कुछ लघुकथाएं शीघ्र प्रकाश्य लघुकथा संग्रह मैं नहीं जानता में से

कुछ लघुकथाएं शीघ्र प्रकाश्य लघुकथा संग्रह मैं नहीं जानता में से
कमलेश भारतीय।

कुछ लघुकथाएं शीघ्र प्रकाश्य लघुकथा संग्रह मैं नहीं जानता में से । हंस प्रकाशन , दिल्ली के हरेंद्र तिवारी और डाॅ नरेंद्र मोहन का आभार ।

शर्त 

युवा समारोह में श्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतने वाली कलाकार अभिनय से अचानक मुख मोड़ गयी । क्यों ? यह सवाल पूछा तब उसने ठंडी आह भर कर बताया कि सर,  नाटक निर्देशक मुझे स्टुडियो मे कदम रखने सै पहले कहने लगे कि अंदर जाने से पहले शर्त यह है कि शर्म बाहर रखनी होगी ।
बस,  मेरी कला शर्मसार होने से पहले घर लौट आई ।
,,,,,,,,,,
ख्याल
ख्याल कब आ जाए , कह नहीं सकते । रोज सुबह किचन का कूड़ा घर आने वाली स्वीपर को डालते हैं । एक दिन छुट्टी कर जाए तो कोफ्त हो उठती है । अचानक ख्याल आया कि ऐसे ही अपने मन में रोज किसी के प्रति गुस्सा,  अपमान,  ईर्ष्या जमा करते रहते हैं,,,,यह कूडा कब खाली करोगे ? ख्याल हैं, ,,,आपका क्या ख्याल हैं ?
,,,,,,,,
माफी 
हम रोज चिड़ियों के लिए घर की बाहरी दीवार पर दाना डालते । चिडियां भी सुबह सवेरे चहचहाना शुरू कर देतीं । मानो अपना दाना मांग रही हों । हम सबसे पहले उन्हें दाना बिखेरते । फिर दिनचर्या शुरू करते । 
एक दिन दोपहर को देखा कि दीवार के नीचे किसी चिड़िया का पंख पड़ा है । यह समझते देर न लगी कि किसी बिल्ली ने उसे अपना शिकार बना डाला है । चिड़ियां भी चहचहाने की बजाय चीख रही थीं । फिर कई दिन नहीं आईं । उन्हें लगा कि हमने ही यह धोखा किया है । 
हम फिर भी दाना बिखेरते रहे । एक आस में । 
आखिर एक सुबह चिड़ियां घर की चारदीवारी पर चहचहाने लगीं । 
हमें लगा कि चिड़ियों ने हमें माफ कर दिया ।
,,,,,,,,,,
रिश्ते
छोटे छोटे सिक्के मेरी जेब में इकट्ठे होते रहते । कभी भारी सी लगने लगती जेब । पर सोचता कि पडे रहें । क्या फर्क पडता है । एक दिन ऑटो से उतरा । बडे नोट शर्ट चेंज करते समय डालना भूल गया । इससे पहले कि शर्मिंदा हो जाऊं । सिक्के मेरी जेब में खनक उठे । वाह । ऑटो के पैसे देकर भी बचे हुए थे । 
सच , कुछ रिश्ते ऐसे ही साथ साथ चलते रहते हैं और वक्त पडने पर जहां बडे रिश्तेदार व मित्र काम नहीं आते । ये एकदम से खनकते चहकते हमारे पास आ जाते हैं और दुख के दिनों में बहुत साथ देते हैं । अजब पहेली हैं रिश्ते और अजब गजब दास्तान है इनकी ।,,,,
,,,,,,,
मोबाइल
मैं दूर परदेस में था । छोटे भाई का फोन आया । मां नहीं रही । दूसरी सुबह मुंह अंधेरे टैक्सी से चला और सही समय पर पहुच गया । तब तक मां की अंतिम यात्रा कीअं सारी तैयारी हो चुकी थी । बस । मुंह हाथ धोया और कंधा देकर चला ही था कि जेब में रखे फोन की घंटी बज उठी । ओह । अंतिम यात्रा तक यह मोबाइल भी ,,,,तुरंत स्विच ऑफ किया । सब मेरी ओर देखते रहे ,,,,
-कमलेश भारतीय