व्यंग्य यात्रा मंच पर पांच सितम्बर 2020 को आमने -सामने पूछे गये सवाल

रणविजय राव ने किया इसका संयोजन

व्यंग्य यात्रा मंच पर पांच सितम्बर 2020 को आमने -सामने पूछे गये सवाल
कमलेश भारतीय।

व्यंग्य यात्रा मंच पर इसी पांच सितम्बर को आमने -सामने पूछे गये सवाल आपके लिए संकलित । इसका संयोजन रणविजय राव ने किया । सभी प्रश्नकर्त्ताओं का हार्दिक आभार ।
के पी सक्सेना दूसरे- कमलेश जी, चूंकि आप सभी विधाओं में लिखने में सिद्धहस्त हैं । अतः आपको तो यह सुविधा है कि आप विषय की तासीर के मुताबिक विधा चुन सकते हैं। फिर भी आप अपनी अभिव्यक्ति को किस विधा में सर्वाधिक सहज पाते हैं? साथ ही यह भी बताएं कि  लेखक को विषय की प्रकृति पर विधा का  चयन करना चाहिए अथवा जिस विधा में वो दक्ष है उसमें विषय को तराशना उचित होगा ?
कमलेश भारतीय - मूलतः कथाकार । बचपन से दादी से कहानियां सुनीं और थोड़ी होश आने पर कहनी शुरू कीं । मेरा मानना है या अपना अनुभव कि रचना स्वयं अपनी विधा तय करती है । मैं चाह कर भी नाटक या गज़ल नहीं लिख पाया ।
सुषमा व्यास -आदरणीय सर को  सादर प्रणाम
मेरा प्रश्न है--- 
व्यंग्य में लघुकथा  का कितना स्थान है?
       व्यंग्य में निबंध, कहानी, कविता  को स्वीकार्य किया गया है।
       क्या लघुकथा भी स्वीकार्य है? 
        किस दृष्टि से देखेंगें-- व्यंग्य में लघुकथा या लघुकथा में व्यंग्य?
कमलेश भारतीय - सुषमा जी । व्यंग्य का पुट सें है । चाहे कविता , लघुकथा हो या निबंध या फिर कहानी । यहां तक कि श्रीलाल शुक्ल और डाॅ नरेंद्र कोहली ने उपन्यास तक को व्यंग्य की घुट्टी पिलाई । लघुकथा को लघुकथा ही कहना चाहूँगा । व्यंग्य का पुट इसे लोकप्रिय बनाने में सहयोग देता है । यानी साफ बात कि लघुकथा में व्यंग्य ।
आत्माराम भाटी-सर कमलेश जी प्रणाम।
आप कहानियां, लघुकथा, व्यंगय और कविताएं यानि आप साहित्य के हर प्रारूप में अपनी लेखनी का जादू चला रहे हैं। कह सकता हूं कि आप साहित्य के ऑलराउंडर हैं।
       आप की नज़र में एक कथाकार का व्यंग्यकार होना। व्यंग्यकार का कवि होना कितना सहज या दूभर है ?
कमलेश भारतीय - भाटी जी । सरल तो कुछ भी नहीं लिखना । कथाकार का या कवि का व्यंग्यकार हो जाना भी सरल नहीं । पर जैसी सिच्युएशन मिलेगी वेसा किस विधा में लिखा जा सकता है । यह तय करना है फिर वह चाहे कथाकार हो या कवि । अज्ञेय की यह छोटी सी कविता कितना व्यंग्य लिए है , यह आप तय करें : 
सांप 
तुम सभ्य तो हुए नहीं 
नगर में बसना भी नहीं आया । 
एक बात पूछूं? जवाब दोगे ?
फिर कहां से सीखा डसना ?
विष कहां से पाया ।

