समाचार विश्लेषण/राजनीति का और कविता का विश्वास?

समाचार विश्लेषण/राजनीति का और कविता का विश्वास?
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
पंजाब के विधानसभा चुनाव में आज मतदान हो रहा है लेकिन इसने एक बड़ा सवाल उछाल दिया है कि राजनीति और साहित्यकारों में भी कुछ मेल मिलाप हो सकता है ,चल सकता है या फिर इनकी डगर अलग है ? असल में कुमार विश्वास ने पहले आप और केजरीवाल से प्रेम मुहब्बत की और जहां तक कि अमेठी बोरिया बिस्तर ले जाकर राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव भी लड़े । हालांकि तब न केवल कुमार विश्वास बल्कि स्मृति ईरानी भी अपना ग्लैमर न चला पाए । दोनों अपने अपने क्षेत्र में चर्चित थे । खैर , अमेठी से हारने के बाद भी कुमार विश्वास आप और केजरीवाल के खासमखास बने रहे लेकिन जब राज्यसभा में किसी को चुनने की बात आई तब न कुमार विश्वास का और न ही पत्रकार आशुतोष का चयन किया बल्कि और लोग भी दिये । जिससे दोनों नाराज और राजनीति से हताश होकर न केवल आप बल्कि लगभग राजनीति ही छोड़ गये । आशुतोष टीवी बहसों में तो कुमार विश्वास हास्य कार्यक्रमों में फिर से रंग बिखेरने लगे । लगता था अब कुमार विश्वास राजनीति की गलियों में फिर से कदम नहीं रखेंगे लेकिन पंजाब चुनाव के प्रचार के दिन खत्म होने से पहले कुमार विश्वास लौटे तो यह आरोप लगाते हुए कि अरविंद केजरीवाल की सोच क्या है , कैसी होहै और वे किस हद तक जाकर पंजाब के अलग देश बनने पर उसके प्रथम प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने लगे थे । यानी आतंकवाद के प्रति क्या नजरिया रखते थे और क्या सोच थी ? इस ओर ध्यान आकर्षित किया । इस पर भाजपा ने तुरंत संज्ञान लिया । दूसरी पार्टियों ने भी इस मुद्दे को उछाला जिसे देखते हुए अरविंद केजरीवाल पर केस दर्ज कर लिया गया है और कुमार विश्वास को वाई श्रेणी सुरक्षा उपलब्ध करवा दी गयी है । 
अरविंद केजरीवाल ने जवाब में कुमार विश्वास के लिए कहा कि मैंने सोचा हास्य कवि है , कुछ भी कह सकता है । इससे कुमार विश्वास और भी चिढ़कर बोले कि मुझे क्या फ्लावर यानी मूर्ख समझ रखा है ? इस तरह कुमार विश्वास राजनीति में फिर से चर्चित हो गये । उनके पक्ष में देश के अनेक कवियों ने चिट्ठी लिखकर कहा है कि अरविंद केजरीवाल ने जो कुमार विश्वास समेत कवियों की जमात का अपमान किया है , उसके लिए माफी मांगें । इस तरह एक बार फिर से कुमार विश्वास चर्चा में हैं और हो सकता है कि उन्हें भाजपा में शामिल होने का प्रस्ताव भी मिल जाये । वे फिर से राजनीति के गलियारों में लौट आयें । 
वैसे तो पंडित जवाहर लाल नेहरू के संबंध अनेक साहित्यकारों से रहे चूंकि वे खुद भी साहित्यकार से कम नहीं थे । कितने साहित्यकारों को राज्यसभा में पहुंचा कर साहित्य का सम्मान करते रहे । बाद में इंदिरा गांधी भी एक शाम साहित्यकारों के साथ चाय की प्याली के साथ चर्चा किया करतीं और फीडबैक लिया करतीं । श्रीकांत वर्मा को उन्होंने राज्यसभा में पहुंचाया । 
अब यह परंपरा लगभग खत्म सी होती नजर आ रही है । कवि , लेखक कितनी भी आलोचना कर लें सरकार पर कोई असर नहीं । नहीं तो फणीश्वरनाथ रेणु का जननायक जयप्रकाश के आंदोलन से जुड़ने का नोटिस लिया गया था । वे एक बार चुनाव भी लड़े थे लेकिन सफल नहीं हुए । मध्य प्रदेश से साहित्यकार बालकवि बैरागी जरूर राजनीति में सफल रहे और उन्हें संसद तक जाने का मौका मिला । हरिवंश राय बच्चन राज्यसभा में रहे तो अभिनेता बेटा अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से चुन कर सांसद बना लेकिन राजनीति से जल्दी ही मोहभंग हो गया । अब सिर्फ ब्रांड एम्बेसेडर बन कर ही संतुष्ट हैं । 
वैसे तो लेखिका नंदिनी सत्पथी उड़ीसा की तो शांता कुमार हिमाचल के मुख्यमंत्री भी रहे । दोनों अच्छे लेखक भी रहे । साहित्य और राजनीति का रिश्ता बहुत पुराना है ।
कुमार विश्वास ने एक बार साहित्यकारों और राजनीति को निकट ला दिया है । आगे देखिए होता है क्या ....?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।