पधारो म्हारे देस, राजनीति की नौटंकी देखो आकर 

पधारो म्हारे देस, राजनीति की नौटंकी देखो आकर 
कमलेश भारतीय।

- कमलेश भारतीय 
राजस्थान की टैग लाइन यही है -पधारो म्हारे देस । अब इसमें जोड़ लीजिए -राजनीति की नौटंकी देखो आकर । जी हां , कर्नाटक से भी बड़ी दिलचस्प नौटंकी । कर्नाटक में तो कोई विरोधी था , राजस्थान में कोई विरोधी ही नहीं । सीधे सीधे मुख्यमंत्री  व उपमुख्यमंत्री की लड़ाई है । मुख्यमंत्री अपने विधायक रिसोर्सट में लेकर बैठे हैं तो उपमुख्यमंत्री अपने विधायकों को हरियाणा की सैर करवा रहे हैं । भाजपा दिखा रही है कि उसका इस सबसे कोई लेना देना नहीं लेकिन शाहनवाज हुसैन कह रहे हैं कि विपक्षी दल के नाते नज़र तो रखे हुए हैं लेकिन अशोक गहलोत के नजदीकी नेताओं या कारोबारियों पर आयकर के छापे किस ओर इशारा करते हैं । रणदीप सुरजेवाला भी कह रहे हैं कि ईडी के छापों की टाइमिंग देखिए क्या कहती है । सचिन पायलट के लिए यह सम्मान की लड़ाई है । अपने अस्तित्व की लड़ाई जिससे अनेक सवाल उठ खड़े हुए हैं कांग्रेस नेतृत्व को लेकर । आखिर राजस्थान के मसले को इतना बढ़ने कैसे दिया गया कि कपिल सिब्बल को कहना पड़ा कि तब ध्यान दोगे जब घोड़े अस्तबल से भाग जायेंगे और तीस घोड़े तो भाग ही गये यदि सचिन पायलट गुट की बात सच मानें तो । दूसरी ओर जहां रणदीप सुरजेवाला शीर्ष नेतृत्व से सचिन की बात होने का दावा कर रहे हैं वहीं सचिन की ओर से जवाब कि कोई बात नहीं हुई । शीर्ष नेतृत्व पर मुम्बई से संजय निरुपम भी सवाल उठा रहे हैं और मीडिया भी बहस चला रहा है कि आखिर युवाओं की उपेक्षा कब तक होगी कांग्रेस में ? मध्यप्रदेश में इसी उपेक्षा के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया, हरियाणा में अशोक तंवर के पार्टी छोड़ जाने के पीछे यही बड़ा कारण बताया जा रहा है । हालांकि अशोक तंवर छह वर्ष तक हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और सचिन पायलट भी राजस्थान प्रदेश  कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर हैं और वे यह आरोप लगा रहे हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने किसी नजदीकी नेता को अध्यक्ष पद दिलवाना चाहते हैं । दूसरे मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री होने के बावजूद घोर उपेक्षा सहन करनी पड़ रही है । किसी विकास योजना में उनका कोई संगमरमरी शिलान्यास तक नहीं है । किसी चपरासी तक का तबादला करने का अधिकार नहीं तो काहे का उपमुख्यमंत्री ? ऐसे अनेक कारण गिना रहे हैं सचिन । रणदीप सुरजेवाला कह रहे हैं कि हाई कमान को बता देते पर हाईकमान कभी भी समय नहीं देता और समस्या बढ़ती चली जाती है । जो सचिन राहुल गांधी से समय मांगते रहे कल राहुल गांधी उनका इंतज़ार करते रहे । यह स्थिति कैसे आई ? अपनी युवा टीम के सदस्यों से भी राहुल की ट्यूनिंग खराब कैसे हो गयी? ज्योतिरादित्य सिंधिया भी राहुल की युवा ब्रिगेड के साथी थे । नवीन जिंदल और दीपेंद्र हुड्डा हरियाण से राहुल की ड्रीम टीम के सदस्य कहे जाते रहे । बड़ी मुश्किल से दीपेंद्र को राज्यसभा में भेजे जाने को हरी झंडी दिखाई हाईकमान ने । नहीं तो हरियाणा में भी यह नये और पुराने की जंग छिड़ सकने की आशंका थी । जो कल राजस्थान के जयपुर में हुआ वही हरियाणा के कांग्रेस भवनों में हुआ था । यानी कहीं हुड्डा तो कहीं तंवर के फोटो उतार फेंके गये थे । जयपुर के कांग्रेस भवन में सचिन का फोटो फेंका गया ।
कांग्रेस हाई कमान की ओर से प्रियंका गांधी भी आगे आई लेकिन बात बनती नहीं दिख रही । गांधी परिवार के नजदीकी ही बात नहीं सुन रहे । फिर क्या होगा कांग्रेस का ? दलबदल करवाने की गुप्त योजना से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन अभी भाजपा को तीस विधायकों के टूट जाने का भरोसा नहीं । सचिन भी बड़ी चालाकी से कह रहे हैं कि भाजपा में नहीं जाऊंगा । अब कहीं जाना नहीं तो सिंधिया से मुलाकात किसलिए? शिष्टाचार का समय तो नहीं होगा इन दिनों । अभी तक सचिन अड़े हैं और बने हैं । इतनी फजीहत हो जाने के बाद यदि कांग्रेस में ही बने रहते हैं तो आने वाले दिनों में अगले मोर्चे के लिए तैयार रहना पड़ेगा क्योंकि 
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये , टूटे से फिर नहीं मिले 
मिले तो गांठ पड़ जाये...