‘एक शाम हिंदी के नाम’ कार्यक्रम का आयोजन

एक साथ जुड़ाव होगा तो किसी भाषा के साथ कोई टकराव नही होगा – रमा पांडेय

‘एक शाम हिंदी के नाम’ कार्यक्रम का आयोजन

नई दिल्ली। भारत विविधिता में एकता वाला देश है, देश-विदेश में पलायन ने हिंदी का विस्तार किया है। लेकिन हिंदी के साथ –साथ हमें देश की अन्य आंचलिक भाषाओँ को भी साथ लेकर चलना होगा। आंचलिक भाषाओँ के बिना हिंदी का उत्थान नही होगा, अतः यह हमारा दायित्व बनता है कि  देश की तमाम भाषाओँ को साथ लेकर चलें। ये बातें  सामने आयीं  सोमवार शाम  एम्बेसडर होटल में  रमा थिएटर  नाट्य विद्या संस्था (रतनव) द्वारा आयोजित  ‘एक शाम हिंदी के नाम’ कार्यक्रम  में।  दो सत्रों में विभाजित इस कार्यक्रम के  पहले सत्र में पुरस्कृत उपन्यास मैकलुस्कीगंज के लेखक विकास कुमार झा प्रमुख वक्ता के रूप में मौजूद थे और उन्होंने अपनी इस बहुचर्चित किताब पर विचार रखे. दुसरे सत्र जो देश के आंचलिक साहित्य पर केन्द्रित था इसमें प्रमुख वक्ताओं ने भोजपुरी,मैथली ,अवधि,बुन्देलखंडी, मुलतानी आंचलिक भाषाओँ में काव्य पाठ कर शाम को काव्यमयी किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ लेखक डॉ मैत्रेयी पुष्पा ने की,अन्य मेहमानों में वरिष्ठ लेखक नासिरा शर्मा, श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, अलिंद महेश्वरी भी मौजदू रहे। रमा थिएटर  नाट्य विद्या संस्था (रतनव)  भारत की पारंपरिक वाचिक कला के संरक्षण के लिए एक संस्था  है,यह कलाकारों की आजीविका के लिए काम करता है,और थिएटर प्रदर्शन के माध्यम से उनकी कला को बढ़ावा देता है।

रमा पांडेय,रमा थिएटर नाट्यविद्या (रतनव) की सीईओ ने इस अवसर पर कहा “ आज का यह कार्यक्रम जिसे हमने नाम दिया है ‘एक शाम हिंदी के नाम’ यह एक मुहीम और सलाम है आंचलिक जीवन और आंचलिक भाषाओँ को। वर्तमान में जब मातृभाषा और राष्ट्रभाषा पर बहस छिड़ी है इस दौर में यह इस तरह का पहला कार्यक्रम है जिसमें हमने कोशिश की है कि एक भाव और सम्मान पैदा हो देश के अन्य आंचलिक भाषाओँ के लिए जो हज़ारों साल पुरानी हैं। हिंदीभाषी होने के बावजूद एक लेखक होने के नाते मैं इस भावात्मक गहराईयों को अच्छी तरह समझती हूँ। हिंदी को अगर सहज करना है तो हिंदी लेखकों को आंचलिक जीवन पर लिखना चाहिए। एक साथ जुडाव होगा तो किसी भाषा के साथ कोई टकराव नही होगा।  

पहले सत्र में  उपन्यास मैकलुस्कीगंज के लेखक विकास कुमार झा ने  पुस्तक के बारे में विस्तार से बताया.उन्होंने कहा कि यह हम सब का दायित्व है कि हम हिंदी के साथ –साथ आंचलिक भाषाओँ  को भी साथ लेके चलें और इनके बारे में जाने। आंचलिक भाषाओँ के बिना हिंदी का उत्थान नही होगा तो यह हमारा दायित्व बनता है की देश की तमाम भाषाओँ को साथ लेकर चलें।

उन्होंने आगे किताब के बारे में बात करते हुए कहा ‘मैकलुस्कीगंज को बसे आज कई दशक बीत रहे हैं यह एक जागी आँखों  का एक सुन्दर सपना था लेकिन बदलते वक्त के साथ  आज ये सुन्दर सपना रह-रहकर मुदं रही हैं झपक रही हैं, यह एक अफ़सोस की बात है। इस गावं को बचाने के लिए और एंग्लो इंडियन  समुदाय को प्रोत्साहित करने के लिए इस  गावं जिन्दा  रखना बहुत जरूरी है.कल यह मैकलुस्कीगंज अपने अस्तित्व में रहे न  रहे लेकिन उसकी कहानी हमेशा कहता रहेगा’।

वरिष्ठ लेखक नासिरा शर्मा ने कहा “विकास कुमार झा  रचित  मैकलुस्कीगंज उपन्यास  दुनिया के एकमात्र एंग्लो इंडियन गावं की एक अद्भुत  कथा है। लेखक विकास कुमार झा  के पास विषयों की कमी नही थी लेकिन उनकी नजर वहां पहुची जो उन्हें विश्व स्तर के उन उपन्यासकारों और फिल्ममेंकरों की पंक्ति में  लाकर खड़ी करती है जिन्होंने ऐसे विरल विषयों को अपनी लेखनी में चुना” ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही वरिष्ठ लेखक डॉ मैत्रेयी पुष्पा ने कहा ‘रमा थिएटर नाट्य विद्या (रतनव)  द्वारा  भारत की पारंपरिक वाचिक कला के संरक्षण के लिए जो इस तरह के कार्यक्रम किये जा रहे हैं यह काबिलेतारीफ हैं और मै आभारी हूँ की मुझे इस तरह की मुहीम का अध्यक्षता करने का अवसर मिला।

दुसरे सत्र में  देश की विविध रूपी आंचलिक भाषाओँ का संगम एक मंच पर दिखा .इस सत्र में अवधि,भोजपुरी,हरियाणवी,ब्रज,मुलतानी आंचलिक भाषाओँ के कवियों में प्रोफ़ेसर सुषमा शेरावत ने आंचलिक साहित्य में फनीश्वरनाथ रेणु के मैला आँचल को मील का पत्थर बताया। प्रोफ़ेसर चंद्रादेवी यादव ने कहा कि भोजपुरी लोकसाहित्य काफी विस्तृत है। राकेश पांडेय ने अवधि में काव्य रस बिखेरा, डॉ.विभा नायक ने बुन्देलखंड के प्रमुख कवि ईसुरी के बारे बताया, रेणु शाहनवाज ने  मुलतानी कविता पाठ किया और डॉ अलका सिन्हा ने फनीश्वरनाथ रेणु के बचपन की यादों को ताजा किया।