समाचार विश्लेषण/ताबड़तोड़ रैलियां और पैसे की गर्मी 

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव आने वाले हैं । सबसे ज्यादा जोर लगा है सभी प्रमुख दलों का उत्तर  प्रदेश राज्य पर क्योंकि यह एक बड़ा प्रदेश है इसे जीतने का मतलब लोकसभा चुनाव की जीत की राह आसान बनाना है ।

समाचार विश्लेषण/ताबड़तोड़ रैलियां और पैसे की गर्मी 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव आने वाले हैं । सबसे ज्यादा जोर लगा है सभी प्रमुख दलों का उत्तर  प्रदेश राज्य पर क्योंकि यह एक बड़ा प्रदेश है इसे जीतने का मतलब लोकसभा चुनाव की जीत की राह आसान बनाना है । जहां कांग्रेस प्रियंका गांधी के सहारे इस वितरण को पार करना चाहती है , वहीं भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सलामी जोड़ी पर निर्भर कर रही है । यह सबसे हिट जोड़ी इस बार भी रैलियों की शुरूआत कर चुकी है , इसलिए क्रिकेट की भाषा में सलामी जोड़ी कहा है । यही नहीं ये दूसरे दलों के नेताओं पर कटाक्ष का काम यानी चौके छक्के लगाना भी शुरू कर चुकी है । जैसे समाजवादी पार्टी की लाल टोपी को खूनी टोपी कहना और अब इत्र बैठने वाले व्यापारी को लेकर स्पा पर दुर्गंध फैलाने का काम करने वाली पार्टी कहना । यह खेल फर्रूखावादी अभी शुरू हुआ है । कहां तक चलेगा ? कह नहीं सकते । कहां पहुंचेगा ? कुछ पता नहीं ।
उत्तर प्रदेश में भाजपा की रैलियों को लेकर बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने टिप्पणी की है कि ये रैलियां चुनाव से पहले जो रैलियां की जा रही हैं ये जनता के पैसे और सरकारी कर्मचारियों की भीड़ के बलबूते की जा रही हैं । उन्होने यह भी कहा कि बसपा की कार्यशैली और चुनाव को लेकर तौर तरीके अलग हैं । हमारी पार्टी गरीबों और मजलूमों की पार्टी है , दूसरी पार्टियों की तरह धन्ना सेठों की पार्टी नहीं है । याद रहे कि भाजपा के अभाव शाह ने  मुरादाबाद , अलीगढ़ और उन्नाव में जनविश्वास यात्रा के दौरान बसपा पर हमले करते कहा था कि बसपा प्रमुख बहन मायावती जी तो ठंड के कारण मैदान में उतर ही नहीं रहीं । चुनाव आ गया है और वे प्रचार के लिए भी नहीं निकल रहीं । उन्होंने यहां तक कहा कि लगता है कि पहले ही हार मान ली । इसी के जवाब में मायावती ने मीडिया में आकर कहा कि भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियां केंद्र या जिन भी राज्यों में सत्ता में होती हैं , चुनाव घोषित होते ही लगातार दो अढ़ाई महीने पहले ही ताबड़तोड़ रैलियां कर हवा हवाई घोषणाएं , शिलान्यास , उद्घाटन और लोकार्पण जैसे कार्यक्रम चलाती हैं । इनकी आड़ में सरकारी खर्च से खूब चुनावी जनसभाएं करती हैं । ये आम जनता का पैसा पानी की तरह बहाती हैं ।आधी भीड़ तो टिकट चाहने वालों की होती है और आधी सरकारी कर्मचारियों की । अब जो ठंड में भी गर्मी चढ़ी हुई है यह सरकार के रईसों के खजाने की ही गर्मी है ।
जो भी हो मायावती ने समय अनुसार जवाब तो सही दिया है लेकिन क्या वे जनता से धन इकट्ठा नहीं करती रहीं ? खासतौर से अपने जनाभदिन के बहाने दिल्ली में बड़ा बड़ा समारोह करके और टिकट बांटने के नाम पर पैसे बटोरने के आरोप सबसे ज्यादा इन पर ही नेता लगाते रहे हैं । 
सभी पार्टियां अपनी अपनी विचारधारा और विकास की बात करने की बजाय बड़ी बड़ी रैलियों पर विश्वास करने लगी हैं । विकास या मुद्दे की बातें पीछे रह जाती हैं और इस तरह के आरोप प्रत्यारोपों में ही चुनाव निकल जाता है । या फिर जातिवाद का सहारा लिया जाता है । अब हरियाणा में भी रैलियों का चलन बहुत बढ़ता जा रहा है । कभी अपनी पार्टी के स्थापना दिवसों पर रैलियां तो कभी विपक्ष आपके द्वार के नाम पर रैलियां । कभी खर्ची पर्ची के विरोध में रैली तो कभी देशभक्ति को लेकर बढ़ चढ़ कर रैली । नये से नये मुद्दे पर रैली और होर्डिंग्स लग कर शहरों की दीवारों को पोतने की कोशिश । हमारा प्यार हिसार ने कितना अभियान चलाया कि होर्डिंग्स लगा कर या लिखवा कर शहर की दीवारों को न भर डालिए लेकिन ये समर्थक हैं कि मानते ही नहीं , सुनते भी नहीं । शहर फिर होर्डिंग्स से भरा पड़ा है । ऐसे ही पंजाब में मुख्यमंत्री चन्नी और आप नेता अरविंद केजरीवाल के पोस्टरों से दीवारें और पोल भरे पड़े हैं । उत्तर प्रदेश की योगी जी जाने पर विज्ञापनों पर भी बेतहाशा खर्च किया जा रहा है । फिर चाहे वे योगी जी हों या फिर केजरीवाल । आजकल तो चन्नी के पूरे पन्नों के विज्ञापन भी ध्यान आकर्षित करने लगे हैं । प्रचार कैसे किया जाये ? जनता के धन को कैसे बचाया जाये , इसे लेकर कोई बहस या विचार या मंथन होना चाहिए ।
चलो कोई नयी शुरूआत करें ,,,,
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।