युवा पीढ़ी का साहित्य के प्रति नकारात्मक रुख अत्यंत चिंताजनक:डा.अजय शर्मा
फगवाड़ा , 30 जनवरी, 2025: पंजाब के शिरोमणी साहित्यकार व प्रसिद्ध उपन्यासकार डा.अजय शर्मा ने इस बात पर चिंता जताई है कि पंजाब में हिंदी साहित्य को पढ़ने वालों की गिनती दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है,जो साहित्य के भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है। वे आज प्रसिद्ध साहित्यकार एवं दोआबा साहित्य एवं कला अकादमी के अध्यक्ष डा. जवाहर धीर के निवास पर आए थे। पंजाब में युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति रुचि का न होना और नये साहित्यकारों की निरंतर होती जा रही कमी के कारण भविष्य के खतरे को लेकर डा.धीर द्वारा पूछे गए सवाल के उत्तर में उन्होंने कहा कि सच्चाई यही है कि हमारी पीढ़ी के कारण ही पंजाब में साहित्य रचा जा रहा है । हमारी युवा पीढ़ी तो शोशल मीडिया तक ही सीमित होकर रह गई है ।सच यह है कि सोशल मीडिया ने पंजाब ही नहीं,अन्य राज्यों में भी साहित्य को धीरे-धीरे खत्म करने का काम किया है।आज की स्थिति यह है कि अगर कुछ लोग साहित्य रचते भी हैं तो किसी से कुछ सीखना नहीं चाहते और तुरंत पुस्तक छपवाना चाहते हैं। पुस्तक के छपते ही वे स्वयं को 'वरिष्ठ या नामवर' लेखक समझने लगते हैं।
डा.धीर के यह पूछने पर कि अगर हम अपने से दो पीढ़ी पहले के लेखकों की बात करें तो उन लेखकों में क्या विशेषता थी जो उन्हें आज भी पढ़ा जाता है और याद किया जाता है। डा.अजय शर्मा ने कहा कि अगर पुराने समय के लेखकों मुंशी प्रेमचंद, नागार्जुन, उपेन्द्र नाथ अश्क, मैथिली शरण गुप्त,महादेवी वर्मा या उस पीढ़ी के लेखकों को इसलिए याद किया जाता है कि उन्होंने उस दौर में अच्छा लिखा। पीढ़ियां सिर्फ लिखने वालों को याद नहीं करतीं बल्कि अच्छा लिखने वालों को याद करती हैं।
डा.जवाहर धीर ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आपके अब तक सत्रह उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं,और इन में अधिकतर उपन्यास उस समय की घटनाओं पर आधारित हैं। जैसे बसरा की गलियां,शहर पर लगी आंखें,कागद कलम न लिखन हार,कोरोना काल पर कमरा नं 909, ख़ारकीव के खंडहर, और अब नया उपन्यास'खेले सगल जगत', जो राम मंदिर के निर्माण के विषय पर आधारित है । इनमें से बहुत से उपन्यास विभिन्न विश्वविद्यालयों के कोर्सेज में पढ़ाए जा रहे हैं। बहुतों पर एम.फिल या डाक्ट्रेट हो चुकी हैं।
बातचीत के अंत में डा.अजय शर्मा ने अपना नव प्रकाशित उपन्यास 'खेले सगल जगत' डा.जवाहर धीर को भेंट करते हुए आशा व्यक्त की कि यह उपन्यास भी पहले उपन्यासों की तरह दोआबा साहित्य एवं कला अकादमी के सदस्यों को पसंद आएगा। उन्होंने अकादमी के संरक्षक टी.डी.चावला,डा.यश चोपड़ा, रविन्द्र सिंह चोट, दिलीप कुमार पाण्डेय और अन्यों को भी मिले सहयोग को स्मरण किया।
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