समाचार विश्लेषण/सोशल मीडिया सब पर भारी , पर किसकी जिम्मेदारी ?

समाचार विश्लेषण/सोशल मीडिया सब पर भारी , पर किसकी जिम्मेदारी ?
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
आज जो हालात हैं , इनमें सोशल मीडिया सभी मीडिया के तंत्रों पर भारी है । अखबार यानी प्रिंट मीडिया से थोड़ी दूरी बढ़ रही है और समाचारपत्रों को अनेक तरीकों का सहारा लेना पड़ रहा है जिससे कि अखबार चर्चा में रहे । कभी फ्री की स्कीमें चलाई जाती हैं तो कभी इनाम रखे जाते हैं तो कभी अपने अपने ऑफिसों या बाहर प्रोग्राम आयोजित करने पड़ रहे हैं । घर घर सर्वे भी चलते रहते हैं । 

टीवी चैनल चौबीस घंटों तक खबरें चलाते हैं या वही वही बासी खबरें चौबीसों घंटों परोसते हैं । नयी ब्रेक के नाम पर भी वही वही परोसा जाता है बार बार । बहसें भी पूर्व नियोजित व सत्ता निर्धारित हो रही हैं जिससे इसके दर्शक कम होते जा रहे हैं । 

सरकारी टी वी और रेडियो यानी आकाशवाणी पर संकट के बादल छाये हैं और ये लगभग अपना प्रभाव खोते जा रहे हैं । इश पर बंद होने की तलवार भी लटक रही है । सरकार भी शायद अन्य संस्थानों की तरह इनसे छुटकारा पाने के मूड में है । ऐसे में सामने आया सोशल मीडिया जिसे आप विभिन्न रूपों में देख रहे हो -ट्विटर , इंस्ट्राग्राम, फेसबुक और यूट्यूब । हर शहर में न जाने कितने यूट्यूबर्ज हो गये हैं । ज्यादातर बिना किसी प्रशिक्षण के मैदान में उतर आए हैं और फेक न्यूज भी चलाते हैं । खासतौर पर चुनाव के दिनों में इनकी चांदी होती है और इनकी जगह जगह आमंत्रित किया जाता है । कुछ नेताओं को यूट्यूबर्ज के बिना नाश्ते का मजा भी नहीं आता और भरी प्रेस कांफ्रेंस में यूट्यूबर्ज को अधिमान देते हैं जबकि प्रिंट मीडिया को कम आंकने लगे हैं । यह गलतफहमी काग्रेस की एक महिला नेत्री को भी हुई और ऐसे अंधाधुंध प्रचार के बावजूद औंधे मुंह गिरी । सोशल मीडिया तो किसी को वेंटिलेटर पर होने की खबर मात्र से उसे श्रद्धांजलि अर्पित कर देता है । ऐसे ही स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के मामले में हुआ और फिर माफी मांगी गयी । राजनेताओं के बारे में बाकायदा फेक न्यूज चला कर भ्रम फैलाने का काम किया जाता है । एक दूसरे को नीचा दिखाने व भ्रम फैलाने जैसी खबरें चलाई जाती हैं । अभी हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष को लेकर कितने दिन ऐसी खबरें चलती रहीं कि कभी किसी को तो कभी किसी को अध्यक्ष पद नवाजे जाते रहे लेकिन अंततः उदयभान अध्यक्ष पद पर विराजमान हुए । इस तरह मीडिया की विश्वसनीयता कम करने में सोशल मीडिया का ज्यादा हाथ है । प्रिंट में थोड़ा संभल कर और थोडा होमवर्क करके ही खबर दी जाती है जबकि यह सोशल मीडिया तो ट्वंटी ट्वटी क्रिकेट जैसा है । जो समाचार मिला तुरंत बिना पूरी खोज खबर लिखे बस चला दिया । बाद में माफी लो । क्या फर्क पड़ता है ?

माना कि खबर को सबसे पहले देने की होड़ सबसे में होती है लेकिन इसमें होश तो रखना ही पड़ेगा । जोश के साथ होश बहुत जरूरी है । 
पहले कहते थे :
खींचो न कमानों को , न तलवार निकालो 
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो 
लेकिन आजकल तो यह है कि 

तुरंत सोशल मीडिया पर अपलोड करो लेकिन होश बनाये रखिए मित्रो ।  बस । इतना ही कहना है ।

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।