राकेश सोहम्  : आदरणीय भारतीय जी वरिष्ठ कथाकार, लघु कथाकार, कवि और व्यंग्यकार हैं । मैं जानना चाहता हूं कि कथा, लघु कथा, कविता और व्यंग्य में से क्या लिखना कठिन है? 
जब सामने का परिवेश आपकी भावनाओं को आहत करता है तब सबसे पहले क्या उपजता है तथा लघु कथा कविता या व्यंग्य ? और क्यों?
वह कौन सी मानसिक दशा होती है जब लगता है कि अब कुछ और नहीं बस व्यंग्य लिखा जाना चाहिए?   कमलेश भारतीय ---सोहम् जी । जैसे फिल्म एक्टर कहते हैं वही सच है । क्या ? कि सबसे मुश्किल है हंसाना या व्यंग्य करना । गहरे चोट करना । शब्दों को बाण बना देना । जहां तक मेरी बात है मुझे सबसे पहले कथा का ध्यान आता है कि कैसे मैं इसे कथा में कह सकता हूं । व्यंग्य के निकट होने के नाते और आप जैसे मित्रों की सोहबत से व्यंग्य का पुट जरूर रहता है । हां । कई बार पत्रकारिता के पलों में लगता रहा कि इसे मैं व्यंग्य में कहूं तो बात बन जाए पर संपादक इतनी छूट नहीं देते रिपोर्टर को । पर झलकियां देता रहा जो व्यंग्य का ही रूप होती थीं । इसे शाॅर्टकट माना जा सकता है लेखन में । व्यंग्य ही क्यों सभी विधाओं में यह प्रवृत्ति बढ़ रही है । इससे प्रभाव कम होना शुरू हो गया है । व्यंग्य का मारक या गहरे प्रभाव पर असर देखने को मिल रहा है ।  प्रभाव नहीं पड़ रहा ।

विवेक रंजन : कहानी और व्यंग्य कथा की बनावट में आप क्या कोई समानता देखते हैं ?
कमलेश भारतीय -ऐसी कोई शर्त या नियम तो नहीं । कहानी कहानी है और व्यंग्य व्यंग्य । दोनों के लेखन की ट्रीटमेंट भी अलग । समानता तो इतनी कि कथा में व्यंग्य हो सकता है तो व्यंग्य में कथा रहती है । बनावट में कोई समानता मेरे ख्याल से नहीं । दोनों स्वतंत्र हैं ।

अपर्णा :  इन दिनों मैं गौर कर रही हूँ कि कविता में व्यंग्य उचित स्तर का नहीं होता। इसका क्या कारण है? कमलेश भारतीय -बात नहीं । कभी शरद जोशी ने टी वी पर एक नववर्ष कार्यक्रम में लम्बी व्यंग्य कविता का पाठ किया था -मैं आसनसोल जाऊंगा या नहीं जाऊंगा और इसे खूब सुना गया । हां । मंच कवियों ने व्यंग्य कविता को काफी नुकसान पहुंचाया है । कितने कवियों ने छोटी छोटी व्यंग्य कविताएं अपने संग्रहों में दी हैं । धूमिल ने कितनी चोट की है । 

प्रभाशंकर उपाध्याय : आप महज सत्रह वर्ष की आयु में ही लेखकीय कर्म से जुड़ गए थे। बाद दैनिक ट्रिब्यून चंडीगढ़ में मुख्य संवाददाता रहे।आपकी कृति ’एक संवाददाता की डायरी’ को केन्द्रीय हिंदी निदेशालय नयी दिल्ली द्वारा पुरस्कृत किया गया | आप हरियाणा ग्रंथ अकादमी में उपाध्यक्ष के पद पर रहे। आपके दस कथा संग्रह हिंदी साहित्य की धरोहर बन चुके हैं | पंजाबी, उर्दू, अंग्रेजी, मराठी, डोंगरी, बंगला, मलयालम आदि भाषाओँ में आपकी रचनाएँ अनुवादित हो चुकी हैं | 
 आप मूलतः कहानियां लिखते हैं ।  धर्मयुग , कहानी , सारिका आदि में कहानियां प्रकाशित हुई लेकिन लघुकथा में आपकी विशेष दक्षता रही है। पहले लघुकथा संग्रह "महक से ऊपर"  को पंजाब के भाषा विभाग की ओर से सर्वोत्तम कथाकृति का पुरस्कार मिला। आपके चार लघुकथा संग्रह हैं और शीघ्र ही पांचवां भी आने वाला है। लघुकथा संग्रह ‘इतनी सी बात’ का पंजाबी में ‘ऐनी कु गल्ल’ के रूप में अनुवाद भी हुआ । अनेक लघुकथाओं का पंजाबी , गुजराती , मलयालम व अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ । 
राजस्थान में डॉ. रामकुमार घोटड़ ने लघुकथा की विवेचना पर अच्छा काम किया है।
आपसे लघुकथा लेखन पर मेरा प्रश्न है -
        वर्तमान में विपुल मात्रा में लघुकथाएं सामने आ रही है।अधिकांश में लघुकथा का मूल रूप और तत्व नदारद है।
     1. अत: लघुकथा के स्वरूप, आकार और मूलतत्व की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
      2. दूसरा प्रश्न वन/टू लाइनर पर है। विश्व की सबसे छोटी लघुकथा इसे माना गया है-
रेल की बोगी में दो यात्री संवाद कर रहे थे --
       एक - "मुझे भूत- प्रेत में विश्वास नहीं है।"
       दूसरा - "मुझे भी नहीं है।"
यह कहकर दूसरा अदृश्य हो गया।
       इसे फोर लाइनर कहेंगे क्या ?
कमलेश भारतीय -मित्र । लघुकथा से जुड़े और,लिखते एक उम्र बीत रही है । बहुत रूप देखे । यह नारा भी कि व्यंग्य की पूंछ के बिना वैतरणी पार नहीं हो सकतीं   पर फिर ऐसा कहने वालों ने यू टर्न ले लिया । बहुत छोटे आकार की लघुकथा लिखने के चक्कर में लघुकथा के चुटकुले में बदल जाने का डर रहता है । आलोचक नहीं हूं । पर कोई इसमें कुछ ढूंढ रही है तो कोई कुछ । आकार और शब्द सीमा कभ रहे तो ज्यादा प्रभाव पड़ता है । थोड़ा आकार बढ़ जाने से इसका लघुता का गुण प्रभावित होता है । कमाल तो यही है कि आप कम शब्दों में अपनी बात कहें । जो उदाहरण आपने दिया । उसे मेरे मित्र स्वर्गीय रमेश बतरा ने सचमुच टू लाइनर कर दिया : 
रात की पाली से थके हारे लौटे एक मजदूर की बेटी ने कहा -एक राजा है जो बहुत गरीब है ।।
जहां,तक बात हाफ लाइनर या वन लाइनर की तो यह शाब्दिक ढकोसले से ज्यादा नहीं । जैसे क्षणिकाएं को हंसिकाएं कहने लगे । ये पानी के बुलबुले जितना ही असर करती हैं । इनका प्रभाव क्षणिक ही होता है । स्थायी नहीं ।
 
