पापा छत्रपति श्रेष्ठ पत्रकार ही नहीं खूबसूरत इंसान भी थे: क्रांति सिंह 

पापा छत्रपति श्रेष्ठ पत्रकार ही नहीं खूबसूरत इंसान भी थे: क्रांति सिंह 
क्रांति सिंह।

-कमलेश भारतीय 

रामचंद्र छत्रपति की सबसे बड़ी बेटी क्रांति सिंह का कहना है कि अट्ठाइस अगस्त को ही पापा के दुखांत का कारण बने डेरे के बाबा राम रहीम को सज़ा सुनाई गयी थी जो हमारे परिवार के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण दिन था । मैं चूंकि सबसे बड़ी बेटी थी तो सबसे ज्यादा उनका साथ मिला और सबसे ज्यादा समझने का मौका भी मिला । सन् 2000 के फरवरी माह में पूरा सच का प्रकाशन शुरू किया था तो मुझे सहायक के रूप में छोटी छोटी जिम्मेदारियां देते,ऑफिस ले जाते या घर पर ही फाइनल प्रूफ भेजते । छोटी छोटी प्रूफ की गलतियाँ होने पर मुझे समझाते । भाषा का स्तर सदैव उनके ध्यान में रहता । 

सिरसा के गवर्नमेंट काॅलेज से ग्रेजुएशन के बाद कुरूक्षेत्र विश्विद्यालय में जाकर अंग्रेज़ी में एम ए की , जहां दिनेश दधीचि सर से परिचय हुआ । डबवाली के बी एस के काॅलेज से बी एड की और सिरसा के सेंट्रल स्कूल में एक वर्ष तक अध्यापन किया ।  इसके साथ ही दूरवर्ती शिक्षा से एम ए हिंदी की और आजकल पी एच डी कर रही हूं । सन् 2002 में शादी हो गयी और भादरा में अध्यापन शुरू किया । शांति निकेतन पब्लिक स्कूल में पहले अध्यापिका फिर 2008 में प्रिंसिपल हो गयी । तीन साल से कोटा के चम्बल फर्टिलाइजर डी ए वी स्कूल की प्रिंसिपल हूं । पति धर्मेंद्र सिंह भादरा के एक स्कूल में एडमिनिस्ट्रेटर हैं । 


-पापा के साथ रहते और पूरा सच की क्या यादें हैं ?
-मैं ऑफिस जाती थी और तब भी पापा को ऐसे फोन आने लगे थे जिनमें धमकी या चेतावनी होती थी । यहां तक कि झूठा केस भी डाला गया । पर तब हम शादी में बाहर थे और हमारे स्कूल के रजिस्टर तक गवाही के लिए दिखाए गए और मामला खत्म हुआ । पापा अपने प्रोफेशन के प्रति पूरी तरह समर्पित थे । अब वे न केवल सिरसा या  हरियाणा बल्कि देश भर में चर्चित पत्रकार के रूप में नयी पीढ़ी के लिए अनुकरणीय हैं । 

-पापा के और गुण ?
-वे बहुत अधिक यानी घनघोर पाठक और पुस्तक प्रेमी थे । युवक साहित्य सदन से पुस्तकें इश्यू करवा कर लाते । सुबह जल्दी उठकर न केवल हमें पढ़ने के लिए देते बल्कि खुद भी पुस्तकें पढ़ते । पढ़ने की अच्छी आदत पापा ने ही डाली । हम बेटियों के साथ बहुत फ्रेंडली रहते । कोई एज गैप महसूस नहीं होने दिया । मम्मी के काम काज में भी हाथ बंटाते । एक अच्छे पिता और पति थे । बहुत याद आ रहे हैं । 
कुछ समय के लिए क्रांति भावुक हुई और गला रूंध गया । मैंने फोन होल्ड किए रखा और कुछ देर बाद फिर बात शुरू हो पाई ।
-पापा शुरू से ही डेरे वालों के निशाने पर थे । मुझे बहुत गर्व है कि मैं ऐसे पिता की बेटी हूं जिसने वह काम कर दिखाया जो बड़े बड़े मीडिया हाउस नहीं कर पाये । जिसके आगे सरकार भी झुकती थी , उसके खिलाफ चुनौती स्वीकार की ।

-क्या प्रेरणा देते थे आपको ? 
-पापा हमें उदाहरण देते थे आसपास की सशक्त महिलाओं के, शमीम शर्मा का उदाहरण दिया एक बार कि देखो पूरण मुद्गल जी की बेटी को जो एक सशक्त महिला है । ऐसी ही शक्तिवान बनो । भाई को सेना में भेजना चाहते थे और श्रेयसी को पत्रकार बनाने की इच्छा रखते थे । भाई अंशुल हालात के चलते सेना में तो नहीं जा पाया लेकिन मीडिया के सच्चे सैनिक का रोल बखूबी निभाया । उस पर भी गर्व है । श्रेयसी पत्रकार नहीं बनी पर पत्रकारिता सिखाती है । मैं शुरू से ही टीचर बनना चाहती थी और बनी । 

-मीडिया की आज जो स्थिति है उस पर क्या कहना चाहेंगी ? 
-बहुत निराशाजनक है मीडिया की तस्वीर । इतना पतन हो चुका मीडिया का कि क्या कहूं ? जब तक देश के लिए , समाज के हित के लिए पत्रकारिता नहीं करेंगे तो यह किस काम की ? यदि कुछेक नाम छोड़ दें तो ज्यादातर सरकार के नुमांइदे बने हुए हैं । साफ  शब्दों में । अपनी सूरत पहचानें । काम पहचानें । 

- क्या लक्ष्य ? 
-किसी महिलाओं के लिए काम करने वाली एनजीओ से जुड़ने की इच्छा । 
हमारी शुभकामनाएं क्रांति सिंह को ।