई दिल्ली में कार्तिकेय वाजपेयी की पुस्तक ‘द अनबिकमिंग’ का लोकार्पण
L-R :Geshe Dorji Damdul,Shinjini Kulkarni, Dr Karan Singh, Dr Murli Manohar Joshi,Shri Jagdeep Dhankhar,Acharya Sri Pundrik Maharaj, Abha Vajpai & Author Kartikeya Vajpai.

नई दिल्ली: नई दिल्ली के साहित्यिक परिदृश्य में एक स्मरणीय क्षण रचते हुए, प्रथम उपन्यासकार कार्तिकेय वाजपेयी ने अपने बहुप्रतीक्षित उपन्यास ‘द अनबिकमिंग’ का गरिमामय लोकार्पण किया। प्रभा खेतान फाउंडेशन की प्रतिष्ठित पुस्तक पहल ‘किताब’ के अंतर्गत आयोजित इस सुसंवेदनशील और विचारोत्तेजक संध्या ने साहित्य प्रेमियों, विद्वानों और संवादधर्मियों को एक साथ लाकर गहन विमर्श, आत्मचिंतन और रचनात्मक आदान प्रदान का समृद्ध अवसर प्रदान किया।
इस आयोजन में लेखक, विद्वान और उत्साही पाठक एक साथ आए और उपन्यास में निहित दार्शनिक विषयों पर संवाद किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति रही, जिससे एक ऐसी शांत और आत्ममंथनपूर्ण वातावरण की रचना हुई, जो उपन्यास की दार्शनिक गहराई को प्रतिबिंबित करता था।
इस पुस्तक में परम पावन दलाई लामा और स्वामी सर्वप्रियानंद की भूमिकाएँ (फॉरवर्ड) शामिल हैं। संध्या के दौरान उनके योगदानों का उल्लेख पुस्तक की आध्यात्मिक और दार्शनिक प्रामाणिकता के प्रमाण के रूप में किया गया, जिससे ‘द अनबिकमिंग’ को आत्म-चिंतन और करुणा की एक जीवंत परंपरा के भीतर स्थापित किया गया।
विमोचन के अवसर पर बोलते हुए लेखक कार्तिकेय वाजपेयी ने कहा,“द अनबिकमिंग’ इस समझ पर आधारित है कि हमारे अधिकांश दुःख का कारण उन पहचानों से चिपके रहना है, जो भय और अपेक्षाओं से गढ़ी जाती हैं। मूलतः यही वह एकमात्र तत्व है जो हमें एक व्यक्ति के रूप में सीमित करता है। इसलिए निराकार बनिए, विचारों से मुक्त रहिए और अपनी स्वयं-निर्मित छवि तथा दूसरों द्वारा थोपे गए दृष्टिकोणों से स्वयं को मुक्त कीजिए। ‘अनबिकमिंग’ एक शांत वापसी है—जीवन को अपना उद्देश्य स्वयं प्रकट करने देने का निमंत्रण, न कि उस पर कोई उद्देश्य थोपने का प्रयास। आधुनिक जीवन में आत्म-मंथन  अत्यंत आवश्यक है। यह हमें स्पष्टता के साथ कर्म करने में सहायक होता है, साथ ही उपस्थिति और सजगता में स्थिर बनाए रखता है।”
विमोचन के अवसर पर आयोजित चर्चा सत्र में डॉ. कर्ण  सिंह, डॉ. मुरली मनोहर जोशी,आचार्य श्री पुंडरिक महाराज और गेशे दोरजी दामदुल जैसे विशिष्ट वक्ताओं का पैनल शामिल था। पैनल ने पुस्तक में पिरोये गये  प्रमुख  विषयों—जैसे पहचान, आंतरिक स्पष्टता, उद्देश्य और ‘अनबिकमिंग’ की प्रक्रिया—पर अपने विचार साझा किए।यह चर्चा समकालीन महत्वाकांक्षा, जीवन में लचीलापन  और आधुनिक समय में अर्थ की तलाश जैसे विषयों पर केंद्रित थी। तेजी से बदलती और अशांत होती दुनिया में आत्ममंथन के महत्व को भी विशेष रूप से रेखांकित किया गया। सत्र का संचालन कथक नृत्यांगना और पंडित बिरजू महाराज की पौत्री, शिंजिनी कुलकर्णी ने किया, जो प्रभा खेतान फाउंडेशन की ‘एहसास वुमन’ भी हैं। श्रोताओं की उत्साही सहभागिता से यह स्पष्ट हुआ कि चर्चा के विषय उनके भीतर गहराई तक प्रतिध्वनित हुए।
पुस्तक में सीखने और व्यक्तिगत विकास की यात्रा पर विचार करते हुए, डॉ. कर्ण सिंह ने उपन्यास के विषयों और भारत की दार्शनिक परंपरा के बीच निरंतरता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “लोग अक्सर पूछते हैं कि सार्वजनिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन को कैसे जोड़ा जा सकता है. पिछले 75 वर्षों के मेरे अनुभव में यह पूरी तरह संभव है—बशर्ते व्यक्ति के भीतर के आत्मबोध और सार्वजनिक जीवन—दोनों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता हो. ‘द अनबिकमिंग’ में कार्तिकेय ने इन दोनों आयामों को अत्यंत सुंदर ढंग से संयोजित किया है. हर प्रथम उपन्यास की तरह, लेखक की उपस्थिति इसमें गहराई से महसूस होती है. यह पुस्तक बाहरी जीवन और आंतरिक साधना के सामंजस्य को प्रतिबिंबित करती है. मैं कार्तिकेय को उनके प्रथम उपन्यास के लिए बधाई देता हूँ और इसकी सफलता की कामना करता हूँ।”
लोकार्पण समारोह में बोलते हुए डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा,
“‘द अनबिकमिंग’ में कार्तिकेय ने दक्षता, प्रभावशीलता और एकाग्रता—इन तीनों को जीवन की एक विचारपूर्ण दर्शन-व्यवस्था में पिरोया है. प्राचीन ज्ञान से प्रेरणा लेकर और उसे क्रिकेट के अनुशासन के माध्यम से अभिव्यक्त करते हुए, यह पुस्तक दिखाती है कि जागरूकता के माध्यम से ही संतुलन प्राप्त होता है—जहाँ मौन शक्ति बन जाता है और आध्यात्मिकता आत्म-नियंत्रण का मार्ग।”
पुस्तक की सीख और व्यक्तिगत विकास में इसकी संलग्नता पर विचार करते हुए, आचार्य श्री पुंडरिक महाराज ने कहा , “यह पुस्तक पहचान पर विचार करने का एक विचारशील दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, जो केवल भूमिकाओं और उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, और यह  हमें यह भी याद दिलाती है कि सच्चा सीखना एक अंदरूनी और सतत प्रक्रिया है।”
उपन्यास और महामहिम दलाई लामा के संदेश के बीच गहरे सामंजस्य पर प्रकाश डालते हुए गेशे दोरजी दामदुल ने कहा कि उपन्यास में स्पष्टता, करुणा और ईमानदार आत्म-बोध पर बल दिया गया जो  महामहिम की शिक्षाओं के मूल सार को प्रतिबिंबित करता है। उन्होंने बताया कि पुस्तक न केवल आध्यात्मिक संबंधों की पड़ताल करती है, बल्कि गुरु–शिष्य परंपरा को भी अत्यंत पवित्रता और संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती है—जहाँ समर्पण, विश्वास और आंतरिक परिवर्तन की यात्रा स्वाभाविक रूप से उभरकर सामने आती है।