 प्रभात गोस्वामी : ग्रंथ अकादमियों और साहित्य अकादमियों में व्यंग्य को अभी उतना महत्त्व नहीं दिया जा रहा । ऐसा माना जाता है कि व्यंग्य सरकार या व्यवस्था विरोधी होता है । आप क्या कहना चाहेंगे ? व्यंग्य को इन प्लेटफॉर्म्स पर मान्यता मिले, इसके लिए आपके क्या सुझाव हैं ?
कमलेश भारतीय : आपने बहुत अच्छा सवाल किया । मुझे अवसर मिला हरियाणा ग्रंथ अकादमी में सेवायें देने का । पत्रिका प्रकाशित व संपादित की सरकार की ओर से -कथा समय । शरद जोशी की बेटी नेहा शरद मेरे सम्पर्क में सोशल मीडिया से आईं और उनसे लिखवाया पापा के बारे में । पर यह एक उदाहरण । जहां तक प्रसिद्ध आलोचक डाॅ इंद्रनाथ मदान का इंटरव्यू करते वक्त अकादमियों के रोल पर सवाल किया था तब उनका उत्तर बहुत मजेदार था -भाषा को संवारने में सरकारी अकादमियों का कोई रोल मैं नहीं मानता । शुरू में कुछ काम होता है । फिर रूटीन और खाना पीना । आपसे सहमत हूं कि चूंकि व्यंग्य अपने आप में विपक्ष है तो इसे सरकारी पत्रिका में स्थान देने के खतरे कम नहीं । मान्यता मिलनी चाहिए । अगर आप कथा समय के अंक देखेंगे उस समय के तो कहीं भी सरकार का कोई गुणगान । या राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री ती किसी के भी बिना संदेशों व आशीर्वचनों से पत्रिका का प्रवेशांक आया था जो सरकारी पत्रिका की पहचान न लगे । इसलिए ।

डाॅ प्रेम जनमेजय  : लघुकथा को पहचान दिलाने वाले संघर्ष शील रचनाकारों में आपकी भी महत्वपूर्ण भूमिका है। हिंदी व्यंग्य ने भी पहचान का ऐसा संकट झेला है। संक्षेप में इस संघर्ष का बयान करें।
        लघु  व्यंग्य और वन लाइनर, हाफ लाइनर को क्या आप भिन्न पाते हैं ? क्या रचना के धरातल पर अलग पहचान रखते हैं या फिर शब्दिक। 
कमलेश भारतीय : संघर्ष बहुत । व्यंग्य और लघुकथा । दोनों के हिस्से में आया । डाॅ नरेंद्रर कोहली ,डाॅ प्रेम जनमेजय, हरीश नवल, लालित्य ललित और न जाने  कितने ही  व्यंग्यकारों ने जीवन अर्पित कर व्यंग्य को शूद्र से ब्राह्मण बना दिया । ऐसे ही मेरे जैसे कितने ही लघुकथा के  कार्यकर्त्ताओं ने इसे फिलर या स्वाद की प्लाट से एक पूर्ण विधा बनाने में जीवन लगा दिया । पंजाब में ऐसे लोगों को मरजीवड़े कहा जाता है जो सब कुछ मिटा डालें किसी मकसद के वास्ते । लघु व्यंग्य,, हाफ लाइनर या वन लाइनर केवल शाब्दिक ढकोसले कहे जा सकते हैं । कभी क्षणिकाएं को हंसिकाएं बना दिया जाना । कभी कोई और टैग लाइन । इनका असर व्यापक नहीं होता । प्रयोग के नाम पर प्रयोग कहे जा सकते हैं ।

