समाचार विश्लेषण/रैली में सुरक्षा की चूक या चालाकी?

राजनीति न 'खेला', न 'खदेड़ा' बस 'जनसेवा'

समाचार विश्लेषण/रैली में सुरक्षा की चूक या चालाकी?
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
पंआब के फिरोजपुर में रैली करने जा रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में सुरक्षा की चूक हुई या कांग्रेस की चन्नी सरकार ने कोई चालाकी की ? यह सवाल उठ खड़ा हुआ है और दोनों तरफ से आरोप प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला कल से ही चल रहा है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रूट मौसम खराब हो जाने की वजह से अचानक बदलना पड़ा।  जहां उन्हें हेलीकॉप्टर से पहुंचना था , वहां वे सड़क मार्ग से जाने के लिए विवश हो गये और जब अपने निर्धारित लक्ष्य से मात्र ग्यारह किलोमीटर दूर रह गये तब उन्हें वापस लौटने के लिए विवश होना पड़ा । क्यों ? क्योंकि ट्रैक्टर ट्राली से उनका रास्ता रोका हुआ था और पंद्रह बीस मिनट तक इंतज़ार करने के बाद वे बठिंडा लौटे और एयरपोर्ट पर अधिकारियों से कहा कि अपने सीएम को थैंक्स कहना कि मैं जिंदा लौट पाया । इसके बाद से राजनीतिक बवाल और दोषारोपण शुरू हो गया । 
जहां केंद्रीय गृहमंत्री अमि शाह कहते हैं कि ऐसी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जायेगी और जवाबदेही तय करेंगे , वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी कहते हैं कि पंजाब से प्रधानमंत्री के लौटने का खेद फै लेकिन उन्हें खतरा हुआ तो अपना खून बहा दूंगा । पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कहा कि राज्य सुरक्षित रखना है तो राष्ट्रपति शासन लगे और किसान कह रहे हैं कि एमएसपी समेत हमारी मांगें पूरी होने तक प्रधानमंत्री का विरोध जारी रहेगा ।
इन सब बयानों व घटनाक्रम के आधार पर यह कहना कि जानबूझ कर चूक हुई , यह थोड़ा ज्यादा होगा क्योंकि अचानक कार्यक्रम में बदलाव हुआ और यह कहना कि सुरक्षा में चूक हुई तो फिर हमारी सुरक्षा एजेंसियां क्या कर रही थीं ? पंजाब पुलिस प्रदर्शनकारियों को हटा न सकी जबकि प्रधानमंत्री को सूचना दी गयो कि रास्ता क्लियर है । दूसरी बात अचानक बदले प्रोग्राम की जानकारी प्रदर्शनकारियों तक कैसे पहुंची ? पाकिस्तान की सीमा के साथ सटा है फिरोजपुर और नरेंद्र मोदी हुसैनीवाला जा रहे थे पहले शहीदों को प्रणाम करने । इस सीमांत जिले पर सुरक्षा की चूक बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है । प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक नहीं होनी चाहिए थी लेकिन सोशल मीडिया कहना लगा है कि बंगाल में तो 'खेला होबे' जबकि पंजाब में 'खदेड़ा होबे' । यानी प्रधानमंत्री का वापस लौटना कोई राजनीतिक खेल हो । नहीं । ऐसा राजनीतिक खेल नहीं होना चाहिए । यहां तक भी कहा जा रहा है कि यदि इसी तरह से राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को रैली किये बिना लौटना पड़ता तो क्या रणदीप सुरजेवाला की यही प्रतिक्रिया होती ?  कांग्रेस यह पक्ष रख रही है कि प्रधानमंत्री की रैली के लिए बहुत कम भीड़ जुटी जिसे देखते हुए यह रैली रद्द की गयी जबकि भाजपा कह रही है कि सत्तर हजार लोग जुटे हुए थे मोदी को सुनने के लिए और मुख्यमंत्री चन्नी का दावा है कि मात्र सात सौ लोग ही जुटे थे और इतनी कम भीड़ के चलते रैली रद्द की गयी । राजनीति को खेला और खदेड़ा बना दिये जाने पर दुख है । न यह खेला है , न यह खदेड़ा है , यह तो जनसेवा है जो रूप बदलते बदलते बदरंग होती जा रही है । जरा इस बात पर गौर कीजिए न कि आरोप प्रत्यारोप में बह जाइए । न खेलिए , न खदेड़िए बल्कि जनसेवा कीजिए और सबसे बड़ी बात कोरोना की फिर से बिगड़ती हालत को देखते रैलियां रद्द कीजिए ।  उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और सपा ने अपनी रैलियां रद्द कर दी हैं तो भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व ऐसा फैसला क्यों नहीं करता ? पहले जनता की सुरक्षा , फिर कोई काम दूजा ...प्लीज ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।