साहित्यकार की वसीयत 

साहित्यकार की वसीयत 
कमलेश भारतीय।

मेरे शव पर 
एक भी फूल न चढ़े
ध्यान रखना मेरे मित्र 
मैंने फूलों में नहीं 
कांटों की चुभन में 
बिताया सारा जीवन ।
थैलियां मेरे काम की नहीं 
न भेंट करना मेरी पीढ़ियों को । 
न कोई खिड़की से झांक कर कहे -
कोई स्कूल मास्टर मर गया है ।
मेरे मरने पर कोई शोक संदेश 
या श्रद्धांजलि सभा मत रखना ।
मैं कलम का सिपाही 
समाज के हर मोर्चे पर अकेला ही खडा रहा । 
अच्छा कुछ न कुछ करना ही चाहते हो ? 
तो मेरे होरी कोई 
मेरी निर्मला को 
मेरे स्थान पर 
जीवनदान देना ।
-कमलेश भारतीय