लघुकथा/राजनीति

लघुकथा/राजनीति
मनोज धीमान।

चुनाव सिर पर थे। विनोद बाबू परेशान थे। इस बार उनकी स्थिति डावांडोल थी। पिछले दो चुनाव में वे विधायक का चुनाव जीतते आ रहे हैं। इस बार उनके प्रति लोगों में गुस्सा है। हरेक को किसी न किसी बात पर उनसे नाराज़गी है। रात को एक इमरजेंसी बैठक हुई। उनके सभी सहयोगी बैठक में उपस्थित थे। सभी अपने अपने सुझाव दे रहे थे। लेकिन विनोद बाबू को कोई भी सुझाव पसंद नहीं आ रहा था। तभी एक सक्रिय कार्यकर्ता ने सुझाव दिया कि इस बार जग्गू की सेवाएं ली जाएँ। जग्गू जवान है। हट्टा कट्टा है। अच्छी कद काठी है। सनकी है। शहर भर में रेहड़ा चला कर सामान ढ़ोता है। मजदूरी करता है। लेकिन दिमाग से सनकी है। दो चार की अच्छी खासी धुनाई कर चुका है। तब से उसकी बदमाशी चल निकली है। हर कोई उससे ख़ौफ़ खाने लगा है। किसी को कोई मुश्किल काम करवाना हो तो उसी के नाम का सहारा लेने लगा है। बात विनोद बाबू के दिल को भा गई। बस फिर क्या था। जग्गू को विनोद बाबू के टोले में शामिल कर लिया गया। जो कोई भी विनोद बाबू के विरुद्ध आवाज़ उठाने का प्रयास करता जग्गू उसके पास पहुँच जाता। एक दो को तो उसने सबक भी सीखा दिया। जग्गू अब हर समय अपने पास हथियार भी रखने लगा था।  उसे किसी की परवाह नहीं थी। सनकी तो वह पहले से ही था। अब तो वह सियासी छत्रछाया में था। जग्गू का सिक्का चल गया। विनोद बाबू तीसरी बार विधायक बन गए। इसके साथ ही जग्गू का दबदबा भी बढ़ता चला गया। वह दिन प्रतिदिन और सनकी बनता चला गया। अगला चुनाव आते आते किसी ने उसके दिमाग में यह बात दाल दी कि अगर वह विनोद बाबू तो विधायक बनवा सकता है तो ख़ुद क्यों नहीं बन सकता। अब जग्गू के दिमाग पर विधायक बनने की सनक सवार थी। उसका दायरा भी बढ़ चुका था। हरेक क्षेत्र में लोग उसे पहचानने लगे थे। अपने दम पर उसने कई लोगों के काम करवाए थे। कुछ अच्छे। कुछ बुरे। विनोद बाबू के भारी विरोध के बावजूद वह निर्दलीय उमीदवार के तौर पर चुनाव में खड़ा हो गया। इस बार चुनाव में विनोद बाबू की बुरी तरह से पराजय हुई। जग्गू भरी बहुमत से चुनाव जीत गया। विनोद बाबू एकदम अकेले रह गए। उनके सभी मित्र, सहयोगी व कार्यकर्ता जग्गू के साथ जा मिले थे। विनोद बाबू हताश हो कर सभी से लड़ने झगड़ने लगे। पार्टी ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। उनकी जगह जग्गू को पार्टी में शामिल कर लिया गया। हर तरफ जग्गू का डंका बजने लगा। विनोद बाबू एक दिन किसी से ऐसा उलझे कि उसका कत्ल ही कर दिया। आजकल विनोद बाबू जेल की हवा खा रहे हैं। दूसरी तरफ जग्गू अब मंत्री बनने के स्वप्न देख रहा है। 
-मनोज धीमान।