परवेश जैन : व्यंग्य लघु कथा और हाफ लाइनर में क्या अंतर हैं l  व्यंग्य कथा और व्यंग्य निबंध की शब्द सीमा आपके अनुसार कितनी होनी चाहिये ?
  कमलेश भारतीय : वैसे तो लघुकथा और लघु व्यंग्य की आपस में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं । अपना अपना महत्त्व है । जहां तक समाचारपत्रों में स्पेस की बात है , इसमें साहित्य का ही स्थान सिकुड़ता जा रहा है । क्या लघुकथा , क्या व्यंग्य या कहानी सबको जगह नहीं मिल रही । लाॅकडाउन ने स्पेस और भी कम कर दी है । जनसत्ता मे अभी तक साहित्य पन्ना लौटा नहीं । दैनिक ट्रिब्यून में कभी माह में एक बार रविवार को लघुकथा प्रकाशित होती है । हिंन्दुस्तान में भी । जितने पत्र मेरे परिचय के दायरे में हैं छोटी छोटी समसामयिक टिप्पणियों को ज्यादा तरजीह देने लगे हैं । हमें यह मुहिम चलानी होगी कि हमारा साहित्य हमें वापस दो । फिर चाहे लघु व्यंग्य आए या लघुकथा ।  पहले रविवारी संस्करण ज्यादा बिकते थे तर साहित्यकार अनेक प्यार मंगवाते । अब स्थिति थोड़ी बदल चुकी है । आइए साहित्य को वापस लाएं । पत्रकारिता में सिखाया गया कि पाठक साकार पता को पटरी पर ला सकते हैं यदि पाठक संपादक को लिखें तो 

लालित्य ललित  : आपके जीवन और लेखन की प्राथमिकता क्या है ?
 कमलेश भारतीय  : आप और हम शब्दकर्मी हैं । कलम इसलिए पकड़ी कि अपनी बात दूसरों तक पहुंचायेंगे नहीं तो डायरी लेखन तो बहुत लोग करते हैं । पत्रकारिता में इसलिए आया कि बदलाव जल्द होता दिखता है । साहित्य के माध्यम से बदलाव धीरे होता है । उद्देश्य एक ही कि अपने सामर्थ्य भर बदलाव ला सकें । मुझे हिसार की गुजवि यूनिवर्सिटी के जनसंचार विभाग के एक समय अध्यक्ष पत्रकार कम और एक्टीविस्ट ज्यादा मानते थे और हूं भी   । साहित्य में भी और समाज में भी । साहित्य को आम लोगों तक पहुंचा सकूं संभवतः यह मेरी प्राथमिकता है । पत्रकारिता से आगे बढ़ कर सीधे भी बदलाव की दिशा में कदम उठा दिया करता हूं । इसलिए दैनिक ट्रिब्यून में मुझे कहते थे -डायरेक्ट एक्शन वाला सबएडीटर । आभार ।

डाॅ रश्मि चौधरी - व्यंग्य को हाफ लाइनर के रूप में प्रस्तुत करने लगे । क्या यह शाब्दिक ढकोसला मात्र है ? कितनी शब्द सीमा होनी चाहिए ?
कमलेश भारतीय-पहले भी थोड़ा संकेत किया कि हाफ लाइनर सिर्फ शाब्दिक ढकोसला मात्र है । व्यंग्य निबंध की शब्द सीमा की ऐसी कोई सीमा नहीं जिसे बताया जा सके । यह व्य॔ग्य लेखक के विवेक पर जैसे लघुकथाकार के विवेक पर लघुकथा की शब्द सीमा । निश्चित ही व्यंग्य निबंध की सीमा लघुकथा से ज्यादा होनी चाहिए । मारक होना जरूरी न कि बहुत बड़ा लिखा जाना ।
-प्रस्तुति : कमलेश भारतीय